साये में धूप दुष्यंत कुमार आरोह भाग १ class 11 Hindi

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साये में धूप दुष्यंत कुमार


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साये में धूप की व्याख्या 


कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, 
कहाँ  चिराग मयस्सर नहीं  शहर के  लिए |  

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित ग़ज़ल साये में धूप से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि समाज में व्याप्त अव्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि जो सपना आजादी पश्चात् हमारे भारत के लिए दिखाया गया था | वह तो पूरा ही नहीं हुआ है | हमारे नेताओं ने हर घर में खुशियों के दीए जलाने के सपने दिखाए थे | अर्थात् सुख-सुविधाओं की बात कही गई थी, जबकि आज तस्वीर कुछ अलग है | पूरा समाज अर्थात् लोग इन सुख-सुविधाओं से वंचित हो गए हैं | 

(2)- यहाँ दरखतों के साये में  धूप लगती है, 
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित ग़ज़ल साये में धूप से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि जो दरख़्त के रूप में संस्थाएँ लोगों के कल्याण के लिए अस्तित्व में आए थे, वे संस्थाएँ ही आम आदमी का शोषण करने लगी हैं | उनके कष्टों का कारण बनने लगी हैं | चारों तरफ भ्रष्टाचार का साम्राज्य स्थापित हो गया है | कवि ऐसे संस्थाओं और भ्रष्ट व्यवस्थाओं से दूर जाकर अपना जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तथा ऐसा करने के लिए लोगों से भी आह्वान कर रहे हैं | 

(3)- न  हो  कमीज़  तो  पाँवों  से  पेट  ढँक  लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित ग़ज़ल साये में धूप से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि आम आदमी एवं जो शोषित वर्ग हैं, वे कष्ट भरे जीवन जीने के लिए विवश हैं | अगर उनके पास जिस्म ढकने को कपड़े भी नहीं हैं, तो वे अपने पैरों को मोड़कर अपने पेट को ढँक लेंगे | अब तो उन लोगों में विरोध करने का भाव भी मर चुका है | अत: ऐसे लोग ही भ्रष्टाचारी शासकों के अनुकुल हैं, क्योंकि उनका कोई विरोध करने वाला नहीं है | 

(4)- खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही, 
कोई हसीन नज़ारा  तो  है  नज़र  के  लिए | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित ग़ज़ल साये में धूप से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि दुनिया में खुदा नहीं है तो क्या हुआ, आदमी के पास खुदा के होने का ख़्वाब तो है | अर्थात् ईश्वर आम आदमी की कल्पना में तो है | इस कल्पना के जरिए उसे खूबसूरत दृश्य देखने को मिल जाते हैं | अत: तमाम कष्टों के बीच ईश्वर के प्रति सच्चे एहसास होने से जीवन आसानी से कट जाया करता है | 

(5)- वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं  बेकरार  हूँ  आवाज़  में  असर  के  लिए | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित ग़ज़ल साये में धूप से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के
दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार
माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि आम आदमी या शोषित वर्ग को विश्वास है कि जो भ्रष्टचारी हैं, उनके दिल पत्थर के होते हैं | वे संवेदनहीन होते हैं | लेकिन इसके विपरीत कवि को इंतजार है कि इन आम आदमियों या शोषित वर्गों की आवाज़ में असर हो जाए अर्थात् उनके दिल में क्रांति की ज्वाला भड़क उठे | ताकि आम आदमी संगठित होकर पत्थर दिल भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर सके | फलस्वरूप, भ्रष्टाचार का अंत हो सके |

(6)- तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की,
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित ग़ज़ल साये में धूप से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि एक कवि या शायर जब सत्ता के विरुद्ध आम जनता को जागरूकता का पाठ पढ़ाता है, तो इससे सत्ता या सत्ताधारी को क्रांति का खतरा महसूस होता है अर्थात् उन्हें अपना सिंहासन छिन जाने का भय सताने लगता है | वे खुद को बचाने के लिए कवियों की जबान अर्थात् कविताओं पर प्रतिबंध लगाना आरम्भ कर देते हैं या कर सकते हैं | ठीक उसी प्रकार ग़ज़ल के बहर (छंद) के लिए बंधन या माप की सावधानी बहुत जरूरी होती है |  

(7)- जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले, 
मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित ग़ज़ल साये में धूप से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि जब तक अपने बगीचे में हम ज़िंदा रहें या जिएँ, तो बेशक गुलमोहर के तले जिएँ और जब मृत्यु निकट हो, तो दूसरों की गलियों में भी गुलमोहर के लिए ही मरें | 

अर्थात् मानव जब तक ज़िंदा रहे, वह अपने मानवीय मूल्यों को मानते हुए सुकून से जिए तथा जब बाहर की गलियों में मरने की नौबत आए तो दूसरों के लिए भी इन्हीं मूल्यों की रक्षा करते हुए मरे | 


साये में धूप पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ या ग़ज़ल साये में धूप कवि या ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित है | यह ग़ज़ल, उनकी ग़ज़ल संग्रह साये में धूप से उद्धृत है | राजनीति और समाज में जो कुछ भी गतिमान है, उसे नकारने और विकल्प की तलाश को मान्यता देने का भाव एक प्रकार से इस ग़ज़ल का केन्द्रीय भाव या बिंदु बन गया है | यह ग़ज़ल वाकई में दुष्यंत कुमार की हिन्दी ग़ज़ल का खूबसूरत नमूना पेश करती है | 



