महिलाओं के खिलाफ हिंसा

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महिलाओं के खिलाफ हिंसा देश का शायद ही ऐसा कोई इलाका होगा जहां महिलाओं के साथ अन्याय की ख़बरें देखने या पढ़ने को नहीं मिलती हैं।

महिलाओं को बनना होगा खुद का हौसला


भारत जैसा देश जंहा युगों से महिलाओं को देवी का रूप में माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है। उसी देश में अब महिलाओं पर अत्याचार, हिंसा और शोषण जैसी अमानवीय घटनाएं आम होती जा रही हैं। पूरे देश में महिलाएं हर जगह, हर समय, हर क्षण, हर परिस्थिति में हिंसा के किसी भी रूप का शिकार हो रही हैं। जैसे जैसे देश आधुनिकता की तरफ बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे महिलाओं पर हिंसा के तरीके और आंकड़ें भी बढ़ते जा रहें हैं। यदि हिंसा के नए रूपों की बात करें तो इनमें अश्लील कृत्य, फूहड़ गाने, किसी महिला की शालीनता को अपमानित करने के इरादे से प्रयोग किये जाने वाले शब्द, अश्लील इशारा, गलत नीयत से पीछा करना, अवैध व्यापार, बदला लेने की नीयत से तेज़ाब डालना, साइबर अपराध और लिव इन रिलेशनशिप के नाम पर शोषण प्रमुख है। जबकि पहले से ही डायन और जादू टोना के नाम पर महिलाओं के साथ शारीरिक शोषण, घरेलू हिंसा, दहेज के नाम पर जलाना, यौन उत्पीड़न और बाल विवाह के नाम पर महिलाओं के साथ होने वाला हिंसा आज भी बदस्तूर जारी है। अंतर इतना ही है कि हिंसा के ये नए रूप शहरों में अधिक हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पुराने स्वरूप देखने को मिल जाते हैं।

देश का शायद ही ऐसा कोई इलाका होगा जहां महिलाओं के साथ अन्याय की ख़बरें देखने या पढ़ने को नहीं मिलती हैं। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार साल 2019 में देश भर में 4.05 लाख महिला हिंसा के मामले दर्ज किये गए हैं। इनमें अकेले 30 फीसदी मामले घरेलू हिंसा के हैं जबकि 8 प्रतिशत मामले बलात्कार के दर्ज हुए हैं। यह आंकड़े महिलाओं के प्रति बढ़ते हिंसा के गंभीर रूप को दर्शाते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में राजस्थान सबसे आगे है। जहां 2019 में 18,432 मामले दर्ज किये गए हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश है जहां 18,304 मामले दर्ज किये गए हैं। यह वह आंकड़े हैं जो दर्ज कराये जाते हैं, विशेषज्ञों का मानना है कि दर्ज नहीं कराये जाने वाले मामलों की संख्या इससे कहीं अधिक है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा
रमा शर्मा

विश्व मानचित्र पर पर्यटन की दृष्टि से प्रसिद्ध गुलाबी नगरी जयपुर भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नही है। 2019 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 33,189 केस दर्ज हुये जो कि 2018 की तुलना में 46 फीसदी अधिक है। इस दौरान मासूम बालिकाओं के साथ हुई घटनाओं में भी वृद्धि दर्ज की गई है। लाॅक डाउन के दौरान भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में भी लगातार इज़ाफा देखने को मिला है। राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार इस दौरान देश भर के साथ साथ जयपुर में भी महिला हिंसा के आंकड़ों में भी वृद्धि हुई है। लाॅक डाउन के दौरान ज़मीनी स्तर पर महिलाओं व बालिकाओं के साथ काम करने के दौरान मेरे सामने भी महिला हिंसा के कुछ केस आये थे। जो राजधानी जयपुर और टोंक ज़िले और उसके आसपास से ही संबंधित थे। जयपुर से 40 किमी दूर चाकसू की रहने वाली अनीता शर्मा (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि उनके पति न केवल उनके साथ मारपीट करते हैं बल्कि उनका और उनके बच्चों के भरण पोषण के लिए खर्चा भी नहीं देते हैं। वहीं विनीता के साथ भी कुछ ऐसा ही बर्ताव किया जाता है। उनके अनुसार पति न केवल चरित्र पर लांछन लगाते हैं बल्कि बच्चों के सामने भी मारपीट करते रहते हैं। लेकिन वह बच्चों के भविष्य के लिए इस हिंसा को सहने पर मजबूर हैं। कुछ ऐसी ही परिस्थिती टोंक की कलावती स्वामी और दीपा जैन की भी है। जो पति द्वारा महिला हिंसा का शिकार हुई हैं।


महिलाओं के खिलाफ हिंसा केवल चारदीवारी तक ही सीमित नहीं है। कार्यस्थल से लेकर सड़कों तक महिलाओं को हिंसा का शिकार बनाया जाता है। लाॅक डाउन के दौरान महीने भर से सवाई माधोपुर में फंसी महिला जब जयपुर अपने घर जाने को पैदल निकली तो एक स्कूल में तीन लोगों ने उसके साथ गैंगरेप किया। पुलिस ने इस मामले में तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया है। इस संबंध में राजस्थान के एक गैर-सरकारी महिला संगठन से जुड़ी मनीषा कक्कड़ बताती हैं कि यह हैरानी की बात है कि आखिर प्रशासन ने क्या सोचकर एक महिला को खाली स्कूल में अकेले छोड़ दिया? जगह जगह पुलिस रात दिन लगी रही लेकिन बावजूद इसके बावजूद लाॅकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि देखने को मिली है, जो चिंता का विषय है। इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव कहती हैं कि अगर साल 2018 की एनसीआरबी की रिपोर्ट देखें तो राजस्थान में यौन हिंसा के साढ़े चार हजार मामले दर्ज किए गए थे। यह सिर्फ वह संख्या है जो पुलिस तक मामले पहुंचते हैं। ऐसे अनगिनत मामले हैं जिसकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कराई जाती है।

बहरहाल महिलाओं के खिलाफ बढ़ते आंकड़े सभ्य और शिक्षित समाज के लिए बदनुमा दाग़ हैं। इस प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए बनाये गए कानून से कहीं अधिक ज़रूरी महिलाओं का सशक्त होना है। किसी भी प्रकार के हिंसा के खिलाफ जबतक महिलाएं स्वयं आवाज़ बुलंद नहीं करेंगी तबतक अपराधियों के हौसले बुलंद होते रहेंगे। इस हिंसा को रोकने में जहां आत्मविश्वास का होना ज़रूरी है वहीं शिक्षा भी एक कारगर हथियार साबित होती है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में महिलाएं अपने साथ होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा के खिलाफ केस दर्ज करवाती हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि महिलाएं जबतक जागरूक नहीं होंगी उनकी आवाज़ चारदीवारियों में दबाई जाती रहेगी। (चरखा फीचर) 

(लेखिका स्वयं घरेलू हिंसा का सामना कर चुकी हैं)




- रमा शर्मा
जयपुर, राजस्थान

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