तमाशा लघु कथा

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तमाशा लघु कथा सुबह टिमटिमाते हुए तारों का समूह प्रस्थान कर चुका था, और सूरज अपने उज्ज्वल किरणों के स्वर्णिम आभा लेकर , पूरे विश्व को फिर से चलायमान बनाने हेतु अपने सरसिज से बिल्कुल मौन पवित्रता के साथ अवतरित हो रहा था । प्रत्येक दिन की तरह आज भी चहल पहल शुरू हो चुका था ।

तमाशा लघु कथा

    
सुबह टिमटिमाते हुए तारों का समूह प्रस्थान कर चुका था, और सूरज अपने उज्ज्वल किरणों के स्वर्णिम आभा लेकर , पूरे विश्व को फिर से चलायमान बनाने हेतु अपने सरसिज से बिल्कुल मौन पवित्रता के साथ अवतरित हो रहा था । प्रत्येक दिन की तरह आज भी चहल पहल शुरू हो चुका था । जो चीजें, व्यवस्थाएं, कल थी, वही आज है सिवाय उस बच्चे के कि जो कल अपनी पागल मां के साथ इसी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म न. एक के ओभरब्रिज के नीचे रेलिंगो के शरण में रहता था, और आज अकेला हो गया है । 
     
तमाशा लघु कथा
वह चकित, कभी जोर-जोर से रोता है, कभी अपने बिखरे बाल को नोचता है, चिथड़े हुए कपड़ों से अपनी आंखों को मलता हुआ कभी उस चिर परिचित स्थान को देखता, जहां वह अपनी मां के साथ आश्रय लेता था । भद्दे होठों से लार टपक रहा है । कभी शेड पर लगे विज्ञापनों को घुरता है । टंगे हुए विज्ञापनों में दुध पीते बच्चों को बड़ी ही कौतूहलता के साथ ताकता है । कभी प्लेटफार्म पर गुजर रहे औरतों में अपनी माँ को तलाशता है, और उसे उन औरतों में शायद अपनी माँ नजर आता है । वह बेसुरा राग अलापता उन औरतों की ओर लपका । बच्चे को अपनी ओर आता देख वे औरतें इस तरह छिटककर भागी जैसे कोई ब्राह्मण किसी अछूत को और कोई मौलवी कुते को देखकर अपना मार्ग बदलता है । कुछ शरीफ लोग, कुछ गरीबों के मसीहा और जनता के सच्चे सेवक कहलाने वाले लोग, सफेद धोती कुर्ता पहने, चहलकदमी करते हुए, उस बच्चे पर नजर पड़ा । वे सभी उस बच्चे के बारे में तरह तरह की बातें करने लगे । कोई उसके बदकिस्मती को कोसता, कोई शासन व्यवस्था को गाली बकता, कोई शहर में सक्रिय मवालियों के हवस का नतीजा बताता । लेकिन किसी ने उस बच्चे के पास आने का आदमियत नहीं दिखा सका जिसकी उसे सख्त जरूरत थी । कुछ लोग मूंगफली, चने चबेने खा रहे थे और वह बच्चा भूख से व्याकुल था । लेकिन किसी ने उसके अंजुली में अन्न के एक दाना न रख जिसे खाकर वह अपनी भुख को मिटा सके । और देते भी क्यों उन्हें तो समय बिताने के लिए कोई दिलचस्प मनोरंजन या तमाशा चाहिए था और उन्हें उस बच्चे के सुरत में मिल रहा था । बच्चा अभी भी अपनी जगह गिरता घिसटता बड़ी उम्मीद से उन सब की ओर ताक रहा था ।
     
कुछ ही दुरी पर एक बड़ा और व्यस्त कूड़ेदान था । जो पान चबाकर थुक दिए गए पिकों से पटा था । कूड़ेदान के नीचे बहुत सारे पत्तलों का ढेर था जिस पर खाकर फेंक दिए गए चपातियों और सब्जियों के अवशेष बिखरे थे । भूख से बेचैन बच्चा देखा तो लपक कर गया और कूड़ेदान के पास बैठ कर अन्न के दाने को बीन कर खाने लगा । इतने में कुछ स्मार्टलोग वहां पहुँच अपनी जेब से स्मार्टफोन निकाल उस बच्चे का तस्वीर अपने मोबाइल में कैद करने लगे । तभी वहाँ पर एक कुतिया जो शायद रोज का उसका सहचर थी,आई और जुठे पत्तलों को चाटने लगी । कुछ देर के बाद शायद दोनों जीवों के पेट की ज्वाला शांत हुआ । कुतिया बड़े ही अपनत्व के साथ जीभ निकालकर बच्चे के मुख को चाटने लगा।बच्चा भी कुतिया से ऐसे लिपट गया जैसे कोई शिशु अपनी माँ से लिपटता हो।कुतिया के आंखों में ममत्व था, करुणा था । किसी को समझ में नहीं आया कि पशु इंसान में तब्दील हो रहा है या इंसान जानवर बनता जा रहा है ।


-सुरेन्द्र प्रजापति 
 असनी, गया (बिहार)

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