श्रीधर पाठक का जीवन परिचय

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श्रीधर पाठक का जीवन परिचय shridhar pathak ki jivani श्रीधर पाठक का जीवन परिचय श्रीधर पाठक का जन्म श्रीधर पाठक की कृतियां श्रीधर पाठक के बारे में श्रीधर पाठक की कविता shridhar pathak shridhar pathak ki pramukh rachna hai - भारतेंदु मंडल के कवियों में श्रीधर पाठक का महत्वपूर्ण स्थान है।गोल्ड स्मिथ की रचना हरमिट (Hermit) ,ट्रेवेलर (Traveler) तथा डेजर्टड विलेज (Deserted Village) का अनुवाद क्रमशः एकांतवासी योगी ,श्रांत पथिक तथा उजड़ा ग्राम नाम से किया।

श्रीधर पाठक का जीवन परिचय


श्रीधर पाठक का जीवन परिचय श्रीधर पाठक का जन्म श्रीधर पाठक की कृतियां श्रीधर पाठक के बारे में श्रीधर पाठक की कविता shridhar pathak ki jivani  shridhar pathak shridhar pathak ki pramukh rachna hai - भारतेंदु मंडल के कवियों में श्रीधर पाठक का महत्वपूर्ण स्थान है।आपका जन्म सन १८५९ ई. में उत्तर प्रदेश में जौंवरी नामक  गांव,फिरोजाबाद ,आगरा जिले में हुआ था।आपके पिता का नाम पंडित लीलाधर पाठक था। बहुत कम अवस्था में ही आपने हिंदी व संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था।परिवारिक वातावरण काव्य सृजन का था ,इसीलिए ये साहित्य साधना में लगे रहे .आप कई सरकारी पदों पर भी रहे .सेवानिवृत्त के बाद आप प्रयाग में रहने लगे।यही पर सन १९२४ ई में इनका निधन हुआ। 
श्रीधर पाठक
श्रीधर पाठक

श्रीधर पाठक जी ने अपना काव्य जीवन अनुदित काव्य से प्रारंभ किया। अट्ठारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि गोल्ड स्मिथ की रचना हरमिट (Hermit) ,ट्रेवेलर (Traveler) तथा डेजर्टड विलेज (Deserted Village) का अनुवाद क्रमशः एकांतवासी योगी ,श्रांत पथिक तथा उजड़ा ग्राम नाम से किया।इनमें प्रथम दो का अनुवाद खड़ीबोली और अंतिम ब्रजभाषा में हैं।पाठक जी ने यह सिद्ध कर दिया कि खड़ीबोली में ब्रजभाषा की मधुरता आ सकती हैं। 

श्रीधर पाठक की काव्यगत विशेषताएँ

श्रीधर पाठक जी स्वच्छंद प्रकृति के कवि थे।अपनी मौलिक रचनाओं में इन्होने देशप्रेम ,प्रकृति प्रेम ,समाजसुधार ,भाषा प्रेम आदि विषयों को महत्व दिया है। स्वतंत्र प्रकृति चित्रण और गीति काव्य परंपरा का सूत्रपात श्रीधर पाठक ने ही किया था।इनका प्रकृति प्रेम इन पंक्तियों को देखिये - 

सजाति, सजापति ,सरसित ,हरसति ,वरसति प्यारी।  
बहुरि सराहित भाग पाथ सुठि चितर सारी। 

इस तरह देशप्रेम का यह स्वरुप कितना सुन्दर बन पड़ा है - 

वंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज-अभिमानी हों। 
बांधवता में बँधे परस्पर, परता के अज्ञानी हों।। 
निंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज अज्ञानी हों।  
सब प्रकार पर-तंत्र, पराई प्रभुता के अभिमानी हों।। 

आपने बच्चों के लिए भी कविताएँ लिखी हैं। इन कविताओं में बच्चों के मनोविज्ञान का भी ध्यान रखा गया है - 

बिल्ली के ये दोनों बच्चे, कैसे प्यारे हैं,
गोदी में गुदगुदे मुलमुले लगें हमारे हैं।
भूरे-भूरे बाल मुलायम पंजे हैं पैने,
मगर किसी को नहीं खौसते, दो बैठा रैने।
पूँछ कड़ी है, मूँछ खड़ी है, आँखें चमकीली, 
पतले-पतले होंठ लाल हैं, पुतली है पीली।

प्रकृति के रमणीय दृश्यों से हटकर किसानों के सामान्य जीवन का भी इन्होने सुन्दर चित्रण किया है।इनकी हेमंत कविता में ऐसी ही भावना चित्रित है।इस प्रकार श्रीधर पाठक ने अपनी स्वछंदतावादी प्रकृति के कारण हिंदी कविता में नए मार्ग का प्रवर्तन किया है। 

श्रीधर पाठक की रचनाएँ 

आपकी प्रमुख रचनाओं में वनाश्टक, काश्मीर सुषमा, देहरादून, भारत गीत, गोपिका गीत, मनोविनोद आदि हैं।साथ ही अनुदित रचनाओं में एकांतवासी योगी ,श्रांत पथिक तथा उजड़ा ग्राम आदि महत्वपूर्ण हैं। 

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