चंद्र गहना से लौटती बेर कविता

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चंद्र गहना से लौटती बेर - केदारनाथ अग्रवाल चंद्र गहना से लौटती बेर चंद्र गहना से लौटती बेर extra questions chandra gehna se lauti ber full poem chandra gehna se lotati ber prashn uttar class 9 hindi chapter 14 question answer चंद्र गहना से लौटती बेर' कविता में कवि चने के पौधे को किस रूप में देखता है ? अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए चन्द्र गहना chandra gehna se lauti ber class 9 से लौटती बेर व्याख्या Chandr gahna se Poem Explanation विजन किसी व्यापारिक नगर से क्यों श्रेष्ठ है Chandra Gehna Se Lautti Ber चंद्र गहना से लौटती बेर Q and A Class 9 Hindi (Kshitij) Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर A Poem by Kedaranath Agrawal Ncert Cbse चंद्र गहना से लौटती बेर class 9 चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का भावार्थ अर्थ

चंद्र गहना से लौटती बेर - केदारनाथ अग्रवाल


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चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का भावार्थ अर्थ


देख आया चंद्र गहना | 
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला | 
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सजकर खड़ा है | 
पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सर पर चढ़ा कर
कह रही, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको | 

भावार्थ  - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि केदारनाथ अग्रवाल जी के द्वारा रचित कविता चंद्र गहना से लौटती बेर से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि के द्वारा ग्रामीण परिवेश और खेत-खलिहान का सुंदर चित्रण किया है तथा चना और अलसी के पौधे का अद्भुत मानवीकरण किया गया है | कवि कहते हैं कि वे 'चंद्र गहना' नामक गाँव देखकर आ गए हैं | लौटते हुए जब वे खेत के मेड़ पर बैठकर आस-पास के प्राकृतिक दृश्य पर अपनी दृष्टि डालते हैं, तो उन्हें खेतों में लगे चने के पौधे दिखाई देते हैं | कवि चने के पौधे का बेहद जीवंत मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि महज एक बीते के बराबर यह हरा चना, जो नाटे कद का है, खेतों में लहलहा रहा है | चने के पौधे के ऊपरी हिस्से पर गुलाबी रंग के जो फूल खिले हैं, वह किसी पगड़ी के समान दिख रहे हैं | मानो ऐसा आभास हो रहा है, जैसे कोई दूल्हा पगड़ी पहनकर सज-धजकर खड़ा है | आगे कवि कहते हैं कि पास में ही चने के पौधे के साथ-साथ अलसी का पौधा भी उगा हुआ है, जो बेहद पतली है | अलसी के पौधे का पतला होना और हवा के झोंके से उसके हिलने की प्रकिया को कवि ने देह की पतली और कमर की लचीली कहके संबोधित किया है | कवि ने बड़ी सुंदरता से प्रस्तुत पंक्तियों में अलसी के पौधे को नायिका का प्रतिरूप बना दिया है | कवि के अनुसार, अलसी के पौधे के ऊपरी भाग में नीले रंग के फूल खिले हैं, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो अलसी के पौधे अपने हाथों में फूल लेकर नायिका के रूप में कह रही हों कि जो उसके प्रेम रूपी फूल को लेगा या स्वीकार करेगा, वो उसको अपना दिल दे देंगी अर्थात् उसपर अपने प्रेम को न्योछावर कर देंगी | 

