असल मुद्दों से दूर हो गया है टेलीविजन

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असल मुद्दों से दूर हो गया है टेलीविजन मीडिया सरकार द्वारा चलाई गई नीतियों , योजनाओं एवं महत्वपूर्ण फैसलों के बारे में जनता की राय जानने का प्रयास करता है तथा सरकार की कमियों को जनता के समक्ष उजागर भी करता है । इस तरह भारतीय लोकतन्त्र को सही दिशा देने की जिम्मेवारी भी मीडिया की होती है ।

असल मुद्दों से दूर हो गया है टेलीविजन


मीडिया सरकार द्वारा चलाई गई नीतियों , योजनाओं एवं महत्वपूर्ण फैसलों के बारे में जनता की राय जानने का प्रयास करता है तथा सरकार की कमियों को जनता के समक्ष उजागर भी करता है । इस तरह भारतीय लोकतन्त्र को सही दिशा देने की जिम्मेवारी भी मीडिया की होती है । परंतु इस समय टेलीविज़न समाचार चैनलों द्वारा जनता से जुड़े मुद्दे को उठाने के बजाय नए दौर की पत्रकारिता में टेलीविज़न का ताकत विवादास्पद कंटेन्ट सबसे तेज बिकने वाला मुद्दा बन गया है । दर्शकों को सही जानकारी एवं जनमानस की समस्याओं को उठाने के बजाय एक व्यक्तिगत या एक घिनौनी घटना पर कई महीनों से अपना 70 प्रतिशत समय खर्च कर रहे हैं। 

वर्तमान समय में टेलीविज़न चैनल अपनी प्रारम्भिक भूमिका भूल चुकी है । प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जल्दीबाजी से अधिक –से अधिक सामग्री परोसने के चक्कर में खबरों में विश्लेषण ऑर निष्पक्षता ,निर्भीकता वाले पक्ष को प्रभावित हो रही है । पूंजीपति लोग जन संचार के माध्यमों पर अपने धन बल से जनता की राय को अपनी दिशा में मोड़ने में सफल हो रहे हैं । टेलीविज़न ने जहां सामाजिक सरोकार को भुलाते हुए एक वृस्तृत उधोग का स्वरूप ग्रहण किया है ,जिसमें समाचार एक उत्पाद का रूप ले चुकी है नयी टेलीविज़न में जहां फिल्मों ,अपराध ,स्कैंडल ,लजीज व्यंजन ऑर सेक्स संबन्धित ऐसी तमाम सामग्री परोसकर एक ऐसी काल्पनिक दुनिया का निर्माण करने में जुटी रहती है जिसे जनता से कोई सरोकार नहीं है । जनता के असल मुद्दे गायब हैं । जनता के सवाल के बजाय सिर्फ नामी –गिरामी लोगों की दिनचर्या आदि सिर्फ जनता के सामने समाचार के रूप में परस्तुत किए जाते हैं । 

टेलीविजन
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समझते हुए भी नजरंदाज किया जा रहा है । जो जैसा हो ,जहां है ,तो तुरंत उसी रूप में दिखाने में आज एक दूसरे को पछाड़ने की अंतहीन दौड़ में लगी है, जिसमें सच्चाई को बिना जाँचे –परखे प्रसारण का प्रचलन आम होता जा रहा है। वैश्वीकरण ऑर बाजारीकरण के इस दौर में टेलीविज़न अपने असल मुद्दे से भटक चुकी है।टेलीविज़न के इस परिवर्तन स्वामित्व प्रारूपण ने अनेक समस्याओं का जन्म दिया है। टेलीविज़न के स्वामित्व आज कारपोरेट घरानों के बर्चस्व से मीडिया की विषय वस्तु सामग्री में तब्दील हो गया है । अब सूचना, शिक्षा ऑर मनोरंजन का आयाम में परिवर्तन हो रहा है । विज्ञापन राजस्व के कारण आज टेलीविज़न  बहुत ही

वर्तमान समय में टेलीविज़न समाचार चैनल दो भागों में बटी है । एक पक्ष है जो सरकार के सिर्फ अच्छे कामों को ही जनता के सामने में दिखाने में लगी है एवं सरकार की गलत नीतियों को छुपाने में व्यस्त है ।ऑर दूसरा पक्ष वह ढूंढ –ढूंढ कर सरकार की कमी निकालने में हीं अपनी पत्रिकारिता को श्रेष्ठ बनाने में मशगूल है । मीडिया का काम है लोगों का असल समस्याओं को सरकार के सामने प्रस्तुत करना एवं सरकार के रहनुमाओं से सवाल करना है । जैसे गरीबी , बेरोजगारी , कानून व्यवस्था , महिलाओं का उत्थान , बाल यौनचार , बाल मजदूरी , शिक्षा ,स्वास्थ्य आदि जन मुद्दा को उठाना । न कि सिर्फ अलूल –जलूल बातों को  रखना अपने टीआरपी के खातिर । हाँ मीडिया का यह भी सिर्फ काम नहीं है कि विपक्षी पार्टियों के इशारों पर सिर्फ सरकार के खामियों को सामने रखना ऑर उसकी अच्छी योजनाओं ,नीतियों को जनता से दूर रखना । मीडिया का पक्ष तटस्थ होना चाहिए । जो जैसा है उसका पूर्णत: समझ –बूझकर निर्भीकता से बिना डरे जनता के सामने अपने बातों को रखे एवं जनता से जुड़ी समस्याओं को सरकार से सवाल पुछे ऑर तब तक पूछता रहे जब तक उसे जबाब नहीं मिल जाता हो। 

मीडिया को सामाजिक सरोकार के उद्देश्यों की पूर्ति एवं सामाजिक दायित्व के प्रति प्रतिब्ध्तता में आगे आना चाहिए ,ताकि सही मायने में सही लोकतन्त्र की स्थापना हो सके । अव्यवस्था ऑर अराजकता के माहौल में मीडिया की भूमिका ऑर भी बढ़ जाती है उसे समाज में शांति ,सद्भावना व एकता कायम रखने के लिए उसे सकारात्मक पहल करना चाहिए । अगर मीडिया अपनी दायित्व को समझते हुए सामाजिक सरोकार के रास्ते पर चलता है ,तो समाज विकसित होगा । अतः आज जरूरत है एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की जिसमें मीडिया में प्रतिभा संपन्न ऑर सामाजिक दायित्व निभाने वाले निर्भीक लोग ही इस पेशे में रह सकें । बाकी चाटुकार ,मतलबी राजनैतिक रूप से एवं अधौगिक घरानों से प्रतिबद्ध लोगों को मीडिया से दूर रखा जा सके । हालांकि वर्तमान समय में यह कहना बिल्कुल हीं गलत होगा कि आज की मीडिया जगत में सफल कैरियर एवं प्रोन्नति के चक्कर में अपने स्वाभिमान ऑर ज्ञान को ताक पर रखकर मीडिया सिर्फ कारपोरेट घराने की दरबारी बनना भर रह गया है । इस प्रवृति को हटाने के लिए मीडिया नियमन के लिए एक उन्नत तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है। 





- जे आर पाठक 
पता – सी/ऑफ – राजेंद्र पोद्दार , नियर संत अल्बर्ट स्कूल ,तिरिल रोड, कोकर , रांची (झारखण्ड )
संपर्क नं -8434768823

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