एक अल्फाज - कोरोना की कहानी

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एक अल्फाज - कोरोना की कहानी रिपोर्ट पॉजिटिव आने के कारण अस्पताल वाली ने लाश को पैक करके एक बैग में बंद किया और लाश को शवगृह में डाल दिया। पवन दिन में तीन - चार बार अस्पताल के चक्कर काट था। और परिस्थिती ही ऐसी आयी थी कि कोई भी अपना वहा नहीं था। मेहरा ,बिट्टो और पवन घर में पड़े रोते - रोते दो दिन रात निकालें। मानो मेहरा के जीवन में पति के मृत्यु के कारण अंधकार हुआ था।

एक अल्फाज - कोरोना की कहानी 


कई बरसों बाद चौराहा आज सुना - सुना दिख रहा था। दुकानें बंद पड़ी थी , गाडियों की आवाजे अब बंद हो चुकी थी,रास्ते सन्नाटा था। स्मशानभूमी की शांतता थी। बिट्टो ने खांसने की आवाज सुनी और कहा बापू अभी तक खांसी कम नहीं हुई। चल बापू अस्पताल चले? बापू ने कहा ' अरे बिटवा सारे अस्पताल तो बंद पड़े है रे, हमें कोई अंदर भी आने नहीं देगा।' बापू मै पास से टिकिया तो लेके आऊ! खटिया पर पड़े बापू ने एक टिक्की मुंह में निगल ली। बापू ने कुछ समय बाद बिट्टो से पूंछा की मां,छोटे और उसकी घरवाली छाया चली गई ना? बिट्टो ने कहा हा  बापू उनको चले गए अब आठ दिन हो गए। अच्छा हुआ बिट्टो सब चले गए , नई तो यहा रहना मतलब अपने आप को कुंए में ढ़केलने जैसा है। बापू खटिया से उठ के पानी के ग्लास की ओर का रहा था, बिट्टो भागते भागते आइ ,'क्य बापू मै हूं ना तुम मुझे बुलाते'। बापू को पानी पिलाया ओर बापू सो गया। 
                     
कुछ समय बाद मेहरा ने गुस्से से चाय का प्याला बापू के सामने पटक दिया। बापू ने कराहते हुए कहा मेहरा तुम्हे कुछ दिक्कत हो रही है ,तो रहने दो काम। मेहरा गुस्से से लाल थी , उसने कहा ' सुनो जी तुम ही मेरे लिए एक बोज बन चुके हो' तुमना मैंने सौ बार कहा था कि अस्पताल जाओ तो तुम सुनते कहा हो मारी बात! अब देखो बीमारी बढ़ गयी है। एक तो दिन खराब आए है। यह बरस जानलेवा है एक तो । बापू कराह ते हुए नींद में ही बडबडा रहा था। ''मेहरा मुझे पिताजी उनके पास बुला रहे हैं , और कह रहे है कि देख बेटे तू  तेरा  कर्त्तव्य नहीं निभा रहा।'' छोटे को अच्छे से संभालने का वादा किया था, लेकिन तूने मेरी बात नहीं मानी तू  भी आ मेरे पास ।मेहरा जोर -जोर से हंसने लगी और कहने लगी क्या तुम भी बोलते हो जी ,मरा हुआ आदमी कब से आपको बुलाने लगा।मेहरा की इस हंसी से बापू का मुंह छोटा हो गया। बापू  मानो खटिया पर पड़े -पड़े खुदके भविष्य के अंतिम दिनो का आयना देख रहा था, बापू पड़े -पड़े कल्पना कर रहा था की सामने के पेड़ पर बैठा कव्वा चिल्ला- चिल्लाकर अपने पास बुला रहा है। उस दिन बापू अजीब सी बाते करने लगा, बिट्टो सुनकर रोने लगी और कहा 'बापू तुम नाराज क्यो होते हो तुम्हे कुछ नहीं होगा , अस्पताल खुलते ही हम जाएंगे। बिटवा मुझे सरकारी अस्पताल में जाने को अलग सा डर लगता है , बिटवा जब मै सरकारी अस्पताल की सीढ़ी चढ़ूंगा ना तब मेरा वह अंतिम दिन होगा, लेकिन तुम्हारी मां सुनती ही नहीं वह मुझे मारना चाहती है। बापू तुम ऐसा क्यो करते हो मां तो तुम्हारी ही  भलाई चाहती है। मेहरा के जोर से चिल्लाने पर  बापू  ने दी ही निवाले खाएं और उसी खटिया पर पड़ा रहा। अचानक रात में बापू की हालत और बिगड़ गई। बापू नींद मै ही बड़बड़ाने लगा कि मां छोटे ठीक तो है ,मुझे उनकी याद आ रही है।बापू अंदर मन ही मन मां और छोटे को याद कर रहा था, ओर वह दोनों वापस चले आए मेरे पास। ऐसे बापू को लग रहा था। सुबह होते ही छोटे का फोन आया और पूछा  'बापू तुम्हारी तबियत ठीक  नहीं है तो मै आऊ तुम्हारे पास? बापू  ने कहा तुम वही ठीक हो यहां शहर बंद है ,तुम्हे आने नहीं देंगे ,तुम मत आओ। बापू खुदको अकेला समज रहा था,उसकी खांसी दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी । मुंह से बोलने की ताकद नहीं थी। मानो बापू को घर के दीवारों पर खुदके जीवन का चित्र दिख रहा था। इन बीमारी के दिन में बापू मां ओर छोटे को याद कर रहा था। ओर मन ही मन बापू को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मां ओर छोटे के बिना मै जी नहीं पाउंगा। खुद को अकेले महसूंस कर रहा था ,ओर बापू को लग रहा था कि मै इस बीमारी से बाहर आ पाऊंगा या उसी मै ही अंत हो जायेगा। 
                      