(2)- और सरसों की न पूछो-
हो गयी सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह-मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे | 
देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
चंद्र गहना से लौटती बेर
चंद्र गहना से लौटती बेर
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि केदारनाथ अग्रवाल जी के द्वारा रचित कविता चंद्र गहना से लौटती बेर से उद्धृत हैं | प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अग्रवाल जी ने खेतों के प्राकृतिक सौंदर्य की तुलना विवाह के मंडप से किया है तथा गाँव की प्राकृतिक सौंदर्य को व्यापारिक शहर की तुलना में ज्यादा बेहतर और मनोरम माना है | कवि कहते हैं कि चने और अलसी के पौधे के बीच, सरसों की तो पूछो ही मत ! वो तो और भी सयानी हो गई है | सरसों पर पीले रंग के फूल के खिलने से ऐसा मालूम पड़ रहा है, जैसे वह हल्दी लगाकर दुल्हन का रूप धारण करके खेत रूपी मंडप में बैठी है | तत्पश्चात्, कवि कहते हैं कि ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे फागुन का महीना स्वयं फाग (होली के गीत) गीत गाता हुआ आ गया हो | कवि आगे कहते हैं कि उक्त मनोरम दृश्य देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे स्वयंवर हो रहा है | कवि के मन में भी प्रकृति के प्रति अनुराग की भावना जागृत होने लगती है | कवि को लगता है कि गाँव की हरियाली और मनोहर दृश्य उस नगर से बहुत अच्छा और सौंदर्य से भरा है, जो नगर सिर्फ व्यापार और ऊँची-ऊँची इमारतों का प्रतीक बनकर रह गया है | 

(3)- और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वो भी लहरियाँ | 
एक चांदी का बड़ा-सा गोल खम्भा
आँख को है चकमकाता | 
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुप चाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी ! 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि केदारनाथ अग्रवाल जी के द्वारा रचित कविता चंद्र गहना से लौटती बेर से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कह रहे हैं कि वे जहाँ पर बैठे हुए हैं, वहीं पर से एक पोखर या तालाब भी स्थित है, जिसमें लहर हिलकोरे ले रहे हैं | वहीं बगल में खुले आसमान के नीचे भूरी घास भी उगी हुई है, जो हवा के झोंके से हिल रही है | सूर्य की किरणें जब तालाब के पानी में पड़ती हैं, तो उसका प्रतिबिम्ब पानी पे एक चाँदी के खम्बे के सामान प्रतीत होता है, जो कवि की आँखों में भी चमक रहा है | कवि आगे कहते हैं कि तालाब के किनारे कई पत्थर भी पड़े हैं, जब तालाब की लहरें पत्थरों को भिगोते हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है मानो पत्थर भी चुपचाप पानी पी रहे हैं | पर कवि के अनुसार, अब तक उन पत्थरों की प्यास नहीं बुझी है | वे कह रहे हैं कि जाने कब तक उनकी प्यास बुझेगी | 

(4)- चुप खड़ा बगुला डुबाये टांग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले को डालता है ! 
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में ! 
औ’ यहीं से -- 
भूमि ऊंची है जहाँ से -- 
रेल की पटरी गयी है | 
ट्रेन का टाइम नहीं है | 
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ,
जाना नहीं है | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि केदारनाथ अग्रवाल जी के द्वारा रचित कविता चंद्र गहना से लौटती बेर से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कह रहे हैं कि तालाब में कुछ बगुले भी हैं, जो दिखने में बिल्कुल शांत और स्थिर लगते हैं, परन्तु ज्यों ही कोई मछली उन्हें पानी में नजर आती है, वे बगुले तुरन्त अपनी चोंच पानी के अंदर डालकर मछली को निगल जाते हैं | कवि आगे कहते हैं कि एक सफेद पंखों वाली चिड़िया, जिसका माथा या सिर काले रंग का होता है, वह तालाब के ऊपर से मंडराते हुए तालाब के पानी में एकाग्रतापूर्वक ध्यान रखती है | जैसे ही उसे कोई मछली नजर आती है, वह फौरन टूट पड़ती है मछली पर और अपने पीले रंग के चोंच में दबाकर खुले आसमान की तरफ़ उड़ान भर लेती है | तत्पश्चात्, कवि कहते हैं कि मैं जहाँ पर हूँ, वहीं से भूमि ऊँची उठी है अर्थात् कवि का तातकालिन स्थान ऊँचाई पर स्थित है | वहीं पर से रेल की पटरी गुजरी है, जहाँ पर कवि ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं | किन्तु, अभी ट्रेन आने का समय नहीं हुआ है | आगे कवि कहते हैं कि ट्रेन के देरी होने पर मुझे कोई अफसोस नहीं है, कवि वहाँ बिल्कुल स्वतंत्र हैं | वे प्राकृतिक सुंदरता और मनोरम दृश्य का मजा ले रहे हैं | जबकि शहरी इलाकों में ऐसी हरियाली का अभाव पाया जाता है | 


