हिंदी भाषा और शहरी लहजा

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हिंदी भाषा और शहरी लहजा बोली भाषा की छोटी इकाई है । इसका संबंध ग्राम या मंडल से होता है । किसी सीमित क्षेत्र की उपभाषा को बोली कहते है । भाषा व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध होती है । पाश्चात्य विचारक ब्लुमफील्ड के अनुसार – “ आई हैव नन ( I have none ) ’ यह भाषा का रूप है और “ आ हाए नेन ’ तो यह बोली है। इस उदाहरण में व्याकरण और शब्द भंडार एक ही है , भेद केवल शब्दों के उच्चारण में है ।

     हिंदी भाषा और शहरी लहजा
(सोलापुर के सन्दर्भ में..... )

भाषा मनुष्य का भाव साधन रूप है । वह मनुष्य का आईना होती है । भाषा वह इकाई है , जिसका संबंध मानव जाति से है । भाषा के बनने में बोली सहायक होती है और सबसे मुख्य है कि बोली और भाषा में अंतर समझना। 
बोली भाषा की छोटी इकाई है । इसका संबंध ग्राम या मंडल से होता है । किसी सीमित क्षेत्र की उपभाषा को बोली कहते है । भाषा व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध होती है । पाश्चात्य विचारक ब्लुमफील्ड के अनुसार – आई हैव नन ( I have none ) ’ यह भाषा का रूप है और आ हाए नेन ’ तो यह बोली है। इस उदाहरण में व्याकरण और शब्द भंडार एक ही है , भेद केवल शब्दों के उच्चारण में है । व्यक्ति जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं में अपनी बोली में चाहे जितने परिवर्तन करे , जिस समाज में वह रहता है उसमें उसकी बोली समझी जाती है । ठीक उसी तरह शहरी लहजे में वही अंतर है। भाषा उचित उच्चारण एवं व्याकरण की पूर्णताओं से भरपूर होती है । हिंदी भाषायी वाक्य पद्धति कर्ता +कर्म +क्रिया है जैसे – ‘ राम ने फल खाया। ’ परंतु लहजे में मनुष्य कर्म +कर्ता +क्रिया इस तरह भी रख सकता है अर्थात ‘ फल राम ने खाया। ’ यह व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध है । भाषा के विकास में स्थान विशेषोच्चारण भाषा के सौन्दर्य का साथी होता है । 
           हमारे सोलापुर शहर में विविध बोलियों का प्रयोग किया जाता है , जिसका प्रभाव हिंदी भाषा पर पडा है। व्यक्ति अपनी भावनाओं को जिस लहजे में प्रकट करता है वह व्यक्तिविशेष भाषा का रूप बन जाता है । शुद्ध भाषा और शहरी लहजे में अंतर क्या है ? इसका अध्ययन हमें इस अनुसंधान में मिलेगा । 
         भाषा का संबंध मनुष्य से है और मनुष्य का समाज से , परिवार से , पडोस से , पडोस के परिवेश से है । मनुष्य उसी लहजे को अपनाता है जो उसे सरल लगता है । अगर कोई शब्द उसके लिए कठीन लगता है तो वह
 हिंदी भाषा और शहरी लहजा
 हिंदी भाषा और शहरी लहजा 
अन्य भाषा से उसके लिए समान शब्द लेता है। जैसे – ‘ लोह पट् टी युक्त अग्नि रथ-पथ विश्राम धाम। ’ इसका प्रयोग न करते हुए वह अंग्रेजी शब्द
स्टेशन का प्रयोग करता है। इसका एक कारण है कि भाषा कठिनाई से सरलता की ओर जाती है । एक ही स्थान पर कार्य करनेवाले लोग एक भाषायी नही होते है । सोलापुर तो बहूभाषी शहर है । जिसके कारण सभी भाषाएँ एक दूसरे में मिश्रित हो जाती है और व्यक्तिविशेष का लहजा निर्माण हो जाता है परंतु हिंदी ऐसी भाषा है , जिससे सभी परिचित होते है इसलिए हर कोई अपने लहजे में कहता है। यह जनसंपर्क की भाषा है और हमारे लिए आवश्यक है कि जिस हिंदी का प्रसार हो रहा है वह किस प्रकार है? वहाँ का लहजा किस प्रकार का है ? 
        सोलापुर शहर के नाम में ही भाषा विज्ञान का अध्ययन छिपा है। सोलापुर दो शब्दों से मिलकर बना है ‘ सोला और पुर ’ । ‘ सोला अर्थात सोलह , पुर अर्थात गाँव । ’ ‘ सोलह गाँव ’ इस तरह माना जाता था । परंतु एक संशोधन से ज्ञात होता है कि यह मुस्लिम शासनकाल में ‘ सोनलपुर ’ था और समय के साथ ‘ न ’ वर्ण लुप्त हो गया और ‘ सोलापुर ’बन गया। इतना ही नही ‘ स’ और ‘श ’वर्ण  उच्चारण भेद को लेकर यह ‘ शोलापुर ’ बना था । जिसका अर्थ अत्यंत गूस्सेवाले लोगों का गाँव माना जाने लगा । बाद में ब्रिटिशशासन काल में ‘ सोलापुर ’ रह गया । इससे हमें यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि मनुष्य हमेशा शब्दों को तोड-मरोड कर प्रयोग करता है। समाज जिस भावना के लिए शब्द कहता है वह शब्द प्रचलित हो जाता है । मनुष्य भाषा का अर्जन समाज से करता है । 
