भैरव जयंती व्रत पूजन विधि भैरव जयंती व्रत पूजन विधि Kaal Bhairav Puja Vidhi Mantra Vrat Katha Puja भैरव जयंती और व्रत मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी को किया जाता है। भैरवदेव ने मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी को दोपहर के समय अवतार धारण किया था।यही कारण है कि शुद्ध अष्टमी अथवा नवमीयुक्त अष्टमी को ही भैरवदेव के निमित्त व्रत और पूजन किया जाता है।
भैरव जयंती व्रत पूजन विधि
भैरव जयंती व्रत पूजन विधि Kaal Bhairav Puja Vidhi Mantra Vrat Katha Puja भैरव जयंती और व्रत मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी को किया जाता है।भगवान विष्णु के समान ही भगवान् शिव ने भी दुष्टों के दलन हेतु कई बार अवतार धारण किये हैं। भगवान शिव के सबसे महान और विलक्षण अवतारों में से एक है भैरवदेव के रूप में उनका अवतार धारण करना। भगवान शिव ने भैरवदेव के रूप में उनका अवतार धारण करना। भगवान शिव ने भैरवदेव का यह रूप किसी राक्षस को मारने के लिए नहीं ,बल्कि एक बार गर्वित और अहंकारयुक्त हो जाने पर ब्रह्माजी का गर्व चूर करने के लिए धारण किया था।शास्त्रों के अनुसार भैरवदेव ने मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी को दोपहर के समय अवतार धारण किया था।यही कारण है कि शुद्ध अष्टमी अथवा नवमीयुक्त अष्टमी को ही भैरवदेव के निमित्त व्रत और पूजन किया जाता है।
भैरव जयंती व्रत करने के विधि
भैरवदेव के निमित्त किये जाने वाले इस व्रत में एक समय फलाहार करने और सुबह ,दोपहर एवं सायं अर्थात तीनों कालों में भैरवदेव की पूजा करने का विधान है।भैरवदेव करके उनके चालीसा ,भैरव सहश्त्रनाम और आरतियों का पाठ तो किया ही जाता है ,उनके किसी मन्त्र के सतत जप का भी शाश्त्रीय विधान है।भैरवदेव की मूर्ति के समक्ष रात्री भर जागरण करके भैरवदेव और शिवजी के भजनों ,आरतियों और चालीसों का गायन करने वाले आराधक के सभी विघ्न टल जाते हैं और उसका परिवार उपरी बाधाओं से मुक्त रहता है। आराधक को दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु के उपरान्त उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
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भैरवदेव |
भैरव देव के मंदिरों में तो आज विशेष पूजा आराधना की ही जाती है ,उनके वाहन कुत्ते को भी आज दूध ,दही और मावे की मिठाइयाँ खिलाई जाती है।भगवान शिव का रौद्र रुप भगवान भैरवदेव और साथ ही आप शुद्धता और सफाई पर भी अधिक ध्यान नहीं देते हैं।यही कारण है कि कुछ व्यक्ति भैरव देव पर भी मदिरा भी चढ़ाते हैं और आपकी तामसिक सिद्धि भी करते हैं।परन्तु जहाँ तक सामान्य गृहस्थों का प्रश्न है ,आपको शिवजी के समान ही पूर्ण भक्तिभाव के फल फूल और नैवद्य चढ़ाकर ही करनी चाहिए।भैरवदेव की पूजा आराधना।यह भी माना जाता है कि आज के दिन गंगा जी में स्नान करके पितरों का तर्पण करने पर उनको मुक्ति मिल जाती है।
भैरव देव् की आरती
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
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भैरव |
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।
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