साये में धूप पाठ के प्रश्न उत्तर  


प्रश्न-1  आखिरी शेर में गुलमोहर की चर्चा हुई है | क्या उसका आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से है या उसमें कोई सांकेतिक अर्थ निहित है ? समझाकर लिखें | 

उत्तर- प्रस्तुत ग़ज़ल के आख़िरी शेर में गुलमोहर की चर्चा हुई है | सामान्यतः गुलमोहर एक ख़ास किस्म का फूलदार पेड़ होता है, जिसके नीचे बैठकर लोगों को ख़ुशी का एहसास होता है | कवि दुष्यंत कुमार के अनुसार, इसका सांकेतिक अर्थ ऐसे भारत के लिए है, जहाँ चैन-सुकून और सुख-सुविधाओं की छाया हो | इसके लिए वे कुछ भी त्याग और संघर्ष करने के लिए तत्पर हैं | 

प्रश्न-2 पहले शेर में ‘चिराग’ शब्द एक बार बहुवचन में आया है और दूसरी बार एकवचन में | अर्थ एवं काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से इसका क्या महत्व है ? 

उत्तर- जब पहले शेर में ‘चिराग’ शब्द का बहुवचन में प्रयोग हुआ, तो इसका मतलब हर घर की खुशियों से था | जब दूसरी बार 'चिराग' शब्द का एकवचन में प्रयोग हुआ, तो इसका मतलब एक साथ पूरे शहर की खुशियों के लिए था | अपने पहले शेर के माध्यम से कवि ने वर्तमान सामाजिक व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य कसा है, जिस व्यवस्था में सभी के लिए खुशियों की उम्मीद की गई थी, वहाँ पर पूरा समाज एक छोटे से सुख के लिए तरस रहा है | अत: समाज अंधकार रूपी शोषण की बेड़ियों से जकड़ा हुआ है | 

प्रश्न-3 ग़ज़ल के तीसरे शेर को गौर से पढ़ें | यहाँ दुष्यंत का इशारा किस तरह के लोगों की ओर है ? 

उत्तर- ग़ज़ल के तीसरे शेर में कवि दुष्यंत कुमार ने उन मजबूर लोगों की तरफ़ इशारा किया है, जो परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लिए हैं | ऐसे लोग अपनी परेशानियों से समझौता कर लिए हैं | अपने भाग्य पर निर्भर रहना सीख लिए हैं | ऐसे लोगों की आवश्यकताएँ सीमित हो गई हैं | ये भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के बजाय, उनके शोषणों को सहना सीख लिए हैं | 

प्रश्न-4 आशय स्पष्ट करें : 

तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की,
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि दुष्यंत कुमार जी के द्वारा रचित ग़ज़ल साये में धूप से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि एक कवि या शायर जब सत्ता के विरुद्ध आम जनता को जागरूकता का पाठ पढ़ाता है, तो इससे सत्ता या सत्ताधारी को क्रांति का खतरा महसूस होता है अर्थात् उन्हें अपना सिंहासन छिन जाने का भय सताने लगता है | वे खुद को बचाने के लिए कवियों की जबान अर्थात् कविताओं पर प्रतिबंध लगाना आरम्भ कर देते हैं या कर सकते हैं | ठीक उसी प्रकार ग़ज़ल के बहर (छंद) के लिए बंधन या माप की सावधानी बहुत जरूरी होती है |  

प्रश्न-5 दुष्यंत की इस ग़ज़ल का मिज़ाज बदलाव के पक्ष में है | इस कथन पर विचार करें | 

उत्तर- जी हाँ, कवि दुष्यंत कुमार का यह ग़ज़ल बदलाव के पक्ष में है | कवि के अनुसार, जिस उद्देश्य से देश की व्यवस्था का निर्माण किया गया था, वह मुकम्मल नहीं हुआ है | कवि राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाना चाहते हैं | कवि शासन-व्यवस्था की क्रूर नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करना चाहते हैं | वे शोषित वर्ग के लोगों के अन्दर क्रांति की ज्वाला सुलगाना चाहते हैं, जिससे वे अपने अधिकारों को पहचान सकें और अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत् रह सकें | 


साये में धूप पाठ के कठिन शब्द शब्दार्थ 


• तय - निश्चित
• चिराग - दीपक
• हरेक - प्रत्येक, हर एक 
• मयस्सर - उपलब्ध, नसीब होना 
• दरख्त - पेड़, वृक्ष 
• साये - छाया, परछाई 
• धूप - कष्ट, रोशनी, 
• उम्रभर - जीवन भर, ताउम्र 
• मुनासिब - अनुकूल, उपयुक्त, उचित 
• सफ़र - यात्रा 
• खुदा - भगवान, ईश्वर, प्रभु 
• हसीन - सुंदर, खूबसूरत 
• नज़ारा - दृश्य
• नज़र - दृष्टि 
• मुतमइन - आश्वस्त, इतमीनान होना 
• बेकरार - बेचैन, आतुर 
• आवाज़ - ध्वनि, वाणी 
• असर - प्रभाव, प्रभुत्व 
• निजाम - प्रबंध, शासन व्यवस्था, राजव्यवस्था 
• सिल दे - बंद करने की क्रिया 
• शायर - कवि
• एहतियात - सावधानी, चौकस रहना 
• बहर - शेर का छंद या एक पंक्ति 
• गुलमोहर - एक प्रकार के फूलदार पेड़ का नाम 
• गैर - अन्य, दूसरा, अजनबी, अपरिचित 
• गलियों - रास्ते, राहें | 


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