रात के बारह बजे थे बापू की खांसी ओर बुखार बढ़ गई।बापू को ना चाहते हुए भी पवन के साथ सरकारी अस्पताल जाना पड़ा। बापू ने जाते जाते बोल दिया कि ' तुम मुझे सरकारी अस्पताल  ले जा रहे हो ,तो आते समय मेरा मुर्दा ही लेकर आओगे।'बिट्टो ओर मेहरा ने बापू को रोते - रोते गाड़ी पर बिठाया। बापू सरकारी अस्पताल में
एक अल्फाज
भर्ती तो हो गई लेकिन मन में डर बैठा हुआ था। अस्पताल का माहौल बापू के मन में और डर पैदा कर रहा था। आँखो के सामने से मरीजों की की लाशे जा रही थी। बापू उन लाशों को देख कर आंखें बंद कर रहा था। बापू को उस अस्पताल के वार्ड में घुटन सी हो रही थी। ब्लड प्रेशर कम ही रहा था। अस्पताल का माहौल देख कर बापू पूरा डरा हुआ था। उस समय मां और छोटे को याद कर रहा था। उस वक्त बापू को उनके एक छवि कीजरूरत थी। मां ओर छोटे का एक अल्फाज़ सुनने के लिए बापू तरस रहा था। समय ही ऐसा था कि मरीज के साथ कोई घरवाला भी नहीं बैठ सकता था।पवन ने बापू को कहा ' बापू तुम उदास क्यो होते हो ! ' एक बार आपका रिपोर्ट नेगेटिव आ जाए फिर हम अच्छे अस्पताल मै भर्ती होंगे।' अस्पताल की दीवारों पर बापू अपने पूरे जीवन के कर्मो की फिल्म देख रहा था। डर के मारे बीपी पूरा कम हुआ था। एक घबराहट दिल में बैठी थी। लाशे सामने से  जा रही थी। किसी की जोर से रोने कि आवाज आ रही थी। अस्पताल का विचित्र सा माहौल बापू को भयावह लग रहा था। बापू अन्तिम क्षणों को गीन रहा था। घबराहट के कारण हालत पूरी बिगड़ गई थी। अपने अंतिम क्षण में कोई भी साथ नहीं था। बापू ने जीवन की अंतिम यात्रा समाप्त कर दी। सुबह साढ़े ग्यारा बजे पवन को अस्पताल से फोन आया कि आपके  मरीज की हालत और बिगड़ गई है। यह बात सुनकर पवन तेजी से अस्पताल पहुंचा तब उसके बापू दम तोड दिए थे। नाक में से खून निकला हुआ था, हांथ में मोबाइल था। मानो पवन को ऐसा लगा कि बापू दुख भरे स्वर से कह रहे है । ' मै जा रहा हूं।' पवन पूरा स्तब्ध बैठा था। उस कुछ भी समझ  में रही आ रहा था। पवन जोर से रोने लगा सबको फोन पर बताया कि बापू नहीं रहा। अस्पताल के सेवक ने पवन को वार्ड से बाहर निकाला और लाश को लेके शवगृह में कैद किया। उम्र से छोटा पवन इस परिस्थिती से अकेले लड़ रहा था। डॉक्टर ने कहा दिया की लाश का स्वेब लिया जायेगा। सरकारी अस्पताल गबन करने के लिए  उन्होंने बापू का रिपोर्ट कोरोना पॉज़िटिव कह दिया। असल में देखा जाए तो उनको कोरोणा था है नहीं । लेकिन एक मरीज का रिपोर्ट पॉजिटिव दिखाने से सरकारी अस्पताल को लाखो रुपए मिलते हैं। इसलिए उन्होंने यह गबन किया। 
                     
