एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा

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एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा !


Ehi Thaiyan Jhulni Herani Ho Rama   एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा हिंदी Summary एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा पाठ का सार  class 10 hindi kritika chapter 4 summary in hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा का अर्थ  एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा question answer एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा class 10  short summary of chapter ehi thaiya jhulni herani ho rama 


एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा पाठ का सार

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! पाठ के लेखक शिवप्रसाद मिश्र 'रुद्र' हैं | प्रस्तुत पाठ के माध्यम से लेखक ने गाने-बजाने वाले समाज का, देश के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति व्याकुलता और परतंत्रता की बेड़ियों को उतार फेंकने की तीव्र इच्छा का वर्णन किया है | पाठ में गौनहारिन की भूमिका में दुलारी और किशोरावस्था के दौर से गुजर रहे टुन्नू के दरम्यान आत्मीय प्रेम की सुगबुगाहट देखने को मिलती है | बीच-बीच में गीत के सुन्दर बोल या पंक्तियों का समावेश भी किया गया है | जैसे --- 

          " रनियाँ ल परमेसरी लोट !
दरगोड़े से घेवर बुँदिया ,
दे माथे मोती क बिंदिया ,
अउर किनारी में सारी के ,
           टाँक सोनहली गोट! रनियाँ...!"

दुलारी नाच-गाने का पेशा करने वाली स्त्री थी | वह दुक्कड़ नामक बाजे पर गीत गाने के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थी | उसके कजली गायन का सब लोग सम्मान करते थे | दुलारी का शरीर पहलवानों की तरह कसरती था |  वह महाराष्ट्रियन महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करने के बाद प्याज और हरी मिर्च के साथ चने खाती थी | गाने में ही सवाल-जवाब करने में वह बहुत कुशल थी | 

एक दिन खोजवाँ दल की तरफ़ से गीतों में सवाल-जवाब करते हुए दुलारी की मुलाकात टुन्नू नाम के एक ब्राह्मण
लड़के से हुई थी | बजरडीहा वालों की तरफ़ से मधुर कंठ में टुन्नू ने उसके साथ पहली बार सवाल-जवाब किया
था | मुकाबले में टुन्नू के मुँह से दुलारी की तारीफ़ सुनकर फेंकू सरदार ने टुन्नू पर लाठी से वार किया था | दुलारी ने ही टुन्नू को लाठी के उस वार से बचाया था | दुलारी के दिल में उस वक़्त पहली बार टुन्नू के प्रति प्रेम का एहसास जागा था |

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा
एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा 
अकसर दुलारी के घर आकर टुन्नू ख़ामोश रहता था | कभी अपने प्रेम को दुलारी के सामने प्रकट नहीं करता था | उस रोज होली के एक दिन पहले टुन्नू दुलारी के घर आया था | उसने खादी आश्रम की बुनी साड़ी दुलारी को दी | दुलारी ने उसे बहुत डाँटा और साड़ी फेंक दी | टुन्नू अपमान महसूस किया और रोने लगा | दुलारी के द्वारा फेंकी साड़ी पर टुन्नू के आँसू टपकने लगे थे | उसने अपना प्रेम पहली बार दुलारी से साझा किया था | टुन्नू दुलारी से स्पष्ट शब्दों कह दिया कि उसका मन रूप और उम्र की सीमा में नहीं बंधा है | टुन्नू के जाने के पश्चात् दुलारी ने साड़ी पर पड़े आँसुओं के निशान को चूम लिया था | दुलारी छह महीने पहले ही टुन्नू से मिली थी | उसने अपनी ढलती उम्र में प्रेम को पहली बार इतने नजदीक से महसूस किया था | दुलारी टुन्नू की लाई साड़ी को अपने कपड़ों में सबसे नीचे रख लिया | टुन्नू और अपने प्रेम को आत्मा का प्रेम समझते हुए दुलारी सोच में डूबी थी | 

टुन्नू के चले जाने के बाद दुलारी ने खाना बनाना शुरू किया ही था कि मोहल्ले का फेंकू नाम का एक व्यक्ति आ गया, वह दुलारी पर अपना अधिकार जताता था | उसने विदेशी साड़ियों का एक बंडल दुलारी को देना चाहा | उस समय दुलारी को उसका आना बहुत बुरा लगा था | नीचे विदेशी कपड़ों को जलाने के लिए वस्त्रों को इकट्ठा करते जुलूस गुज़रने की आवाज़ दुलारी को सुनाई दी | "जननि तेरी जय, तेरी जय हो..." की आवाज उस जुलूस से आ रही थी, जिसे सुनकर दुलारी ने फेंकू का लाया विदेशी साड़ियों का बंडल नीचे फेंक दिया | दूसरी बार जब फिर दुलारी ने कुछ और साड़ियों को फेंकना चाहा, तो फेंकू ने उसका हाथ पकड़ लिया और खिड़की बंद कर दी थी |

