जिंदगी हार के बाद ही जीत है जिंदगी हार के बाद ही जीत है त्रुटि करना मानव का कार्य है। हम प्रायः फिसल जाते हैं तथा त्रुटि कर बैठते हैं। हम भूल कर बैठते हैं या लापरवाही वाला कार्य कर बैठते हैं जिसके लिए हमें बाद में जीवन भर पछतावा रहता है।व्यस्कों की अपेक्षा, युवा लड़कों तथा लड़कियों में ये कार्य अधिक सामान्य होते हैं।
जिंदगी हार के बाद ही जीत है
जिंदगी हार के बाद ही जीत है त्रुटि करना मानव का कार्य है। हम प्रायः फिसल जाते हैं तथा त्रुटि कर बैठते हैं। हम भूल कर बैठते हैं या लापरवाही वाला कार्य कर बैठते हैं जिसके लिए हमें बाद में जीवन भर पछतावा रहता है।व्यस्कों की अपेक्षा, युवा लड़कों तथा लड़कियों में ये कार्य अधिक सामान्य होते हैं। वे भविष्य के सम्बन्ध में विचार कि बिना निरुद्देश्य भटक जाते हैं। ये आदतें कुछ भी हो सकती हैं जैसे धूम्रपान से लेकर कक्षा से भाग जाना या छेड़-छाड़ करना। यह वह आयु होती है जब वे अपनी त्रुटि का अहसास नहीं करते। बड़ों के द्वारा उन्हें सुधारने के प्रयास उनके द्वारा अपमानजनक माने जाते हैं।
बुरी आदतों से छुटकारा
तथापि उनमें से अधिकतर अपनी त्रुटियों का एहसास कुछ समय पश्चात् करते हैं। वे समझ जाते हैं कि वे अभी तक जो कुछ कर रहे थे वह समय, ऊर्जा व धन का अपव्यय था। वे अधिक बुद्धिमान बन जाते हैं तथा अपने तौर-तरीकों को सुधार लेते हैं। वे यह कार्य कुसंगति व बुरी आदतों का परित्याग कर प्रारम्भ करते हैं। वे अपने भविष्य व व्यवसाय पर अधिक ध्यान देना प्रारम्भ करते हैं। जब तक वे गंभीर अपराध नहीं करते समाज उन्हें पुनः अवसर देने के लिए सदैव तैयार रहता है।ऐसा हममें से बहुत से व्यक्तियों के साथ हुआ है। वे लोग जो अपने जीवन में पाप तथा स्वआनन्द के मार्ग से काफी पहले ही लौट अए, वे आज अधिक बुद्धिमान, संवेदनशील तथा बेहतर मनुष्य हैं जबकि वे जिन्होंने अपनी त्रुटियों का अपने जीवन में अहसास काफी विलम्ब से किया है, उन्हें बहुत पछताना पड़ा है। उन्होंने अपनी सांसारिक नैतिकता, स्थिति, निश्छल मित्रता व सम्बन्ध सभी कुछ खो दिया है।
कभी भी बहुत विलम्ब नहीं
इन व्यक्तियों को साहस नहीं खोना चाहिये। उन्हें अपने जीवन को नये तरीकों से प्रारम्भ करने का पुनः प्रयास करना चाहिये। कुछ लोग इस बात में सन्देह कर सकते हैं कि ये व्यक्ति सुखी, सद्गुणी व उपयोगी नागरिक बन सकते हैं। वे तर्क प्रस्तुत करते हैं कि इतना लम्बा समय व्यतीत हो चुका है कि इन व्यक्तियों को पुनः समाज के उपयोगी सदस्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अपने आपको सुधारने तथा अच्छा बन्ने में कभी भी विलम्ब नहीं होता। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन के अन्तिम चरण में भी अपने तौर-तरीकों को सुधारता है तथा सत्य एवं सद्गुण के मार्ग पर चलता है तब वह दुष्ट होने के कलंक को पौंछकर इस संसार से निष्कलंक विदा हो सकता है। वह व्यक्ति जो बहुत विलम्ब से भी थोड़ा-सा सीख लेता है, उस व्यक्ति से कहीं अधिक बेहतर है जिसने कुछ नहीं सीखा है।
उस व्यक्ति को जो भी भटक गया है, यह नहीं सोचना चाहिए कि इतना विलम्ब हो गया है कि वह वापिस नहीं आ सकता। उसे यह स्मरण रखना चाहिए कि वह जब सांस में सांस है, तब तक सही कार्य को करना सदैव समय के भीतर ही है।
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