ईश्वर जब भी देता है छप्पर फाड़ के देता है

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ईश्वर जब भी देता है छप्पर फाड़ के देता है रामभरोसे के ऊपर चांदी के सिक्के टपाटप गिर रहे थे ,तो उसकी आँख खुल गयी। उसने पत्नी को जगाया और बोला - " देख भागवान ! ऊपर वाला देता है ,तो छप्पर फाड़कर देता है। "हमें ईमानदारी से जीवन जीना चाहिए। किसी का अहित नहीं सोचना चाहिए ,ईश्वर सबका भला करता है।

ईश्वर जब भी देता है छप्पर फाड़ के देता है


श्वर जब भी देता है छप्पर फाड़ के देता है रामभरोसे नाम का बहुत सीधा सादा गरीब किसान था।  उसका हर काम भगवान भरोसे चलता था। एक बार वह एक गाय बेचने हाट में जा रहा था।रास्ते में पेड़ के नीचे थोड़ी देर सुस्ताने रुका। गाय रस्सी से बाँध दी और लेटने लगा। 

तभी एक गिरगिट पर उसकी नज़र पड़ी। गिरगिट ने अपने स्वभाव के अनुसार अपनी मुंडी ऊँची -नीची की। रामभरोसे समझा कि यह मेरे मन की बात ताड़ गया है। यही सोचकर उसने गिरगिट से कहा - "क्यों रे क्या है ?"

गिरगिट ने फिर मुंडी हिलाई। रामभरोसे ने अर्थ लगाया कि यह गाय लेने का ईशारा कर रहा है। वह बोला - "गाय लेगा ,तीस रुपये की है। "

गिरगिट ने फिर मुंडी हिलाई। रामभरोसे समझा कि यह हाँ कह रहा है। कहा - "हाट - बाजार में भटकता रहूँगा ? इसे ही दे देता हूँ। "

रामभरोसे ने पूछा - रुपये आज देगा या कल ?" गिरगिट ने फिर मुंडी हिलाई। उसने जो समझा वह यह था - "अच्छा कल देगा ,चल कोई बात नहीं भाई ,कल दे देना। "फिर वह गाय को वहीँ छोड़कर घर की तरफ लौट चला। 
धन की बरसात
धन की बरसात 

घर आकर उसकी पत्नी ने पूछा - " क्या गाय बेच आये ? कितने में बिकी ? लाओ ,पैसे दे दो ?" इतने प्रश्नों के उत्तर में उसने कहा - "एक गिरगिट को तीस रुपये में दे दी है। पैसे कल देगा। "

उसकी पत्नी ने सुना तो दंग रह गयी। वह बोली - "तुम पागल तो नहीं हो गए हो ? कहीं गिरगिट भी गाय खरीदते हैं ? और वह पैसे भी देगा। " घर के दूसरे लोगों को भी जब मालूम पड़ा ,तो उसे खूब खरी खोटी सुनाई। फिर गाँव में जिसे पता लगा ,सभी उसकी हंसी उड़ाने लगे।  

लेकिन रामभरोसे पर किसी भी बात का कुछ असर न पड़ा। दूसरा दिन हुआ। सूरज निकलते ही वह घर से निकल पड़ा। उसी पेड़ के पास जाकर देखा ,उसे न तो गाय दिखाई दी ,न गिरगिट। उसने सोचा कि गिरगिट कहीं घूमने फिरने गया होगा। चलो ,आस - पास घूमकर देखते हैं। 

थोड़ी देर बाद उसने देखा ,एक झाडी के नीचे बैठा गिरगिट अपनी मुंडी हिला रहा था। देखते ही रामभरोसे बोला - "ला रे ! मेरे पैसे दे। "फिर उसकी ओरहाथ बढाया तो गिरगिट पीछे सरका। रामभरोसे जरा और आगे बढ़ा तो वह अपनी बिल में घुस गया।रामभरोसे ने सोचा कि शायद वह अन्दर रुपये लेने गया है। थोड़ी देर प्रतीक्षा की ,फिर वह उठा और अपने पास की लकड़ी से बिल को यह कहकर लगा - 'चल भाई ,चल ,बहुत देर हो गयी। मुझे पैसे दे दे ,मैं घर जाऊं। "

दो चार बार कुरेदने से वहां उसे चांदी के सिक्के नज़र आये। रामभरोसे ने समझा ,ये सिक्के गिरगिट ने भीतर से दिए हैं। उसने एक एक करके तीस सिक्के गिनकर निकाल लिए। तभी वहां एक मटकी दिखाई दी। उसमें और भी सिक्के थे। लेकिन उसने केवल तीस सिक्के निकाले और बोला - देख ले ,तीस रुपये ही लिए हैं। " फिर से मटकी को मिटटी में छिपाकर अपनी राह ली। 

घर जाकर सिक्के अपनी पत्नी को दिए और सारा किस्सा सुनाया। उसकी सारी बातें एक पड़ोसी बड़े ध्यान से सुन रहा था।उसने पत्नी से कहा कि मैं अभी जाकर वह मटकी ले आता हूँ। 

रात को वह उस जगह पहुँच गया। उसने धीरे - धीरे उस जगह की मिटटी हटाई ,तो वहां उसे मटकी दिखाई दी। मटकी के अन्दर देखा ,तो उसमें बहुत सारे बिच्छु दिखाई दिए। जैसे तैसे उसने मटकी को ढक दिया। फिर सोचने लगा - "रामभरोसे ने मुझे धोखा दिया है ,झूठ बोला। यहाँ कहाँ सिक्के हैं ? उससे बदला लेना चाहिए। यह मटकी उसके घर के छप्पर से उसके ऊपर डाल देनी चाहिए। बिच्छु काटेंगे तो बच्चू झूठ बोलना भूल जाएगा। 

यही सोचकर उसने मटकी का मुँह अच्छी तरह बाँधा और घर की ओर चल पड़ा।रामभरोसे की छत के खपरैलों को हटाकर मटकी का मुंह खोलकर बिच्छुओं को उड़ेला।  फिर चुपचाप घर आ गया। 

उधर रामभरोसे के ऊपर चांदी के सिक्के टपाटप गिर रहे थे ,तो उसकी आँख खुल गयी। उसने पत्नी को जगाया और बोला - " देख भागवान ! ऊपर वाला देता है ,तो छप्पर फाड़कर देता है। "

कहानी से शिक्षा - 
  • हमें ईमानदारी से जीवन जीना चाहिए। 
  • किसी का अहित नहीं सोचना चाहिए ,ईश्वर सबका भला करता है। 

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