(5)- चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊंची-ऊंची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं | 
बाँझ भूमि पर
इधर उधर रीवां के पेड़
कांटेदार कुरूप खड़े हैं | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि केदारनाथ अग्रवाल जी के द्वारा रचित कविता 'चंद्र गहना से लौटती बेर' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि चित्रकूट की पहाड़ियाँ, जो थोड़ी चौड़ी और ऊँची है, वो दूर तक फैली हैं | कवि आगे कहते हैं कि उन पहाड़ियों के बंजर भूमि पर केवल रीवां नामक कंटीले और भयानक दिखने वाले पेड़ लगे हुए हैं | 

(6)- सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
मन होता है-
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची-प्रेम कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि केदारनाथ अग्रवाल जी के द्वारा रचित कविता चंद्र गहना से लौटती बेर से उद्धृत हैं | कवि उस प्राकृतिक वातावरण में गूंजती तोते और सारसों की मीठी आवाज़ से प्रभावित हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि जब वनस्थली में तोते का स्वर गूँजता है "टें टें टें टें" , तो वे आनंदित हो उठते हैं | वे तोते के मीठे रस भरे ध्वनियों का हिस्सा बनने को व्याकुल हो उठते हैं | कवि आगे कह रहे हैं कि जब उस वनस्थली में सारस का स्वर गूँजता है "टिरटों टिरटों" , तब वास्तव में मेरा मन करता है कि मैं भी पंख फैलाकर सारस के संग उड़ जाऊँ और उस हरे-भरे खेत में पहुँच जाऊँ, जहाँ सारसों की जोड़ी प्रेम के गीत गा रहे हों | वहीं कहीं छुप-छुपकर सारसों की प्रेम कहानी सुन लूँ | अत: कवि को उस प्राकृतिक वातावरण और वहाँ पर प्रकृति के बेहतरीन कृतियों से लगाव हो गया था, जिसे छोड़कर आगे बढ़ना उन्हें कतई मंजूर नहीं था | 


चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का सारांश 


प्रस्तुत पाठ या कविता चंद्र गहना से लौटती बेर कवि केदारनाथ अग्रवाल जी के द्वारा रचित है | कवि अग्रवाल जी ने इस कविता में प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत चित्रण किया है तथा उनका इस कविता में प्रकृति के प्रति गहरा प्रेम प्रकट हुआ है | वे चंद्र गहना नामक जगह से लौट रहे हैं | चुँकि स्वभाव से वे किसान-पुत्र हैं, इसलिए उनका किसान मन खेत-खलिहान एवं प्राकृतिक वातावरण के प्रति आकर्षित हो जाता है | प्रस्तुत कविता में कवि  केदारनाथ अग्रवाल जी की उस सृजनात्मक कल्पना की अभिव्यक्ति उजागर हुई है, जो साधारण चीजों में भी असाधारण सौंदर्य देखने और व्यक्त करने में सफल है | इस प्राकृतिक सौंदर्य बोध कविता में प्रकृति और संस्कृति की एकता व्यक्त हुई है, जो स्वयं में अनुपम, अद्भुत और मनोरम है...|| 


चंद्र गहना से लौटती बेर के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 ' इस विजन में ..... अधिक है ' --- पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों ?