       सोलापुर की जनसंख्या 2011 के अनुसार 12,50000 है। शहरी लोकसंख्या 32.4% है। यह ऐसा शहर है जिसको लगकर कर्नाटक राज्य की सीमा मिलती है। जिसके कारण यहाँ की बोलियों पर उनका प्रभाव दिखाई देता है। एक स्थान पर कहे जानेवाले शब्द दूसरे स्थान पर कहे जाते है तो वहाँ अर्थ भिन्न होता है । उदा. –‘ मौज’ यह शब्द कर्नाटक( कलबुर्गी) में ‘ केले’ के लिए प्रयोग होता है परंतु यहाँ ‘ मौजे ’ जुराब  ( socks) के अर्थ में प्रयोग होता है । सोलापुर महाराष्ट्र में  स्थित होने के कारण यहाँ की मुख्य मातृभाषा मराठी है । यहाँ पर मराठी, हिंदी , कन्नड , तेलगु अधिक बोली जानेवाली भाषाएँ है। जिनके उपभाषाओं के रूप में निम्नलिखित बोलियाँ बोली जाती है – कैकाडी , पारधी , गोरमाटी , राजस्थानी , मारवाडी , वडारी आदि। इस शहर में अनेक धर्म के माननेवाले लोग बसते है जिसका प्रभाव हिंदी भाषा पर पडा । हिंदु धर्म के अंतर्गत ब्राम्हण , लिंगायत , मराठा , विरशैव , चमार, ढोर , मतांग , लमाण आदि। इनके अतिरिक्त बौद्ध , जैन , ख्रिश्चन और मुस्लिम है। इन सबसे होकर हिंदी भाषा का लहजा आता है। सोलापुरवासियों की विशेषता है कि वह संयुक्ताक्षर का प्रयोग अधिक करते है। शब्दों का उच्चारण खींच कर करते है या झट से। दीर्घ स्वर को र्‍हस्व  स्वर और र्‍हस्व को दीर्घ स्वर कर देते है। जैसे – कैसा शब्द का उच्चारण कइसा और कहाँ का उच्चारण कां इस प्रकार करते है। इसके अतिरिक्त कई वर्णो का उच्चारण इनके लहजे में है जैसे – च , कू , इ ,सो , कते , शी आदि । इनका प्रयोग वह शब्द के अंत में करते है। 
     सोलापुरी लहजे की विशेषता है कि वह  बे के बिना पूर्ण नही होता है। सोलापुरी होने की मुख्य पहचान है। हिंदी भाषा उच्चारण के समय मराठी लहजा भी इसमें आ जाता है। जैसे- होनाच , करनाच आदि। इसके अतिरिक्त हिंदी और मराठी में कुछ ऐसे शब्द है जो एक से है परंतु अर्थ की दृष्टि से भिन्न है। जैसे ‘ चेष्टा ’ शब्द। हिंदी में प्रयास और मराठी में मजाक का अर्थ है। अगर गलती से गलत अर्थ ग्रहण किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा। कन्नड भाषा में अ, उ , ऊ ध्वनियों का अधिक प्रयोग होता है जिसका प्रभाव हिंदी लहजे पर पडा। जैसे- किसलिए पूछने के लिए कायकू शब्द का प्रयोग हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि कन्नड भाषा का प्रभाव हिंदी पर पडा। तेलगु भाषायी लोग वर्ण का उच्चारण से ही करते है जैसे हमेशा को अमेशा । झट से उच्चारित करते है। इन सभी भाषाओं का मिश्रण हिंदी लहजे में हमें मिलता है। 
       कहा जाता है कि- ‘ दस कोस पर पानी बदले , बीस कोस पर बानी ( वाणी ) । ’ परंतु सोलापुर में हर घर , हर गली लहजा बदल जाता है। निम्नलिखित कुछ शब्द है जिनका प्रयोग सोलापुरी लहजे में इस प्रकार होता है । जैसे – उसे - उशे , नही- नकको , स्टेशन- टेशन , गली- गल्ली / बोळ , शरारती बच्चा- औचारी , कारण प्राप्ती के लिए – कि / क्यकू , स्कूल-साल , भोजन होने के संदर्भ में – टाकन हुआ क्या ? आदि । ऐसे कई शब्द है जिनका प्रयोग केवल सोलापुर में ही होता है । इससे यह स्पष्ट होता है कि ‘ लहजे पर स्थानीय उच्चारण का प्रभाव पडता है।’ सोलापुर के गली कूचों में अगर महिलाओं के हिंदी लहजे को देखा जाए तो उनके लहजे में गे ध्वनि का समावेश है। जैसा की मराठी में काय ग ? इस प्रकार है उसी तरह क्या गे , आगे का प्रयोग करते है। इसके अतिरिक्त बच्चों के लहजे की बात की जाए तो वह इस प्रकार है – मइ भागते-भागते गया धपकन पड्या । वह व्याकरण की दृष्टि से नही बोलेगा। बच्चों के संदर्भ में देखे तो वह कभी शुद्ध भाषा नही बोलते । 
     अगर भाषा की समृद्धि और सभ्यता का विकास देखना है तो वह निम्न तीन स्त्रोतों से देख सकते है – मुहावरे , कहावते और लोकोक्तियाँ । मुहावरे मुलत: अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बातचीत या उतर देना । मुहावरे भाषा को सुदृढ , गतिशील और रुचिकर बनाते है। कहावतें आम बोलचाल में प्रयोग होनेवाले उस वाक्यांश को कहते है जिसका संबंध पौराणिक कहानी से जुडा होता है या जीवन के दीर्घकाल के अनुभव को वाक्य द्वारा कहना। और अंत में लोकोक्ति लोगों के मुंहचढे वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते है। 
        सोलापुर शहर में हिंदी भाषा का सौन्दर्य इन मुहावरे , कहावतें और लोकोक्तियों से है। जिसका अर्थ केवल सोलापुरी ही लगा सकता है । अन्य शहर का व्यक्ति अर्थ जानकर आश्चर्य में रह जाएगा। वह इस प्रकार है –                             

मुहावरे
क्रं 
              मुहावरे 
                          अर्थ 
दीवार पडना 
विवाह समारोह में भोजन खत्म होना । 
झाडी करना 
ताक-झाक करना / छिप कर देखना 
देढ शहना 
अल्प ज्ञान रखनेवाला व्यक्ति । 
मट् टी डालो  
किसी बात को भूलने के लिए । 
उड जाना 
किसी की मृत्यू होने पर । 

कहावतें
क्रं 
              कहावतें 
                          अर्थ 
मोर का नाच मुर्गी क्या जाने । 
किसी का अनुकरण करने के बाद भी उसके जैसी प्रतिभा न आना।  
जा बेटा काम कू क्या खाएगा शाम कू ।  
वृद्ध लोगों का युवाओं के रोजगार के संदर्भ में कहना। 
बंदर के हाथ नारियल । 
अज्ञानी मनुष्य के लिए 
देख कर आ बोले तों भौंक कर आया । 
कोई संकट लाने पर । 
जैसा बाप वैसा बेटा । 
बाप बेटे की समानता । 
बंद मुठ्ठी लाख की खोले तो खाक की 
भ्रम टूट जाने पर ।  
लोकोक्तियाँ
क्रं 
              लोकोक्तियाँ
                          
                                          अर्थ 
चमचा 
किसी की हाँ जी करना । 
स्टेशन 
अधिक बातें करनेवाला व्यक्ति जब दूर से दिखाई देता है तों इस शब्द का प्रयोग होता है । 
अवलीपीर  
अत्यंत शरारती बच्चे को कहा जाता है । 
छिपकली 
छिपकर बातें सुननेवाली महिला ।  
चिल्लर 
मनुष्य जब व्यर्थ बाते करता है तो उसकी बातों को चिल्लर बाते कहना। 
औकाली 
शरारती बच्चे को । 
            
