दो घड़ी के लिए दो घड़ी के लिए, बैठ जाया करो। मां बाप के पास भी कभी आया करो। कभी उंगली पकड़कर, चलना सिखाया था। कभी उनको भी मां बाप मां बाप बाहर घुमाया करो। दो घड़ी के लिए.......।। प्यार के दो बोल, अनमोल हैं। प्यार से कभी तुम, मनाया करो। दो घड़ी के लिए........।।
दो घड़ी के लिए
दो घड़ी के लिए,
बैठ जाया करो।
मां बाप के पास भी
कभी आया करो।
कभी उंगली पकड़कर,
चलना सिखाया था।
कभी उनको भी
![]() |
मां बाप |
बाहर घुमाया करो।
दो घड़ी के लिए.......।।
प्यार के दो बोल,
अनमोल हैं।
प्यार से कभी तुम,
मनाया करो।
दो घड़ी के लिए........।।
माना तुम पढ़ लिखकर,
इंसान हो गए।
कभी तो इंसानियत,
दिखाया करो।
दो घड़ी के लिए........।।
मन की भाषा
मन में मन की भाषा है
मन भावों को दर्शाता है
कभी शांत कभी विचलित होता
हँसता कभी कहीं यह रोता
मानव की संवेदनाओं का
केंद्र बिंदु बनता जाता है |
मन में मन की ही भाषा है
मन भावों को दर्शाता है |
कल्पनाओं का तार लगा है
चिंतन का बाज़ार लगा है
क्या सोचे क्या समझे मन यूँ
बाँट -तराजू बन जाता है |
मन में मन की ही भाषा है
मन भावों को दर्शाता है |
मत निराश हो मत उदास हो
उन्नति के तुम आस –पास हो
निश्चय कर इन दृढ़ताओं का
आगे को बढ़ता जाता है |
मन में मन की ही भाषा है
मन भावों को दर्शाता है |
थोड़ी सी रौशनी
थोड़ी सी रौशनी बहुत
पर रौशनी तो है।
आसरा अभी बाकी है,
जिंदगी तो है।
थोड़ी- थोड़ी रौशनी से,
जीवन मे प्रकाश होगा।
पल-पल की खुशियों से ही,
हास और परिहास होगा।
यह न सोचे क्या मिला है,
जो मिला अच्छा मिला है।
माना की राहें हैं कंटीली,
पर ईश्वर की बंदगी तो है।
थोड़ी सी रौशनी बहुत.....।
पर रौशनी तो है...........।।
निश्चय कर लें
निश्चय कर लें मन में साहस भरता है,
जो घबराता वह जीवन से डरता है।
बाधाएं आती हैं तो आने दो,
सही कहा है जो जीता वह मरता है।
निश्चय कर लें मन में साहस भरता है।।
धाराएं कितनी भी जब प्रतिकूल हों,
पथ पर पुष्प नहीं हों केवल शूल हों।
विषम समय में जो हिम्मत नहीं हारता,
वह उन्नति पथ पर आगे बढ़ता है।
निश्चय कर लें मन में साहस भरता है।।
नन्हीं चींटी भी गिरती फिर चढ़ती है,
असफलता से कभी नहीं वह डरती है।
कर्मशील कभी भाग्य भरोसे नहीं रहता,
प्रतिपल अपने कर्मों को वह करता है।
उन्नति पथ पर वह आगे को बढ़ता है,
निश्चय कर ले मन में साहस भरता है।।
आओ दीप जलाएं
घर -घर आंगन चौराहों पर
मंदिर नदियों के घाटों पर
खुशियों की स्वर्णिम बेला है
जगमग दीप जलाएं।
आओ जगमग दीप जलाएं....।।
देखो सिया-राम राजधानी
है पवित्र सरयू का पानी
जन जन में गूँजे यह वाणी
रामचरित सब गाएं।
आओ जगमग दीप जलाएं....।।
कितना सुंदर अवसर आया
सबके मन में हर्ष समाया
कण कण में श्रीराम की माया
नव उमंग दिखलाएं।
आओ जगमग दीप जलाएं....।।
कनक भवन हनुमानगढ़ी की
शोभा सुंदर रंगमहल की
राम नाम की जलधारा में
डुबकी आज लगाएं
आओ जगमग दीप जलाए....।।
- जितेन्द्र मिश्र 'भरत जी'
COMMENTS