अहमद शाह अब्दाली Ahmad Shah Durrani

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अहमद शाह अब्दाली अहमद शाह अब्दाली अहमद शाह अब्दाली पानीपत Ahmad Shah Abdali Durrani अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण अहमद शाह अब्दाली नादिरशाह का सेनापति था। अहमद शाह अब्दाली दिल्ली की ओर चला।पेशवा ने अब्दाली से लड़ने के लिए उत्तर भारत में एक विशाल सेना भेज दी। उसका पुत्र विश्वास राव तथा भतीजा सदाशिव राव मराठा सेना ने सेनापति थे। इब्राहीम गार्दी ,मल्हारराव होल्कर,जनकोजी जी सिंधिया ,सूरजमल जाट आदि मराठा सेना का नेतृत्व कर रहे थे।

अहमद शाह अब्दाली


अहमद शाह अब्दाली अहमद शाह अब्दाली Ahmad Shah Durrani पानीपत Ahmad Shah Abdali Durrani  अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण अहमद शाह अब्दाली नादिरशाह का सेनापति था। नादिरशाह के मरने पर उसने १७४८ ई. में कंधार में अपना स्वतंत्र राज्य कायम किया। अपने शासन के प्रथम वर्ष में ही उसने भारत पर आक्रमण किया तथा लाहौर के मुग़ल सूबेदार को हरा कर दिल्ली की ओर बढ़ा। सरहिंद के पास मुगलों ने अब्दाली को पराजित किया। १७४९ ई. के अंत में अब्दाली ने पंजाब पर फिर चढ़ाई की। लाहौर का सूबेदार हार गया और उसने उसे वार्षिक कर देना स्वीकार किया। अब्दाली का सामना करने में अपने को असमर्थ पाकर तत्कालीन मुग़ल शासक अहमदशाह ने मराठों से एक संधि की। इस संधि के द्वारा मुग़ल साम्राज्य की सुरक्षा का भार मराठों के पेशवा बालाजी बाजीराव को सौंप दिया गया। इसके बदले में उसने पेशवा को मुग़ल साम्राज्य के अनेक सूबों को सूबेदारी तथा बहुत से प्रदेशों पर चौथ तथा सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार दे दिया। मराठा सेना के दिल्ली और पंजाब पहुँचने के पहले ही अब्दाली ने १७५६ ई. में पंजाब को जीत लिया।फिर उसने दिल्ली में प्रवेश कर उस पर अधिकार कर लिया और स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया। इसके बाद अब्दाली मथुरा और आगरा की ओर बढ़ा। सेना में अचानक हैजा फ़ैल जाने के कारण अब्दाली दिल्ली का शासन नजीब खां रुहेले को सौंप कर तथा अपने पुत्र तैमुर को पंजाब का सूबेदार बनाकर कंधार लौट गया।यह समाचार सुनकर मराठों ने रघुनाथ राव तथा दत्ता जी सिंधिया के नेतत्व में आक्रमण कर दिल्ली और पंजाब पर अधिकार कर लिया। तैमूर पंजाब छोड़कर कर भाग गया। यह समाचार पाकर अब्दाली ने भारत पर चढ़ाई कर दी। 

पानीपत का तृतीय युद्ध 

पंजाब जीतने के बाद अहमद शाह अब्दाली दिल्ली की ओर चला।पेशवा ने अब्दाली से लड़ने के लिए उत्तर भारत में एक विशाल सेना भेज दी। उसका पुत्र विश्वास राव तथा भतीजा सदाशिव राव मराठा सेना ने सेनापति थे। इब्राहीम गार्दी ,मल्हारराव होल्कर,जनकोजी जी सिंधिया ,सूरजमल जाट आदि मराठा सेना का नेतृत्व कर रहे थे। रूहेल तथा अवध के नबाब अब्दाली की सहायता में थे।
अहमद शाह अब्दाली
अहमद शाह अब्दाली