           
ऐसे कई कहावते , मुहावरे व लोकोक्तियाँ है जो की स्थानीय है जिनका साहित्यिक हिंदी से कुछ लेना देना नही है । यह दैनिक जीवन में आमतौर से प्रयोग होते है। जो मुख से निकल ही जाते है। दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए प्रयोग में आते है। ’’
                 
अगर हम शिक्षितवर्ग के हिंदी लहजे को देखे तो वह हिंगलिश है।  जिसके अंतर्गत चार शब्द हिंदी के है तो दो अंग्रेजी के शब्द होते है। इसका प्रमाण हमें शैक्षणिक स्थलों , अपार्टमेंटो , सोसायटियों आदि पर देखने को मिलता है। आधुनिकता के कारण लोगों की हिंदी भाषा पर भी प्रभाव पडा है। सोशल मीडिया साईटस फेसबुक , इनस्टाग्राम , ट्विटर आदि से इसका अनुकरण किया जाता है जैसे – done यार , chill मार , cool यार , sorry, please , thanks , hi आदि । ऐसे कई शब्द जो हिंदी लहजे में प्रयोग होते है। हिंदी भाषायी लहजे में उर्दू शब्द भी पीछे नही है । हिंदी और उर्दू आपस में मिलती- झुलती भाषाएँ है। ’’   हिंदी उर्दू एक ही जाति की भाषाएँ है। ’’ ८  इसलिए इनकी बुनियादी एकता को कभी भूलना नही चाहिए । उर्दू शब्दों के बिना हिंदी फिल्मों के गीत तथा फिल्म पूर्ण हो ही नही सकते। इन्हीं से मनुष्य शब्द ग्रहण करके अपने लहजे में लाता है। अगर आम तौर से देखा जाए तो निम्नलिखित कारण लहजा बनने में योगदान देते है – 
भौगोलिक वातावरण
                                                            
                            शिक्षण के आधार पर                  कारण           सामाजिक परिवेश
                                                          
                                                              अन्य भाषाओं का प्रभाव 
    लहजा बनने के मुख्य कारणों में से एक भौगोलिक वातावरण है। सोलापुर के सुखे वातावरण के कारण यहाँ के उच्चारण पर प्रभाव पडा है। सोलापुर मैदानी भाग है और मैदानी भागों में भाषा का विकास शीघ्रता से होता है। और इन इलाकों में दूर-दूर तक संपर्क बनाया जा सकता है। यही कारण है कि सोलापुर में कई बोलियाँ बोली जाती है। शैक्षणिक स्तर के भेद या धर्म भी लहजा बनने के कारणों में से एक है। लहजे के बनने में परिवार भी मुख्य होता है। इसके अतिरिक्त शारीरिक भिन्नता या शब्द उच्चारण करने में दिक्कत हो तो वह भी एक कारण है। जैसे – स , श , वर्ण या न , ण आदि। वक्ता का कहना और श्रोता का गलत ग्रहण करने से वह शब्द समाज में आमतौर से प्रचलित होने लगते है। जैसे- इक्कीस को एक्कीस, और को , हौर आदि।  अरस्तू के अनुसार अनुकरण मनुष्य का प्रधान गुण है।’’ लहजे के अंतर्गत उन शब्दों का प्रयोग होता है जो सामान्य से सामान्य व्यक्ति समझ सकता है। जैसे कि – आज हम पानीपूरी वाले को नीरपूरी या जलपूरी नही माँग सकते। वहाँ पर शुद्ध हिंदी की कोई आवश्यकता नही , हम पानी ही कहेंगे । शब्दों का महत्व स्थान से होता है और मनुष्य भाषा व्यवस्था से अधिक भाषा व्यवहार को महत्व देता है। अगर सभी मनुष्य शिक्षित होते तो बोली का निर्माण ही नही होता । निष्कर्षत: हमें यह प्रश्न निर्माण होता है कि क्या हम मनुष्य के लहजे पर उसका स्वभाव या व्यक्तित्व तय कर सकते है ? जो भाषाविद के दृष्टि से भाषाशास्त्र का विषय बनकर भाषा के विकास में सहयोग दे सके।
       