रिपोर्ट पॉजिटिव आने के कारण अस्पताल वाली ने लाश को पैक करके एक बैग  में बंद किया और लाश को शवगृह में डाल दिया। पवन दिन में तीन - चार बार अस्पताल के चक्कर काट था। और परिस्थिती ही ऐसी आयी थी कि कोई भी अपना वहा नहीं था। मेहरा ,बिट्टो और पवन घर में पड़े रोते - रोते दो दिन रात निकालें। मानो मेहरा के जीवन में पति के मृत्यु के कारण अंधकार हुआ था। 
                    
परिस्थिती पहले जैसे नहीं थी कोई गुजर जाए तो सब इकट्ठा होते थे। लेकिन अब कोई अपना सगा भी पास नहीं आ सकता था। मां वृद्धा  होने के कारण एक जगह अटक गयी और छोटा भी अपने ससुराल गया था। कोई भी पास नहीं आ रहा था। बापू मरने के पहले भी अकेला पड़ा था। और मरने के बाद भी बापू की लाश अकेली एक शवगृह में पड़ी थी। इस कायनात का सामना अकेला पवन कर रहा था। लोग घर के सामने आकर खाना, चाय पानी रख कर जाते। कोई पास आकर बोलने के लिए तैयार नहीं था। मेहरा पवन के गले लगकर रोते हुए कहती हैं। ' बेटा भगवान हमें कोनसे कर्म की शिक्षा दे रहा है।' मेहरा के मन पर गहरा आघात हुआ था। मानो उनकी जिंदगी जी थम सी गई थी। तीन दिन मेहरा पवन और बिट्टो उस सुनसान बाडे में बापू के लाश की रहा देख रहे थे। बापू के मरने से बाडे की रौनक ही चली गई थी।बाडा खंडर के समान लग रहा था। बिना खाये -पिये दिन  रात तीनो बापू की राह देख रहे थे। उनको लगता था कि बापू की आवाज आयेगी। बापू एक अल्डाज तो बोलेंगे लेकिन उनकी यह कल्पना कभी भी वास्तव में बदलने वाली नहीं थी। मेहरा ने अपने अंदर दू:ख को दबा के रखा था। इस महामारी के कारण संगे संगी भी पास नहीं आ सकता था। अपने दुख को व्यक्त करने के लिए कोई था ही नही। इतना गहरा आघात मेहरा के मन पर हुआ था। पवन बार - बार अस्पताल के चक्कर काट रहा था। गांव वालो ने छोटे को आने नहीं दिया। बापू के लाश का दहन हुआ है, ऐसा कहके शहर नहीं जाने दिया। लेकिन ऊपरवाला भी मदत के लिए किसी ना किसी को भेज ही देता है। बापू के अच्छे कर्मो के फलस्वरूप सुधीर चाचा लाश को बाहर निकालवाने के लिए गये। शहर के राजनेताओं से सुधीर चाचा की पहचान थी। उसी पहचान के कारण अस्पताल वालो ने लाश देने की अनुमति दी। लेकिन अस्पताल की गाड़ी में लाश दी जाएगी और साथ में सुधीर चाचा ,पवन और बिट्टो के समवेत लाश का दहन होगा। महामारी के कारण इन सभी सुरक्षा के लिए कोरोना स्किट पहनने दिया गया। 
                    
मेहरा को जाने की अनुमति नहीं थी। शवगृह से लाश को निकाला गया। बिट्टो पवन फुट फुटकर रोने लगे। पवन ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए छोटे को अंत्यदर्शन कर दिया। बापू जैसे शांत ओर अच्छे इंसान को खोने का दुख हर किसी को  था। बापू पेशे से वकील थे इसलिए उनकी शहर के आसपास के गांवों में बड़ी जान पहचान थी। शहर के मोदी समशान भूमी में बापू का अंतिमसंस्कार हुआ।सहदय व्यक्तित्व के बापू मिट्टी में विलीन हुए। बापू का स्वास्थ फिर ठीक होने में मां और छोटे का एक प्रेमभरा अल्फाज़ काफी था। लेकिन इस महामारी के कारण मां और छोटे बापू से बिछड़ गए थे। बापू के पास वात्सल्य से हाथ फेरने वाली मां और आद्याकरी छोटा पास होता तो आज बापू यूं ही ऐसे छोड़ के नहीं चल बस्ते। बापू के बीमारी से ज्यादा उनको बिछड़ने के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। बापू के जीवित रहने के लिए खाली मां और छोटे के पास होने की और उनके प्रेमभरे एक अल्फाज़ की जरूरत थी!..........




 - श्रुती शशिकांत चराटे

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