१४ जनवरी १७६१ ई. को पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में दोनों सेनाओं के बीच युद्ध आरम्भ हुआ। आरम्भ में मराठों को सफलता मिली परन्तु बाद में उनके पैर उखड गए।तोपखाने का संचालक इब्राहीम गार्दी गिरफ्तार हुआ तथा अब्दाली ने उसे निर्दयता पूर्वक मार डाला। अब्दाली ने मराठा सेना का पीछा लगभग १२० मील तक किया और फिर लौट आया।इस युद्ध में लगभग एक लाख व्यक्ति मारे गए।इस पराजय का समाचार सुनकर पेशवा को गहरा अघात लगा।क्षय रोग से ग्रस्त होने के कारण वह यह संताप सह न सका और उसी वर्ष उसकी मृत्यु हो गयी। 

पानीपत के युद्ध के परिणाम 

ahmad shah abdali panipat battle in hindi पानीपत के युद्ध ने भारत की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। इस युद्ध में असंख्य लोग मारे गए तथा गिरफ्तार हुए।इस युद्ध के भयानक परिणाम के बारे में यदुनाथ सरकार ने लिखा है कि यह एक राष्ट्रव्यापी संकट था।महाराष्ट्र प्रदेश में कोई ऐसा परिवार न था जिसने आँसू न बहाया हो। पानीपत के युद्ध के कारण मराठा शक्ति क्षीण हो गयी और मराठा राज्य का पतन शुरू हो गया।इस युद्ध के कारण मुग़ल साम्राज्य को बड़ा धक्का पहुंचा और दिल्ली के आस -पास के प्रदेशों में अहमदशाह अब्दाली का अधिकार हो गया और मुग़ल साम्राज्य की सीमा छोटी हो गयी। 

पानीपत के युद्ध ने अंग्रेजों को भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का अवसर दिया।उन्होंने मराठों को बार बार हराया और अंत में मराठा राज्य समाप्त हो गया। 

पानीपत के युद्ध में मराठों की पराजय के कारण

पानीपत के युद्ध में मराठों की पराजय के कारण निम्नलिखित हैं - 
  • पेशवा बाजीराव ने अपने व्यवहार के कारण हिन्दुओं ,राजपूतों ,जाटों को अपना शत्रु बना दिया था।उसने अब्दाली की शक्ति का गलत अनुमान भी लगाया था।उसे कमजोर समझने के कारण स्वयं मैदान में न आया।उसकी अनुपस्थिति में सेनानायकों ने अपने अपने ढंग ढंग से युद्ध किया। 
  • मराठे छापामार युद्ध में कुशल थे।उन्हें मैदानी का अनुभव नहीं था।इस अनुभवहीनता के कारण वे ठीक से लड़ नहीं पाए और उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा।  
  • मराठों की पराजय का प्रधान कारण संयुक्त मोर्चे का अभाव था।उसके सेनापति युद्ध की एक निश्चित निति निर्धारित न कर रुके।इब्राहीम गार्दी तोपखाने का प्रधान बने बिना युद्ध करने को तैयार न था। सूरजमल जाट ने अपने ढंग से जाटों का नेतृत्व किया। अन्य सरदार भी अलग अलग ढंग से अपनी सेना का नेतृत्व कर रहे थे। 
  • मराठा सेना इतना विशाल थी कि उसका नेतत्व कर पाना असंभव था।अपनी विशालता के कारण सेना न तो तेज़ी से आगे बढ़कर प्रहार कर सकती थी और न तो शीघ्रता से पीछे हट सकती थी।
  • मराठों का सैनिक संगठन दोषपूर्ण था।पेशवा ने अनेक विदेशी सैनिकों को सेना में भर्ती कर लिया था।उनमें राष्ट्रप्रेम तथा बलिदान की भावना का अभाव था।पेशवा ने सैनिक छावनियों में स्त्रियों के रखे जाने की अनुमति देकर सैनिकों की युद्ध क्षमता को कमजोर कर दिया था।वे विलासी तथा कमजोर हो गए थे।उनमें अनुशासन का भी अभाव था।दूसरी ओर अब्दाली की सेना सुसंगठित थी।उसकी तोपें ,घोड़े आदि मराठा सेना की तुलना में उत्तम थे।
इन सब कारणों से पानीपत के युद्ध का परिणाम मराठों के प्रतिकूल रहा।इस युद्ध ने एकबार फिर भारतीय शासकों तथा सैनिकों की अक्षमता को खोलकर रख दिया था। 


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