सिद्ध साहित्य की प्रमुख विशेषताएं प्रवृत्तियाँ सिद्ध साहित्य की विशेषताएँ सिद्ध साहित्य की प्रवृत्तियाँ सिद्ध साहित्य की प्रमुख विशेषताएं sidh sahitya ki visheshta sidh sahitya ki pramukh visheshta सिद्धों ने किस भाषा में रचना की सिद्ध साहित्य का इतिहास सिद्ध संप्रदाय siddh sahitya ki pravritiyan - सिद्ध साहित्य का समय ९ वीं शताब्दी के आस पास माना जाता है।
सिद्ध साहित्य
सिद्ध साहित्य की विशेषताएँ सिद्ध साहित्य की प्रवृत्तियाँ सिद्ध साहित्य की प्रमुख विशेषताएं sidh sahitya ki visheshta sidh sahitya ki pramukh visheshta सिद्धों ने किस भाषा में रचना की सिद्ध साहित्य का इतिहास सिद्ध संप्रदाय siddh sahitya ki pravritiyan - सिद्ध साहित्य का समय ९ वीं शताब्दी के आस पास माना जाता है। बौद्ध धर्म के सिद्धांतों से देश के भीतर नवीन भावनाओं की रुपरेखा तैयार हुई। मन्त्रों द्वारा सिद्धि प्राप्त करने वाले साधक सिद्ध कहलाये। उन्होंने व्रज्यान धर्म का प्रचार किया। उन्होंने मन्त्र और हठयोग का अनुसरण किया। इन्होने यह बतलाया कि स्वाभाविक नियमों के अनुसार जीवन यापन करना सिद्धि का सोपान है। सिद्ध कवियों का साधन तत्व संयम से प्रारंभ होता है। सिद्ध साहित्य श्रृंगार एवं शांत रस को दोहा ,चौपाई आदि छंदों में व्यक्त करता है।सिद्धों की रचनाएँ प्रमुखतः दोहाकोश एवं चर्यापद आदि दो रूपों में प्राप्त है। सिद्ध आचार्यों के द्वारा जो साहित्य रचा गया उसका हिंदी साहित्य में बड़ा महत्व है ,लेकिन इनकी सिद्धों की संख्या में विवाद है। कुछ लोगों ने इनकी संख्या ८४ बतलाई गयी है। राहुल सांकृत्यायन ने चौरासी सिद्धों के नामो का उल्लेख किया है।कुछ विद्वानों का मानना है कि यह संख्या तंत्र -मन्त्र से सम्बंधित अर्थ व्यक्त करती है। सिद्ध साहित्यकारों के कुछ प्रसिद्ध नाम है -
- आर्यदेव
- कंकणपा
- कम्बलपा
- कुक्कुरीपा
- विरूपा
- भूसुकुप्पा
- लुईपा
- शबरपा
- सरहपा
निश्चित सामग्री के अभाव में इनके समय जीवन वृत्त आदि के विषय में बहुत कुछ अस्पष्ट है। अनुमान किया जाता है कि इन कवियों का समय प्रायः ८०० ई. तक रहा। सिद्धों में सबसे प्राचीनतम कौन था ,इसमें कुछ संशय है। कुछ लोग लुईपा को माना जाता है तो कुछ ने सरहपा को। इन कवियों तथा सिद्धों को पालवंश के शासकों का आश्रय प्राप्त था।
सिद्ध साहित्य की प्रमुख विशेषताएं sidh sahitya ki visheshta
सिद्ध साहित्य की विशेषताओं को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है -
- वेद ,उपनिषद,यज्ञ आदि का विरोध
- योग द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति
- ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु की आवश्यकता होती है
- भाषा में अपभ्रंश मिश्रित देशी भाषा का प्रयोग। यथा - मागधी अवहट्ट
- माया मोह का खंडन और त्याग आवश्यक है।
- समाधिस्थ व्यक्ति में कमलचक्र का वर्णन। आनंदवस्था की प्राप्ति योग द्वारा ही संभव।
- सहज समाधि द्वारा ईश्वर प्राप्ति संभव है।
सुन्दर प्रस्तुति
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