उत्तर- ' इस विजन में ..... अधिक है ' --- इन पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का आक्रोश यह है कि वे नगर के मतलबी रिश्तों या व्यवहारों के विरुद्ध हैं |

कवि का मानना है कि नगर या शहर के लोग प्राकृतिक सौंदर्य और प्रेम के स्थान पर पैसे को अधिक महत्व देते हैं | उन्हें गाँव के सादगीयुक्त प्रकृति के सुंदर नजारे का कोई मोल ही नहीं | कवि के आक्रोश का मुख्य कारण यह है कि उन्हें आडंबरयुक्त जीवन पसंद नहीं है तथा वे प्रकृति से अत्यधिक लगाव और प्रेम रखते हैं | 

प्रश्न-2 सरसों को 'सयानी' कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा ?

उत्तर - सरसों को 'सयानी' कहकर कवि यह कहना चाहते होंगे कि सरसों की फसल पूर्ण रूप से पक गई है अर्थात् तैयार हो चुकी है, जिसे खेतों से काटकर घर लाया जा सकता है | 

प्रश्न-3 अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए | 

उत्तर- कवि कहते हैं कि पास में ही चने के पौधे के साथ-साथ अलसी का पौधा भी उगा हुआ है, जो बेहद पतली है | अलसी के पौधे का पतला होना और हवा के झोंके से उसके हिलने की प्रकिया को कवि ने देह की पतली और कमर की लचीली कहके संबोधित किया है | कवि ने बड़ी सुंदरता से अलसी के पौधे को नायिका का प्रतिरूप बना दिया है | कवि के अनुसार, अलसी के पौधे के ऊपरी भाग में नीले रंग के फूल खिले हैं, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो अलसी के पौधे अपने हाथों में फूल लेकर नायिका के रूप में कह रही हों कि जो उसके प्रेम रूपी फूल को लेगा या स्वीकार करेगा, वो उसको अपना दिल दे देंगी अर्थात् उस पर अपने प्रेम को न्योछावर कर देंगी | 

प्रश्न-4 अलसी के लिए 'हठीली' विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है ?

उत्तर- अलसी के लिए 'हठीली' विशेषण का प्रयोग इसलिए किया गया है कि अलसी कवि के कल्पनात्मक दुनिया में एक नायिका का प्रतिरूप है, जो ये हठ कर बैठी है कि जो उसके सिर पर रखे नीले फूल को लेगा, वह उसे ही अपना दिल देगी | 

इसका दूसरा दृष्टिकोण यह हो सकता है कि अलसी हठीली इसलिए है कि वह जबरदस्ती एक ही खेत में चने के पौधे के साथ उग आई थी | 

प्रश्न-5 'चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा' में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है ? 

उत्तर- 'चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा' में कवि की यह सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है कि जलाशयों में संग्रहित पानी पर जब दिन के वक़्त सूरज का प्रकाश पड़ता है, तब प्रकाश के परावर्तन के कारण पानी पर गोल व लम्बवत चमक पैदा होता है | उसी परावर्तन को देखकर ऐसा आभास होता है मानो पानी पर कोई गोल तथा लम्बवत चाँदी का चमचमाता खंभे का प्रतिबिम्ब है | अत: पानी पर खम्बे की कल्पना ही कवि की सूक्ष्म कल्पना है | 

प्रश्न-6 कविता में से उन पंक्तियों को ढूँढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है --- 

और चारों तरफ़ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है | 

उत्तर- कविता में पंक्ति - 

चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं | 
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रींवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं | 
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें ;

प्रश्न-7 काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है ? 