निष्कर्ष :- १) सोलापुर शहर में जिस हिंदी का प्रयोग होता है , वह विभिन्न जनपदों के भाषाओं से होकर आता है। वहाँ की उपभाषाओं से प्रभावित होकर स्थानीय रूप ग्रहण कर लेता है। 
2) जब दों भाषा के लोग आपस में मिलते है , तो भाषा का विकास होता है और शब्द भंडार बडता है और लहजे पर प्रभाव पडता है। 
3) मुख्य बात सामने आती है कि जिस शहर के लहजे में कहे गए शब्द उसी शहर का मनुष्य उसका अर्थ समझ सकता है उन शब्दों से स्थानीय भावनाएँ जुडी रहती है। 
3) मनुष्य समय और व्यक्ति को देखकर अपने बात करने के लहजे में परिवर्तन करता है। 
4) लहजा मनुष्य के पेशे अथवा कार्य पर निर्भर होता है। 
5) लहजा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध है। 
         
सोलापुर बहुभाषिक  क्षेत्र वाला शहर है इसमें बोली जाने वाली बोलियां कहीं ना कहीं  भाषा  का सौंदर्य  बन  पायेगी  क्योंकि  व्यक्ति  उच्चारण  ही उसके  भाषा  का प्रमाण  होता है और वही  भाषा  के विकास का  प्रमाण l लहजे में मधुरता होती है। सोलापुर शहर में हिंदी भाषा का विकास मराठी . तेलगु , कन्नड , उर्दू आदि से प्रभावित होकर हुआ है।  अगर हम भाषा की शुद्धता के पीछे जाएंगे तो हम भाषा की सुंदरता एवंसौन्दर्य को खो देंगे।   भाषा की सुंदरता उसके  शहरी लहजे में है। भाषा तब ही विकास करती है जब वह स्थानीय रूप ग्रहण करती है। आज विश्व में ऐसी कई भाषाएं है जो मर रही है अर्थात खत्म हो रही है। अगर भाषा का विकास करना हो तो उस भाषा में इतनी क्षमता होनी चाहिए कि वह अन्य भाषाओं के शब्द ग्रहण करे। तब ही वह विकास के पथ पर होगी । हमारी हिंदी भाषा भी इस तरह की भाषा है। आज विश्व में सबसे अधिक कही व समझी जानेवाली भाषा है। सोलापुर में भी इसने स्थानीय रूप ग्रहण किया। भाषा के लहजे पर ही सैराट  नामक मराठी फिल्म ने पूरे मराठी फिल्मों का रेकॉर्ड तोड दिया। जिसमें सोलापुर के स्थानीय ध्वनियों का समावेश था , जिसे लोगों ने पसंद किया। 

संदर्भ ग्रंथ ( आधार ग्रंथ ) –
1) भाषा और समाज – रामविलास शर्मा , पृष्ठ क्रं – 336 
2) ऐतिहासिक महत्व सोलापुर. कॉम – पृष्ठ क्रं- 1 
3) www. Solapur. Gov. in – 
4) solapuri bolibhasha Wikipedia . com 
5) भाषा और समाज – रामविलास शर्मा , पृष्ठ क्रं- 45
6) वही , पृष्ठ क्रं- 452 
7) वही ,पृष्ठ क्रं- 455 

8) वही , पृष्ठ क्रं- 10 



- मिस्बाह  अ.हमीद पुनेकर 
वालचंद कॉलेज ऑफ आर्टस एंड साइंस सोलापूर.                                          misbapunekar19@gmail.com 9022687773 

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. Solapuri lahja ko aap ne vistar or rochak dhhang se prastut kiya hai👍👍

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  2. बोली के व्यवहार को आप ने निरीक्षण के माध्यम से विस्तार से प्रस्तुत किया है।

    जवाब देंहटाएं
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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: हिंदी भाषा और शहरी लहजा
हिंदी भाषा और शहरी लहजा
हिंदी भाषा और शहरी लहजा बोली भाषा की छोटी इकाई है । इसका संबंध ग्राम या मंडल से होता है । किसी सीमित क्षेत्र की उपभाषा को बोली कहते है । भाषा व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध होती है । पाश्चात्य विचारक ब्लुमफील्ड के अनुसार – “ आई हैव नन ( I have none ) ’ यह भाषा का रूप है और “ आ हाए नेन ’ तो यह बोली है। इस उदाहरण में व्याकरण और शब्द भंडार एक ही है , भेद केवल शब्दों के उच्चारण में है ।
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