समय नहीं बदला, हम बदले हैं

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समय नहीं बदला, हम बदले हैं कहते हैं कि समय बदल गया है, लेकिन मेरा मत है कि समय नहीं बदला बल्कि हम बदले हैं। हमारे संस्कारों में कहीं न कहीं कमी जरूर आई है। आज पुत्र का माता और पिता के प्रति व्यवहार ,भाई भाई में प्रेम, पुत्री का अपने माता-पिता के प्रति व्यवहार कहीं खो सा गया है ।

समय नहीं बदला, हम बदले हैं


कहते हैं कि समय बदल गया है, लेकिन मेरा मत है कि समय नहीं बदला बल्कि हम बदले हैं। हमारे संस्कारों में कहीं न कहीं कमी जरूर आई है। आज पुत्र का माता और पिता के प्रति व्यवहार ,भाई भाई में प्रेम, पुत्री का अपने माता-पिता के प्रति व्यवहार कहीं खो सा गया है ।

पहले संयुक्त परिवारों में सभी सदस्य एक घर में रहते थे ,साथ- साथ खाते थे और प्रत्येक कार्यक्रमों का आनंद उठाते थे। अधिकांश पुरुष वर्ग ही नौकरी अथवा व्यवसाय करता था आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम परिवार को समय नहीं दे पा रहे हैं और समय की कमी का हवाला देकर अपने कर्तव्यों से मुख मोड़ रहे हैं ।

संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार
सोशल मीडिया में हम इतना खो गए हैं कि रिश्तेदारो व मित्रों से दूर होते जा रहे हैं। उनसे हमारा मिलना जुलना व्यवहार करना एक औपचारिकता मात्र रह गया है। हम फेसबुक पर अपने मित्रों- रिश्तेदारों को लाइक तो करते हैं परंतु लोगों से फेस टू फेस बात करना पसंद नहीं करते ।हमारा जीवन तनाव भरा हो गया है ।हम इस तनाव से अपना स्वास्थ्य और संबंध दोनों खराब कर रहे हैं ।

आज विदेशों में पढ़ने व नौकरी करने की चाह ने भी संबंधों की प्रगाढ़ता को समाप्त किया है ।जो माता-पिता अपनी संतानों को पाल पोस कर बड़ा करते हैं ,उनको इस लायक बनाते हैं कि वे जीवन में कुछ कर सकें। इसके लिए अपनी इच्छाओं को भी त्याग देते हैं। आज वही बच्चे बड़े होकर अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर पाते हैं ।उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं। देखने और सुनने में आता है कि माता-पिता को वृद्ध आश्रम छोड़ आते हैं जो  वास्तव में दुखदाई है।

जो मां अपने बच्चे को जन्म देती है ,चलना- बोलना व सही व्यवहार करना सिखाती है ,अपनी संतानों को हमेशा सुखी देखना चाहती है ।आज ऐसी संतान प्रयोजनवादी हो गई हैं। आज के सिनेमा, टेलीविजन व सोशल मीडिया की भी इसमें भूमिका है ।समाज में मानवता तार-तार हो रही है।हमारे देश में सर्वधर्म समभाव की जो भावना थी, वह  जाति, धर्म वेश तथा अमीरी गरीबी के बीच में बंट गई है ।हमारे संस्कार कहीं खो गए हैं।

मातृ देवो भवः ,पितृ देवो भवः, आचार्य देवो भवःअतिथि देवो भवः हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता को प्रकट करने वाले अनमोल वचन हैं, परंतु आज के आधुनिक परिवेश में यह अनमोल वचन निरर्थक से लगने लगे  हैं।पाश्चात्य सभ्यता हम पर हावी हो रही है। हम आज अपने देश की कमियां निकालते हैं और विदेशी देशों की विशेषताओं को बताना नहीं भूलते ।जाति, धर्म ,संप्रदाय, भाषा ,प्रदेश के नाम पर हम बंटते जा रहे हैं। हम अपने ही देश में जब अन्य प्रदेशों की यात्रा करते हैं तो हमारे अंदर ईर्ष्या व मतभेद की भावना देखने को मिल रही है,इससे  अखंड भारत की रूपरेखा धूमिल हो रही है ।

आज के परिवेश में बच्चे घर की चारदीवारी में ही कैद हो जाते हैं और मोबाइल ,कंप्यूटर -इंटरनेट के प्रयोग में ही व्यस्त रहते हैं ।खेल के मैदान में खेलने नहीं जाते।जिससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास प्राकृतिक वातावरण में नहीं हो पाता है। इसके लिए हमें स्वयं प्रयास करना होगा ।

आज के बच्चे कल का भविष्य हैं। जो ज्ञान हमें अपनी पुरानी पीढ़ी से प्राप्त हुआ है ,उसे नई पीढ़ी में आदर्शवादी ढंग से स्थानांतरित करना होगा हम अपनी संस्कृति व सभ्यता को जीवित रखकर ही संस्कारों का समावेश कर सकते हैं । समय इसी प्रकार चलता रहेगा लेकिन हमें बदलने की आवश्यकता नहीं है वरन हमें यथार्थ में जीने की आवश्यकता है ।




- जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’ 

COMMENTS

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  1. बहोत अच्छा हैं पर बुर्जुगों का कर्तव्य भी इसमें समावेश करना चाहिए.

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