यह दृश्य नीचे से सरकारी गवाह बने पुलिस के एक आदमी अली सगीर ने देख लिया था | जब दुलारी ने फेंकू को झाड़ू मार-मार कर घर से बाहर निकाल दिया तो जुलूस में शामिल टुन्नू के विरुद्ध अली सगीर ने फेंकू का साथ दिया था | जुलूस के टाउन हाॅल पहुँचने पर पुलिस ने टुन्नू को गालियाँ दी और विरोध करने पर पसली में जूतों की ठोकर मार-मारकर जान ले ली थी और अंग्रेज सैनिकों ने अस्पताल का बहाना करके मरे टुन्नू को वरुणा नदी में फेंक दिया था |

फेंकू को घर से बाहर निकालकर दुलारी पड़ोसिनों से यह कह ही रही थी कि उसका टुन्नू से कोई संबंध नहीं है, इतने में झिंगुर नाम के एक पड़ोसी बच्चे ने टुन्नू के मारे जाने की ख़बर दी | दुःख, क्रोध और आश्चर्य से भरी दुलारी रोने लगी थी | उसने टुन्नू की दी साड़ी पहनी और उसके मारे जाने का स्थान झिंगुर से पूछकर वहाँ जाने को तैयार ही थी कि उसी समय फेंकू थाने के मुंशी के साथ आया | उसने दुलारी को थाने में होने वाली अमन सभा में गाने के लिए कहा | अगले दिन शाम को टाउन हाॅल में अमन सभा ने एक समारोह किया | उसमें जनता का कोई प्रतिनिधि नहीं था | दुलारी को उसमें बुलाया गया | उसे मौसम के अनुसार गीत गाने के लिए मजबूर भी किया गया था | अपने प्रेमी के मारे जाने की वजह से दुलारी की आवाज़ दर्दभरी थी | 

एक उदास मुस्कान के साथ उसके गाने के बोल थे --- 

"एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूछूँ ?"
"सास से पूछूँ, ननदिया से पूछूँ, देवरा से पूछत लजानी हो रामा ?"

गीत गाते-गाते दुलारी की आँखों से आँसू बह निकले थे, मानो टुन्नू की लाश को वरुणा नदी में फेंकने से पानी की जो बूंदें छिटकी थीं, वे बूँदे अब दुलारी की आँखों से आँसू बनकर बह निकले हैं | 
गीत गाते हुए दुलारी ने लोगों को इस बात का अहसास और अंदाज़ करा दिया था कि टुन्नू के मारे जाने के पीछे अली सगीर का हाथ है | टुन्नू के मारे जाने की आँखों देखी ख़बर लाने और लिखने वाले रिपोर्टर को एक अख़बार के प्रधान संवाददाता ने अयोग्य कहा | मुख्य संपादक ने भी पूरी ख़बर सुनकर उसे छपने लायक नहीं समझा | वह जानता था कि ख़बरों की तह तक जाने से अख़बार नहीं चलते | उससे विरोध के सुर को बढ़ावा मिलता है और कार्यालय के बंद होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाया करती हैं...|| 


एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा question answer 

प्रश्न-1 हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है | इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है ? 

उत्तर- इसमें कोई संदेह नहीं कि आजादी की लड़ाई में सभी वर्गों या तबकों का बराबर योगदान था | सभी अपनी-अपनी क्षमतानुसार स्वतंत्रता आंदोलन में ख़ुद को झोंका था | प्रस्तुत कहानी में लेखक ने टुन्नू और दुलारी जैसे किरदारों के माध्यम से उस वर्ग-विशेष को उभारने की कोशिश की है, जो समाज में हीन या उपेक्षित निगाह से देखे जाते हैं | दोनों किरदारों का कजली गायन में महारत हासिल है | टुन्नू ने आज़ादी के लिए निकाले गए जुलूसों में भाग लेकर और अपने प्राणों की आहूति देकर ये साबित कर दिया कि वह मात्र नाचने या गाने के लिए पैदा नहीं हुआ है | उसके मन में भी आज़ादी प्राप्त करने का जोश व जुनून है | इसी तरह दुलारी द्वारा रेशमी साड़ियों का त्याग करना भी एक बहुत बड़ा और सराहनीय कदम था | हर प्रकार की पीड़ा और गम सहकर दुलारी का जलसे में जाना व उसमें नाचना-गाना उसके महत्वपूर्ण योगदान की ओर इशारा करता है | लेखक ने इस प्रकार समाज के उपेक्षित वर्गों के योगदान को प्रस्तुत कहानी में उभारा है | 

प्रश्न-2 कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी ?

