उम्मीद की पाठशाला

SHARE:

गांव के रास्ते उम्मीद बांधती पाठशाला समाज ने भले ही कई पीढ़ियों से एक बिरादरी को मुख्य बसाहटों से बेदखल कर दिया हो, फिर भी उसी बिरादरी के बच्चों ने अपनी अथक मेहनत से एक अलग पहचान बनाई है। इसी तरह, विकास की बड़ी अवधारणा ने भले ही असंख्य विस्थापित बच्चों से उनके पढ़ने के ठिकाने छीन लिए हों, फिर भी एक स्थान पर आदिवासियों ने अपनी परंपरा के अनुकूल शिक्षा का मॉडल तैयार किया है।

गांव के रास्ते उम्मीद बांधती पाठशाला


देश के दूर-दराज के अंचलों से शिक्षा में बदलाव के लिए कार्य करने वाले सरकारी स्कूलों की कहानियां पर पुस्तक शिरीष खरे भारत के अनेक राज्यों के दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों से वंचित समुदाय के विद्यार्थियों की उम्मीद की पाठशालाओं की कहानियां लेकर आए हैं। 128 पृष्ठों की इस पुस्तक में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गोवा के सुदूर ग्रामीण इलाकों में बचे रह गए अनेक जर्जरित और परित्यक्त स्कूलों के जीवंत और सक्रिय स्कूलों में बदल जाने से संबंधित सफलता के सूत्र हैं।

बतौर पत्रकार शिरीष ने एक दशक से भी अधिक समय में अलग-अलग क्षेत्रों के सौ से अधिक स्कूलों का भ्रमण किया है। इनमें से कुछ उत्कृष्ट लेकिन अनकही कहानियों को अपनी पुस्तक के लिए चुना है। इस दौरान उन्होंने मुख्यधारा के मीडिया समूह और गैर-सरकारी संस्थानों के अलावा अपने व्यक्तिगत प्रयासों से कई दुर्गम इलाकों के स्कूलों की यात्राएं की हैं और बदलाव के पीछे के मुख्य कारणों पर विस्तृत विवरण तैयार किए हैं।

इन स्कूलों को अध्यापकों, बच्चों और अभिभावकों के सम्मिलित प्रयासों से नया जीवन मिला है। साथ ही, इन्होंने अपनी भूमिका से आगे बढ़कर 'आदर्श-शाला' की संकल्पना को भी विस्तार दिया है।

यह अध्यापकों और अभिभावकों के लिए भी एक प्रेरक पुस्तक साबित हो सकती है। साथ ही यह प्राथमिक और सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के प्रति एक भरोसा जगाती है।

शिक्षा के निजीकरण के दौर में जब सरकारी स्कूल हाशिए के समुदाय के बच्चों के स्कूल के रूप में जाने जा रहे हैं, तब इन स्कूलों ने अपने सीमित साधन-संसाधनों के बूते कई बड़ी बाधाओं को पार किया और लगभग हर मानक पर अपना अग्रणी स्थान बनाया है। कुछ स्कूलों ने अपने उपक्रमों के माध्यम से सफलता की नई कसौटियां तैयार कीं और अपने संघर्ष को एक नई दृष्टि से देखने का आग्रह किया है।

इस पूरी प्रक्रिया में जहां बच्चों ने भविष्य के नागरिक बनने का प्रशिक्षण हासिल किया है। वहीं, समाज ने सामूहिक सहयोग की आंतरिक शक्ति को पहचाना है। इसके निष्कर्ष बच्चों सहित पूरी की पूरी स्कूली कार्य-प्रणाली और अपने आसपास की दुनिया में आ रहे परिवर्तन को रेखांकित करते हैं।
उम्मीद की पाठशाला

असल में, यह पूरा दस्तावेज ही एक साक्ष्य है कि किस तरह आम भारतीय परिवार के बच्चे न्यूनतम पैसा खर्च करके भी एक मूल्यपरक शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। आखिरी ध्येय यही कि एक बार फिर सरकारी स्कूलों पर सबका भरोसा लौटे और इन स्कूलों से जमा उत्साहवर्धक की पंक्तियां अन्य सरकारी स्कूलों तक प्रेरणाएं बनकर पहुंचें।

इन पंक्तियों में प्रेरणा के कई तार हैं। जैसे कि समाज ने भले ही कई पीढ़ियों से एक बिरादरी को मुख्य बसाहटों से बेदखल कर दिया हो, फिर भी उसी बिरादरी के बच्चों ने अपनी अथक मेहनत से एक अलग पहचान बनाई है। इसी तरह, विकास की बड़ी अवधारणा ने भले ही असंख्य विस्थापित बच्चों से उनके पढ़ने के ठिकाने छीन लिए हों, फिर भी एक स्थान पर आदिवासियों ने अपनी परंपरा के अनुकूल शिक्षा का मॉडल तैयार किया है।

वहीं, कुछ स्कूलों ने अपने पाठ्यक्रम को आधार बनाते हुए स्थानीय स्तर पर नशा-मुक्ति, वृक्षारोपण, जल-संरक्षण, यातायात-संचालन, स्वच्छता, श्रम-दान और लिंग-समानता से जुड़े कई बड़े अभियान चलाए हैं।

कुछ स्कूलों ने अपने शिक्षण के तौर-तरीके बदलकर जातीय और भाषाई भेदभाव की दीवारों को तोड़ा है। कुछ स्कूलों ने अपनी कार्य-शैली को लचीला बनाते हुए कक्षा में बात न करने वाले बच्चों को नृत्य, गीत, संगीत, कविता-पाठ, कहानी-पाठ और नाट्य जैसी विधाओं में पारंगत बनाया है।

कुछ स्कूलों ने बच्चों को उनकी क्षमता और जिम्मेदारियों से अवगत कराते हुए सामाजिक व्यवहार का अभ्यास कराया है। यही अभ्यास उनके लिए अपने दोस्त या दादा के साथ विवाद सुलझाने में सहायक सिद्ध हुए हैं। कुछ स्कूलों ने रचनात्मक कार्यों से अपने परिसर को दर्शनीय स्थलों में रूपांतरित कर दिया है। कुछ ने उन वीरान जगहों पर शिक्षा की अलख जगाई है, जहां तक आम तौर पर बाहरी दुनिया का कोई आदमी नहीं पहुंचता।

सरकारी शिक्षक इस सकारात्मक ऊर्जा के प्रमुख वाहक हैं। इन्होंने अपनी छोटी-छोटी प्रयासों से बच्चों के साथ-साथ अन्य लोगों के सपने भी बांधे हैं। इन्होंने ही बदलाव के रास्ते 'उम्मीद की पाठशाला' बनाई है।

उम्मीद की पाठशाला
अगोरा प्रकाशन, बनारस
पृष्ठ: 128
मूल्य: 150 रुपए       





COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका