लॉकडाउन के दौरान पानी का संकट

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लॉकडाउन के दौरान पानी का संकट लॉक डाउन में पानी का संकट कोरोना का कहर, बार-बार साबुन से हाथ धोने की हिदायत बाड़मेर जिले के पेयजल संकटग्रस्त गांवों व ढाणियों के लिए तो केवल कहावत ही बनी हुई है। तापमान बढ़ने के साथ ही पानी का संकट बढ़ गया है। आम समुदाय के लिए जहां पानी का संकट आफत के रूप में विद्यमान है, वहीं दूसरी तरफ वाटर माफियाओं के लिए चांदी बटोरने का बेहतरीन जरिया भी बना हुआ है।

लॉक डाउन में पानी का संकट


लॉकडाउन के दौरान पानी का संकट कोरोना का कहर, बार-बार साबुन से हाथ धोने की हिदायत बाड़मेर जिले के पेयजल संकटग्रस्त गांवों व ढाणियों के लिए तो केवल कहावत ही बनी हुई है। तापमान बढ़ने के साथ ही पानी का संकट बढ़ गया है। आम समुदाय के लिए जहां पानी का संकट आफत के रूप में विद्यमान है, वहीं दूसरी तरफ वाटर माफियाओं के लिए चांदी बटोरने का बेहतरीन जरिया भी बना हुआ है। इंदिरा गांधी नहर परियोजना के पाइपलाइन द्वारा पानी सप्लाई सिस्टम वाटर माफियाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है। जिसमें सेंधमारी कर प्रतिदिन लाखों लीटर पानी टेंकर के जरिए बेच कर पैसा कमा रहे हैं। जल विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों की मिलीभगत से पानी चोरी और अवैध कनेक्शन का काम धड़ल्ले से हो रहा है। पाइप लाइन से अवैध कनेक्शन, एयर वाल्व को खोलकर व पाइपलाइन को तोड़ कर टेंकर भरने के कारण प्रेशर टूट जाता है जिससे सप्लाई वाले गांव पानी से वंचित रह जाते हैं। पेयजल योजना से वंचित गांवों, ढाणियों में पानी वितरण का सिस्टम तक नहीं बन पाया है। रसूखदार लोगों की ढाणियों में पानी वितरण के प्वाइंट बनाये गये हैं जबकि गरीब, दलित समुदाय की ढाणियां अभी भी वंचित है। कोविड-19 के तहत लॉक डाउन की स्थिति में लोगों को अपना गला तर करने के लिए पानी की जगह प्यास के कड़वे घूंट पीने पड़ रहे हैं।

बाड़मेर जिले की पाटोदी पंचायत समिति स्थित बड़नावा चारणान गांव के रहने वाले रिमूखां बताते हैं कि उनके
पानी का संकट
पानी का संकट
गांव में पीने का पानी समाप्त हो गया है। हालांकि गांव में पचास ढाणियां हैं लेकिन किसी में भी पानी सप्लाई का कोई प्वाइंट नहीं है और न ही कोई हैंडपंप है। टैंकर मंगवाते हैं, तो 1200 रू. लेता है। लॉक डाउन के कारण मजदूरी नहीं है। मजदूरी नहीं तो पैसा नहीं हैं और जब पैसा नहीं तो पानी कैसे खरीदें? चलने-फिरने में अक्षम रिमूखां कहते हैं टांकों में जमा किया बरसात का पानी समाप्त हो गया। पशुओं को तो पांच-छः किलोमीटर दूर कहीं ले जाकर पानी पिला सकते हैं लेकिन इन्सानों के लिए पानी की ज्यादा मुश्किल है। जल विभाग के 181 टाॅल फ्री नंबर पर पिछले एक साल से बार-बार शिकायत कर रहा हूं, लेकिन विभाग के अधिकारी समस्या का समाधान करने की जगह अलग-अलग तर्क देकर शिकायत का निस्तारण करने की कोशिश करतेहैं।

कुछ ऐसा ही हाल बाड़मेड़ जिला के साजियाली पंचायत स्थित लूंबानियों की ढाणी गांव की है। यहां रहने वाली शांतिदेवी कालबेलिया कहती हैं कि संकट के इस दौर में कुछ भामाशाहों ने राशन पहुंचाया है, जिससे गुजारा चल रहा है। लेकिन पीने के लिए मीलों भटकना पड़ता है। टांकों में पानी समाप्त हो चुका है। इंदिरा गांधी नहर के पानी की सप्लाई का प्वाइंट हमारी बस्ती में नहीं बनाया गया। एक हैंडपंप था जिसमें खारा पानी आता था, वह भी पिछले डेढ़ माह से खराब है। अधिकारियों को अवगत कराया, लेकिन हैंड पंप ठीक नहीं हुआ। यहां 18 कालबेलिया परिवार रहते हैं। 40 फीट ऊंचे रेत के टीले पर बसे इन परिवारों के लिए आवागमन का कोई रास्ता नहीं है। वर्ष 2019 में ग्राम पंचायत ने महात्मा गांधी नरेगा के तहत सड़क कार्य स्वीकृत कराया, लेकिन सड़क नहीं बनी। पेयजल की कोई योजना इस ढाणी तक नहीं पहुंची है। अकाल या आफत में राहत के दौरान सरकार की टेंकर से पानी सप्लाई भी यहां नहीं पहुंच पाती। टीले की ऊंचाई और रास्ता नहीं होने के कारण यहां दो ट्रेक्टर जोड़ कर पानी का टेंकर पहुंचाया जाता है। एक टेंकर के लिए 2000 रू. लिए जाते हैं।

वहीं करणीसर गांव में भील समुदाय की 25 ढाणियों में पेयजल विभाग की पानी सप्लाई नहीं है। कुछ साल पहले एक जीएलआर बनाकर उसे पाईप लाइन से जोड़ा गया था, लेकिन उसमें पानी कभी नहीं आया। व्यक्तिगत टांकों एवं तालाब में पानी सूख चुका है। रोज मजदूरी कर आटा, लूण, मिर्च का जुगाड़ करने वाले इन गरीब परिवारों की कोई सुध लेने वाला नहीं है। गांव के बाबूराम भील ने बताया कि हर साल गर्मी में यही हाल होता है। पिछले दो सालों से जल विभाग के अधिकारियों को इस समस्या से अवगत करा रहे हैं, लेकिन आजतक उचित समाधान नहीं निकला है। लॉक डाउन में मजदूरी बंद है। ऐसे में पानी खरीद कर प्यास बुझाएं या आटा खरीदकर भूख मिटाएं, इसी असमंजस में दिन काट रहे हैं। गरीबी में आटा गीला वाली कहावत इस लॉक डाउन में उल्टी हो गई। आटे का तो किसी प्रकार से जुगाड़ कर लेते हैं, लेकिन गीला करने के लिए पानी नहीं है।

बाड़मेर जिले की पाटोदी पंचायत समिति की नवसृजित ग्राम पंचायत गंगापुरा में भील समुदाय की 50 ढाणियां हैं। इन ढाणियों के पास से इंदिरा गांधी नहर परियोजना से पेयजल सप्लाई योजना की पाइप लाइन गुजरती है, लेकिन ढाणी के लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिलता है। गांव में एक हैंड पंप है जिसके निर्माण के बाद कुछ दिन पानी आया लेकिन अब उसमें भी पानी नहीं आता है। गांव के किरता राम भील ने बताया कि व्यक्गित टांकों में पानी समाप्त हो गया। अब पानी के लिए ढाणियों के लोग कष्ट झेल रहे हैं। पाइप लाइन से पानी सप्लाई का प्वाइंट हमारी ढाणियों में नहीं बनाया गया। बड़नावा जागीर में प्रतिदिन पाइप लाइन से चोरी कर सैंकड़ों टेंकरभर कर पानी बेच रहे हैं, लेकिन हमें मटका भरने तक के लिए सार्वजनिक प्वाइंट नहीं दिया गया। टेंकर वाले पाइप लाइन तोड़कर, होदियों में पाइप डालकर तथा अपने टांकों में अवैध कनेक्शन कर पानी भरते हैं तथा टेंकर से बेच रहे हैं। यह सारा काम जल विभाग के अधिकारियों व स्थानीय कर्मचारियों की जानकारी में हो रहा है।

उपरोक्त कहानियों वाले गांवों में सरकार की इंदिरा गांधी नहर से पाइप लाइन द्वारा पानी सप्लाई योजनाओं पर काम चल रहा है। कुछ गांवों में 20-25 ढाणियों के बीच सार्वजनिक सप्लाई के प्वाइंट बने हैं, लेकिन यह ढाणियां वंचित है। यह महज कुछ गांवों की समस्या नहीं है। प्रतिवर्ष गर्मी के सीजन में छितरी हुई आबादी वाले बाड़मेर जिले के अधिकांश गांवों की कहानियां हैं, जो पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। पारंपरिक जल स्रोत सूख चुके हैं, व्यक्तिगत टांकों में एकत्रित किया गया बरसात का पानी भी समाप्त हो गया है। भूजल अत्यधिक खारा और फ्लोराइड वाला है। जिससे गंभीर बिमारी का खतरा बना हुआ है। लेकिन इसके बावजूद मजबूरी में लोग उसी पानी को पी रहे हैं। दूसरी ओर पेयजल वितरण का सरकारी तंत्र योजनाओं की अपनी उपलब्धियों में कागजी पानी तो पिला रहे हैं, लेकिन हकीकत में सैकड़ों गांव पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। कोरोना कहर के कारण हुए लॉक डाउन में जन स्वास्थ्य और अभियांत्रिकी विभाग के निष्फल कार्य प्रक्रिया से यह साबित हो रहा है कि किसी भी डिजास्टर में पेयजल व्यवस्था के लिए तंत्र पूरी तरह से असफल हो चुका है। (चरखा फीचर)


- दिलीप बीदावत 
बाड़मेड़, राजस्थान

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