उत्तर- काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया मेरी दृष्टि में इस व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है कि समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो दोहरे चरित्र के होते हैं | अर्थात् कुछ लोग एक ओर तो समाज के हितकारी बने फिरते हैं | वहीं दूसरी ओर अवसर मिलने पर अपना स्वार्थ साधने से बाज भी नहीं आते | 

प्रश्न-8 कविता के आधार पर 'हरे चने' का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि अग्रवाल जी ने चने का बेहद सुंदर तरीके से मानवीकरण किया है | कवि कहते हैं कि वे 'चंद्र गहना' नामक गाँव देखकर आ गए हैं | लौटते हुए जब वे खेत के मेड़ पर बैठकर आस-पास के प्राकृतिक दृश्य पर अपनी दृष्टि डालते हैं, तो उन्हें खेतों में लगे चने के पौधे दिखाई देते हैं | कवि चने के पौधे का बेहद जीवंत मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि महज एक बीते के बराबर यह हरा चना, जो नाटे कद का है, खेतों में लहलहा रहा है | चने के पौधे के ऊपरी हिस्से पर गुलाबी रंग के जो फूल खिले हैं, वह किसी पगड़ी के समान दिख रहे हैं | मानो ऐसा आभास हो रहा है, जैसे कोई दूल्हा पगड़ी पहनकर सज-धजकर स्वयंवर के लिए खड़ा है |


प्रश्न-9 भाषा-अध्ययन - 

कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस-पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए | 

उत्तर - मुहावरे - 

• एक बीते के बराबर --- बौना या छोटे कद का होना ---  बीते भर का होके बड़ों से जुबान लड़ाएगा | 

• हृदय का दान --- कोई कीमती या प्यारी वस्तु दान कर देना --- उसने अपना सारा जायदाद अनाथों के नाम करके हृदय का दान कर दिया है | 

• प्यास न बुझना --- संतुष्टि न मिलना --- उसकी दौलत पाने की प्यास अभी तक न बुझी | 

• सिर पर चढ़ाना --- अत्यधिक लाड़-प्यार करना --- राजू को सिर पर चढ़ाने का नतीजा है कि आज वह पढ़ाई में ध्यान नहीं देता है | 

• हाथ पीले करना --- शादी करना --- रामू को बस यही चिंता लगी रहती है कि उसकी जवान बेटी के हाथ कब पीले होंगे | 

• टूट पड़ना --- हमला करना --- डाकूओं को देखते ही पुलिस उनपर टूट पड़ी | 



चंद्र गहना से लौटती बेर के शब्दार्थ 


• शीश -         सिर, माथा, ऊपरी हिस्सा 
• निद्रा -         नींद 
• ठिगना -       नाटा, बहुत छोटे कद का 
• मुरैठा -        पगड़ी (सर पर पहना जाने वाला) 
• श्वेत -          सफेद, सादा 
• हठीली -      जिद्दी, अपनी बातों पर अड़ जाना 
• फौरन -       तुरन्त 
• फाग -         होली के अवसर में गाई जाने वाली गीत 
• पोखर -       छोटा तालाब
• चट -          तुरंत, फौरन 
• मेड़ -          दो खेतों के मध्य मिट्टी का बना रास्ता 
• जुगुल -        युगल, जोड़ा 
• चकमकाना -  चकाचौंध पैदा करना 
• चटुल -          चालाक, तेज, चतुर |



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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: चंद्र गहना से लौटती बेर कविता
चंद्र गहना से लौटती बेर कविता
चंद्र गहना से लौटती बेर - केदारनाथ अग्रवाल चंद्र गहना से लौटती बेर चंद्र गहना से लौटती बेर extra questions chandra gehna se lauti ber full poem chandra gehna se lotati ber prashn uttar class 9 hindi chapter 14 question answer चंद्र गहना से लौटती बेर' कविता में कवि चने के पौधे को किस रूप में देखता है ? अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए चन्द्र गहना chandra gehna se lauti ber class 9 से लौटती बेर व्याख्या Chandr gahna se Poem Explanation विजन किसी व्यापारिक नगर से क्यों श्रेष्ठ है Chandra Gehna Se Lautti Ber चंद्र गहना से लौटती बेर Q and A Class 9 Hindi (Kshitij) Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर A Poem by Kedaranath Agrawal Ncert Cbse चंद्र गहना से लौटती बेर class 9 चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का भावार्थ अर्थ
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