भारत में अनेकता में एकता

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भारत में अनेकता में एकता


भारत अनेकता में एकता निबंध अनेकता में एकता का सिद्धांत भारत की अनेकता में एकता पर निबंध भारत को अनेकता में एकता वाला देश क्यों कहा जाता है भारत में अनेकता में एकता इन हिंदी अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता anekta mein ekta bharat ki visheshta anekta mein ekta essay in hindi  anekta mein ekta essay anekta mein ekta story in hindi bhartiya sanskriti anekta mein ekta par nibandh anekta mein ekta hind ki visheshta par nibandh anekta mein ekta hind ki visheshta par anuched अनेकता में एकता का साकार रूप है स्वतंत्र भारत एकता और अनेकता में अंतर - भारत एक प्राचीन देश हैं।इसका फैलाव कश्मीर से कन्याकुमारी तथा गुजरात से लेकर नागालैण्ड तक है। पहले यह और भी ज्यादा विस्तृत था ,किन्तु हमारी अदूरदर्शीता के कारण इसके एक तिहाई भाग को काटना पड़ा।आज भी अनेक पृथकतावादी शक्तियाँ इसका पुनः विभाजन करने के चक्र रचती रहती है। इस देश की एक विशेषता यह है कि यहाँ ऊँचे ऊँचे पहाड़ ,सदानीरा नदियाँ ,झीलें ,तालाब पठार ,जंगल ,रेगिस्तान ,मैदान ,हरियाली ,शक्य - श्यामल कृषि भूमि ,बड़े बड़े शहर और कस्बें पाए जाते हैं।इसमें बड़ी विशेषता यह है कि विश्व के समृद्ध देशों में जहाँ शहरीकरण का जोर है ,भारत में आज भी पिछड़े दुर्गम और आदिम गाँवों की संख्या ७० प्रतिशत से अधिक है।मौसम तथा प्राकृतिक विविधता ने कई तरह से यहाँ के लोगों को प्रभावित किया है। 

भारत की सांस्कृतिक एकता

भारत में अनेकता में एकता से तात्पर्य मात्र सांस्कृतिक एकता से है। उत्तर के केदारनाथ ,दक्षिण  में भी आराध्य तथा सम्मानित है। दक्षिण के रामेश्वर उत्तर भारतीयों को उतने ही प्रिय हैं जितने दक्षिण वालों को।कितना अद्भुत
भारत में अनेकता में एकता
भारत में अनेकता में एकता
रहस्य है कि उत्तर की नदी का जल पाकर दक्षिण के रामेश्वर प्रसन्न होते हैं।बद्रीनाथ,केदारनाथ के मुख्य अर्चक (रावल ) दक्षिण से आते हैं।शताब्दीयों से यही परंपरा है तथा सभी इसे श्रध्दा से अपनाते आ रहे हैं।हिंदी का विरोध राजनितिक कारणों से दक्षिण में और वह भी केवल तमिलनाडु में हुआ।किन्तु तमिल को छोड़कर अन्य किसी राज्य ने कभी संस्कृत का विरोध नहीं किया।

हिंदुस्तान में वर्ण व्यवस्था हजारों साल पुरानी है।इस व्यवस्था को आज के राजनीतिज्ञ चाहे जिस नजरियों से देखें ,किन्तु पुराने ज़माने से जितना प्यार ,स्नेह तथा भाई चारा उच्च ,मध्यम और निम्न जातियों के बीच था ,उतना स्वाधीनता के बाद नहीं हो पाया। गांधीजी यद्यपि जात -पांत ,छुआछूत के उन्मूलन के लिए सचेष्ट थे किन्तु राजनीतियों ने जात -पांत को अपनी चुनाव प्रक्रियाओं का मुद्दा बनाया।इस तरह उनके द्वारा जातीय समीकरण के आधार पर सत्ता की दौड़ें लगायी गयीं।अतः श्रम के विभाजन द्वारा एक दुसरे के श्रम पर आश्रित रहने की प्रक्रिया और पारस्परिक प्रेम का जो वातावरण स्वतंत्रता से पूर्व और मुसलमानों ज़माने में हिन्दुओं में था ,आज वह प्रेम चाहकर भी नहीं हो पा रहे हैं।  

अनेकता में एकता लाने का प्रयास

हर्ष की बात है कि श्रीराम और कृष्ण भगवान तथा अन्य हिन्दू देवी - देवताओं के पूजन पर्वों पर भारत में एक भक्ति लहर आई हैं।भारत की सांस्कृतिक कब सामाजिक और धार्मिक एकता के रूप में मजबूत होगी ,इसका अनुमान लगाना काफी कठिन काम है।गांधी जी ,तिलक ,राजा राममोहन राय और पं.ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे लोगों ने अनेकता में एकता लाने का प्रयास किया किन्तु उन्हें कोई विशेष कामयाबी नहीं मिली।भाषाई ,सांस्कृतिक ,सामाजिक और धार्मिक एकता तो गुप्त काल से ही भारत में रही हैं, जिसे हिन्दू शासन काल का स्वर्ण युग कहा जाता है।समय ने करवट ली तथा गुलामी के करीब १००० सालों में भारत की अस्मिता पर आंच आई।गुलाम देश का कोई महत्व नहीं होता और न कोई आवाज होती है। सन १८९३ में अमेरिका में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में केवल ५ मिनट पाने के लिए स्वामी विवेकानंद को कितना संघर्ष करना पड़ा था ,इसे सभी जानते हैं। बाद में उनकी विद्वता और योग्यता ने अमेरिकी जनता का मन मोह लिया था। आज भी अमेरिका में रामकृष्ण मिशन एक लोकप्रिय संस्था है। 

आज भारत में अनेकता में एकता स्थापित करने की जितनी जरुरत आज है ,उतनी पहले कभी नहीं थी।देखना है कि हम सब कब अपनी इस महत्वपूर्ण आवश्यकता की ओर उन्मुख होते हैं। 



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