मजदूर और भिखारी मारे देश में ऐसे अनेक लोग है जो मजदूरी करके और भीख मांगकर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी गुजारते है और इसप्रकार की जिंदगी जिने के लिए उन्हें उनकी पृष्ठभूमी तथा परिस्थितियां विवश करती है। हमारे देश में ऐसे भी लोग है जो सिर्फ बिना मेहनत के दूसरों के बल पर जिंदगी जिना पसंद करते है।
मजदूर और भिखारी
बहूत दिन हूए, मैं इस विषय पर लिखने कि कोशिश कर रही हूँ। लेकिन कहा से शुरू किया जाए यह समझ में नहीं आ रहा था। आखिर मैंने आज तय किया कि लिख दूँ क्योंकि बातें मैं जो लिखने जा रहि हूँ यह मेरे मन में बार बार आती जा रही थी। आशा करती हूँ कि आपको भी यह पसंद आए।
मैं एक गाँव में रहनेवाली किसान की लड़की। हमारे गाँव में अलग प्रकार की खेती की जाती है और हमारा परीवार उन्हीं खेती पर आधारित है। कहा जाता हैं कि हमारा देश कृषि प्रधान देश हैं और यह बात सच हैं क्योंकि कृषि के बिना हमारा जिवन संभव नहीं है। हमारे देश में ऐसे बहुत सारे लोग है जीनके पास न जमिन है और न नौकरी। रोजमर्रा की जिंदगी जिने के लिए उन्हें दूसरों के वहाँ जाकर मजदूरी करनी पडती है। ऐसे बहुत सारे लोग है ज्यादातर झारखंड, बिहार इलाकों के जो अपने घर,परिवार, गाँव को छोडकर मजदूरी करने के लिए उन्हे दूसरें जगह जाना पडता है। हमारे गाँव में भी बहुत सारे लोग मजदूरी करने के लिए बिहार और झारखंड इलाकों में से आए हूए है और हमारी खेती में भी सारे मजदूर झारखंड के अलग अलग इलाकों में से आये हुए है। वे सारे मजदूर आदिवासी है। हम भी आदिवासी है लेकिन हमारी और उनकी संस्कृति, परंपरा, धर्म अलग है। वे बहुत ही मजबूत और मेहनती है।
उन मजदूरों में से दो मजदूर शारीरिक विकलांग थे। वे बहूत ही कम उम्र के थे। उनकी इन परिस्थिति के बारें में
मजदूर और भिखारी |
मार्च-मई महिनों में हमारे इलाकों में काजू इकट्ठा करके शराब बनाने तक का काम बहूत जोरो से किया जाता है। यह काम हमारे साथ हमारे मजदूर लोग भी करते है। जब मैं उनके साथ काजू इकट्ठा करने जाती थी उस वक्त मैंने देखा कि एक माँ करिब एक साल के अपने बच्ची को पीठ पर बांधकर काजू इकट्ठा करने का काम करती थी। उसको देख मैं सोच में पडी कि आखिर ये औरत कैसे कर रही है यह काम क्योंकि वह काम खड्डों पर चढकर, एक हाथ में बाल्टी और दूसरें हाथ में काजू इकट्ठा करने की लकड़ी पकड़कर काम करना पड़ता था और ऊपर से उसकी पीठ पर बच्ची का बोझ। कभी कभी वह बच्ची बहुत रोती थी।उसकी पीड़ा और संवेदना को देख मुझे बहुत दुख होता था लेकिन वो बिचारी कर भी क्या सकती थी? उसका पती मजदूरी करता था लेकिन सारा पैसा दारू पिने में खर्च करता। घर का सारा बोझ उसी के उपर था और एक तरफ से पती द्वारा शोषण। वह बिचारी सभी सहती थी,चूप रहती थी, अपनी पीड़ा को छिपाती थी। उसीप्रकार से वे जो दो शारीरिक विकलांग थे वे भी बहुत परिश्रम करके अपने परिवार की देखबाल करते थे।
एक दिन मैं मेरे दोस्त के साथ सामान खरीदने बाजार गई थी।तब मैंने देखा कि एक माँ अपने करीब एक साल के बच्चे को गोद में लिए सड़क पर बैठे भीख मांग रही थी। उसको देख मुझे हमारे वहाँ मजदूरी करनेवाली उस माँ की याद आयी जो अपनी बच्ची को पीठ पर बांधकर मजदूरी करती थी। कितना अजीब जमाना है हमारे देश का कोई मजदूरी करके तो कोई भीख मांगकर अपना जीवन गुजारते है। इनकी जैसी बहुत मातायें देखी है मैंने जो अपने बच्चों को भीख मांगने के लिए विवश करती है। कहा जाता है कि एक औरत अलग प्रकार का रूप धारण करती है। मैंने यह दो रूप देखे एक मजदूरी करने वाला और एक भीख मांगनेवाला। इस प्रकार से मैंने बाजार या मेलों में भी बहुत सारे शारीरिक विकलांग लोग भी देखे है जो भीख मांगते है। उनको देख मुझे हमारे यहाँ काम करनेवाले उन लड़कों की याद आती है जिनका पैर और गर्दन ठीक नहीं है फिर भी वे काम करके अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जिते है न की भीख मांगकर। अब ये लोग मजदूरी कर सकते है तो वो क्यों नहीं ? क्या भीख मांगना जरूरी है? भगवान या किस महापुरूष ने कहा है कि तुम मजदूरी करों और तुम भीख मांगो ? यहीं बात मुझे कहने के लिए बार बार विवश कर रही थी।
इस प्रकार से हमारे देश में ऐसे अनेक लोग है जो मजदूरी करके और भीख मांगकर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी गुजारते है और इसप्रकार की जिंदगी जिने के लिए उन्हें उनकी पृष्ठभूमी तथा परिस्थितियां विवश करती है। हमारे देश में ऐसे भी लोग है जो सिर्फ बिना मेहनत के दूसरों के बल पर जिंदगी जिना पसंद करते है। भगवान ने हमें बहुत कुछ दिया है जिसका उपयोग करके हमें इमानदारी से काम करना है। स्वतंत्रता और मुक्ती से जीवन जिना है न किसी के दबाव में आकर और न किसी के सामने अपना हाथ फैलाकर।
- प्रियांका देऊ वेळीप
शोधार्थी, गोवा विश्वविद्यालय
velippriyanka1996@gmail.com
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