उत्तर- दुलारी बाहरी तौर पर अपने कठोर स्वभाव के लिए जानी जाती थी | किन्तु, दुलारी अन्दर से नरमदिल स्वभाव की थी | वह घर पर एक अकेली स्त्री थी | उसका कोई आसरा न था | इसलिए ख़ुद की रक्षा के लिए वह कठोर व्यवहार रखती थी | टुन्नू , दुलारी से प्रेम करता था और दुलारी के दिल में भी टुन्नू के प्रति प्रेम का भाव था | मगर फिर भी दुलारी टुन्नू को जान-बुझकर नज़रअंदाज़ करती थी | क्योंकि टुन्नू, दुलारी से उम्र में काफी छोटा था | बाद में दुलारी को इस बात का यकीन हो गया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी गायन-कला का प्रेमी था | वह दुलारी से आत्मीय और सच्चा प्रेम करता था | मतलब दोनों के लिए एक-दूसरे के दिल में सच्ची मोहब्बत थी | इसलिए टुन्नू की मौत की ख़बर सुनकर दुलारी का ह्रदय दर्द से भर गया था और आँखों से आँसू बहने लगे थे | वह विचलित हो उठी थी | 

प्रश्न-3 दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था - "तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट ?...!" दुलारी से इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- दुलारी का टुन्नू को यह कहना कि --- "तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट ?...!" उचित था | 
क्योंकि टुन्नू अभी सोलह-सत्रह बरस किशोर था | उसके पिताजी गरीब पुरोहित थे, जो बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला रहे थे | टुन्नू ने अब तक लोट (नोट) देखे नहीं थे | उसे पता नहीं कि कैसे पाई-पाई जोड़कर लोग गृहस्थी चलाते हैं | 
         
यहाँ दुलारी ने उन लोगों पर आक्षेप किया है, जो असल ज़िन्दगी में कुछ करते नहीं, मात्र दूसरों पर ही आश्रित होते हैं | उसके अनुसार इस ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता | इस ज़िन्दगी में कब नोट या धन देखने को मिल जाए कोई कुछ नहीं जानता | इसलिए हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए | 

प्रश्न-4  'एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा !' का प्रतीकार्थ समझाइए | 

उत्तर-  'एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा !' , का शाब्दिक अर्थ यह है कि --- "इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग खो गई है" | नाक में पहना जानेवाला लौंग सुहाग का प्रतीक होता है | दुलारी एक गौनहारिन है, उसने अपने नाक में टुन्नू के नाम का लौंग पहन लिया था | दुलारी की मनोस्थिति देखें तो जिस स्थान पर उसे गाने के लिए आमंत्रित किया गया था, उसी स्थान पर टुन्नू की मृत्यु हुई थी | इसलिए इसका प्रतीकार्थ होगा --- इसी स्थान पर मेरा प्रियतम मुझसे बिछड़ गया है | अब मैं किससे उसके बारे में पूछूँ कि मेरा प्रियतम मुझे कहाँ मिलेगा ? 

प्रश्न-5 "मन पर किसी का बस नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता |" टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा ? 

उत्तर- बेशक, टुन्नू दुलारी से प्रेम करने लगा था | वह दुलारी से उम्र में बहुत छोटा था | दुलारी को उसका प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कुछ नहीं लगता था | इसलिए वह उसके प्रेम को अनदेखा करते रहती थी | बाद में दुलारी को इस बात का यकीन हो गया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी गायन-कला का प्रेमी था | वह दुलारी को सच्चे भाव और आत्मा से प्रेम करता था | टुन्नू के द्वारा दुलारी को कहा गया यह कथन कि "मन पर किसी का बस नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता |" दुलारी के अंदर टुन्नू के प्रति श्रद्धा का स्थान दे दिया | अब उसका स्थान अन्य कोई व्यक्ति नहीं ले सकता था | 


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