टूटते रिश्ते बिखरते परिवार - दोषी कौन ?

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टूटते रिश्ते बिखरते परिवार - दोषी कौन ? टूटते घर दोषी कौन बदलते सामाजिक परिवेश पर एक सटीक प्रश्न है, तलाक के कारण टूटते घर। घर में बहुत से लोग रहते हैं। कोई विवाद का मुद्दा हो तो सभी अपनी राय देते हैं। परन्तु अपने देश में घर बनाने वाली और तोड़ने वाली औरत को ही माना जाता है। इसलिए यदि तलाक हो जाए तो आंख बंद करके पूरा दोष लड़की के ससुराल वालों से तालमेल और उसकी शिक्षा पर डाल दिया जाता है।

टूटते घर दोषी कौन 


बदलते सामाजिक परिवेश पर एक सटीक प्रश्न है, तलाक के कारण टूटते घर।  घर में बहुत से लोग रहते हैं। कोई विवाद का मुद्दा हो तो सभी अपनी राय देते हैं। परन्तु अपने देश में घर बनाने वाली और तोड़ने वाली औरत को ही माना जाता है। इसलिए यदि तलाक हो जाए तो आंख बंद करके पूरा दोष लड़की के ससुराल वालों से तालमेल और उसकी शिक्षा पर डाल दिया जाता है। ससुराल पक्ष उतना बेचारा नहीं है जितना दिखता है। बहू उतनी तेज नहीं होती जितना दिखया जाता है। कोई भी जीवित प्राणी लंबे समय तक जिन परिस्थितियों में रहता है, उनकी उसे आदत हो जाती है। आदतें कभी भी पलक झपकते ही नहीं बदलती हैं। यदि शादी के बाद कुछ दिन लड़की को बिना रोक टोक रहने दिया जाए तो वह बेहतर ढ़ंग से सामंजस्य स्थापित कर पाएगी ससुराल वालों के साथ। साथ ही उन्हें भी इस बात का ज्ञान होगा कि कौन सी आदत को बदलकर वह उनके अनुरूप
टूटते रिश्ते बिखरते परिवार
टूटते रिश्ते बिखरते परिवार
अपने आपको ढाल सकती है। दुर्भाग्यवश ऐसा किसी भी भारतीय घर में नहीं होता है। और पूरा दोष लड़की के सिर मढ़ दिया जाता है। घर टूटने के और भी कई कारण हैं। जैसे लड़कों की गलत आदतें। वो शराब पीना हो या उनकी दूसरी महिला मित्र। सहपाठी हो या सहकर्मी। शिक्षित समाज में नैतिक मूल्य महत्व खो चुके हैं। शिक्षा पाश्चात्य संस्कृति की संवाहक बनकर रह गई है।

मापदंड में परिवर्तन

आधुनिक शिक्षा व्यावहारिकता से  कोसों दूर है। संस्कार से दूर है। पाश्चात्य परिवेश और संस्कृति को अपनाना ही सिखाती है। यह बात भी सही है कि बदलते समय के साथ लड़कियों की परवरिश का तरीका भी बदला है। सभ्य परिवारों में बेटे और बेटी की परवरिश में अब कोई अंतर नहीं किया जाता। परन्तु ससुराल पक्ष का बहू के साथ व्यवहार अब भी वही है। बहू के रूप में अब भी आदर्श भारतीय नारी ही  स्वीकार्य है। जो घर को संभाले, सबकी पसंद का खाना बनाए, बर्तन, कपड़े धोए और उसके बाद नौकरी भी करे। एक अद्भुत व्यक्तित्व की परिकल्पना। क्या समय के साथ साथ ये मापदंड परिवर्तित नहीं होने चाहिए। बहू से की जाने वाली अपेक्षा और और ससुराल में उसकी भूमिका मे बदलाव नहीं आना चाहिए ? दुर्भाग्यवश बहू के लिए नियम बनाने वाली भी एक औरत ही होती है। कोर्ट के कुछ फैसलों से भारतीयता गायब है। वो संस्कार जिन्हे विदेशी गर्व से अपना रहे हैं, भारत से उद्देश्य पूर्वक भगाए जा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला, विवाहिता को प्रेमी के साथ रहने की स्वतंत्रता । क्या घर बचाएगा ? विदेशों से उन्मुक्तता की लहर भारत में लाकर संस्कारों की धज्जियां उड़ा देना क्या संबंधों को मजबूत बनाएगा ? भौतिकता
अर्चना त्यागी
अर्चना त्यागी 
को सर्वोपरि मान लेना क्या अध्यात्म से जोड़ पाएगा? आध्यात्मिक शक्ति जिसके लिए भारत विश्व में जाना जाता है।

भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है परन्तु उसके नागरिकों का मन मस्तिष्क अभी भी गुलाम है। भारतीयता तभी अच्छी लगती है जब तारीफ बाहर के मुल्क करें। वरना भारत में कुछ अच्छा नहीं है। वर्तमान भारतीय समाज न भारतीय है, न ही विदेशी।हम समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या सही है क्या ग़लत। या समझना नहीं चाह रहे हैं। ज़रूरत के अनुसार सिद्धांत बदल जाते हैं। सामाजिक, राष्ट्रीय कुछ भी नहीं है। स्वार्थपूर्ति के आधार पर समाज और राष्ट्र का महत्व है। कानून बनाने वाला तबका, कानून की पालना करने वाले सामान्य जन से बहुत दूर है।

बदलते परिवेश में हमारी सोच 

बहू को मालकिन का अधिकार भी कानून नहीं देता है।  बेटी के बदले बहू को हक मिलता तो वृद्धाश्रम नहीं बनाने पड़ते। पति की उस कमाई पर उसका हक है जो ससुराल वालों की जरूरत पूरी होने के बाद बच जाती है। वरना खुद की कमाई से अपनी जरूरतें पूरी करे। या अपने पीहर से अपनी आवश्यकता  की वस्तुएं लेकर आए। एक दोहरा मापदंड। हर जगह। जिस मनुष्य को कोई हक नहीं दिया गया है उसी से अपेक्षित है कि नियमों का पालन करे। लड़के के हिस्से की जिम्मेदारियों का निर्वाह करे। इस दौरान कुछ भी उंच नीच हो जाए तो दोष भी अपने सिर पर ले ले। भगवान से अब प्रार्थना यही होनी चाहिए कि बहू के रूप में रोबोट बनाए। जो बिना थके, बिना रुके सभी कार्य आदेश के अनुसार पूरे करे और हम जब आवश्यकता हो तभी उसे आवेश दें। इस विषय पर चर्चा खत्म नहीं होगी जब तक लड़की ओर बहू का पैमाना एक नहीं होगा। बदलते परिवेश में हमारी सोच नहीं बदलेगी। बस एक प्रश्न खुद से करना है क्या हमने वही परवरिश अपनी बेटी को दी है जो हम अपनी बहू की चाहते हैं ? क्या एक लड़की पूरे समाज के सामने इसलिए विवाह को मंजूरी देती है कि किसी का घर तोड़कर वापस अा जाएगी। क्या घर टूटने से उसे कोई मानसिक कष्ट नहीं होता ?  इन प्रश्नों के उत्तर उन लोगों के मुंह पर ताला लगा देंगे जो कहते हैं बहू के कारण उनके लड़के का घर टूटा है ।


- अर्चना त्यागी
व्याख्याता रसायन विज्ञान
एवम् कैरियर परामर्शदाता
जोधपुर ( राज.)

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