आराम - लघु कथा

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एक समय मेरे पास दो बकरी और उनके दो,दो बच्चे जिनमें एक बच्चा और तीन बच्चियां थी,मैं रोज उनके लिए पेड़ों से डालियां काटकर-तोड़कर व दानें खिलाता,चराता था

आराम


एक समय मेरे पास दो बकरी और उनके दो,दो बच्चे जिनमें एक बच्चा और तीन बच्चियां थी,मैं रोज उनके लिए पेड़ों से डालियां काटकर-तोड़कर व दानें खिलाता,चराता था,चारों बच्चें घर पर ही रहते थे और उनकी माँ (बकरी) पहाड़ों में चरने जाती थी,उनका सारा दिन पहाड़ की इस तलहटी से उस  तलहटी और उपत्यकाओं में व्यतीत होता था।

आराम

एक रोज जब मैं बच्चों के लिये पेड़ों से डालियां लेने हमारे बगीचे के पेड़ों में गया,तब मैंने देखा की 
बड़बेर से डाली काटूं या बरगद से या फिर किकर(टिकर)के पेड़ से अप्रैल का महिना था समय ग्यारह और बारह के बीच था लगभग,मैं हाथ में डंगी(डालियां काटने की बांस के बम्बू में जड़ा लोहे का दराती-नुमा लोहा) लेकर सोच रहा था की धूप तेज होती जा रही है,बड़बेर में कांटे अधिक है और किकर के पेड़ में डालियां काफी ऊपर है,इस वक्त काटना मुश्किल है, पर बच्चों के लिये अर्थात् उनकी भूख मिटाने के लिये डालियां जरूरी है, तब मैंनें शिरिष के पेड़ को देखा जो गुलमोहर की पत्तियों जैसा है,वह काफी लम्बा था उस पर से डालियां तोड़ना उस वक्त बेहद कठिन काम था, ऐसे में मैंनें बरगद से डालियां तोड़ना ज्यादा सरल लगा,मैं जैसे ही बरगद की ओर निगाह डालता जो दो-तीन नीम के पेड़ों के बीच से होकर अपना विकास कर रहा था और काफी पतला और लचीला व फिर भी मजबूत बना हुआ था अपने अनेक सहारों से,जिस पर से डाली काटना बेहद सरल था।

लेकिन मैंनें देखा, उपर बरगद को तो उसकी टहनियों पर दो शुक(तोता)आराम कर रहे थे,बेझिझक,बेखौफ मैंनें देखा और देखता रहा और सोचता रहा की पेड़ से डालियां काट लूं पर ये शुक पक्षी जो आराम कर रहें हैं,इनके आराम का क्या होगा,नहीं ये दूसरे पेड़ो की डालियों पर चले जाऐंगे और वहां आराम कर लेंगे।

ऐसे मैं सोचता रहा कभी बच्चों की सोचकर पेड़ से डालियां काटने को तैयार होता,कभी शुक के निश्चित आराम को देखकर रुक जाता।आखिर मुझे वहां से खाली हाथ लोटना पड़ा और बकरी के बच्चों के लिये घर की अनाज की टंकी से अनाज(गेहूं)निकालकर उनको रखा,खिलाया जिससे मुझे बहुत आराम मिला,शुकों के समान या बकरी के
बच्चों की तृप्ति के समान।

मेरी सोच में दिमाग नहीं उस वक्त हृदय काम कर रहा था जो हमें हमेशा किसी को भी परेशान नहीं करने की मर्थ्य व संयमता देता है,जिससे हमारा दिमाग और रास्ता ढूंढ़ लेता है,अपनी गति के लिए,अपने काम (कार्य)को पूर्ण करने हेतु या सभी के समान भाव के हित हेतु।

‘सुख सब को भाता है,
दुख सब को जगाता है,
हृदय वह है जो दोनों को अपनाता है।



                  


                     - डॉ.अनिल मीना(व्याख्याता-हिन्दी)
                     मोबाइल नंबर-7891164635,
                     राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, कालाकोट,
                     छोटी सादरी,प्रतापगढ़, राज़.312604

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. सर,आपका बहुत बहुत धन्यवाद!जो आपने 'आराम'लघु कथा की भावना को मह्त्त्व दिया।

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  2. आप की कहानी पढ़कर हमें ऐसा लगा कि हमें भी आराम करना चाहिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
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