जब सिनेमा ने बोलना सीखा

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जब सिनेमा ने बोलना सीखा Jab Cinema Ne Bolna Sikha जब सिनेमा ने बोलना सीखा Jab Cinema Ne Bolna Sikha Ncert Solutions for Class 8 Hindi CBSE जब सिनेमा ने बोलना सीखा निबंध में लेखक प्रदीप तिवारी ने भारत की पहली सवाक फिल्म आलम आरा का वर्णन किया है।

जब सिनेमा ने बोलना सीखा 
Jab Cinema Ne Bolna Sikha


जब सिनेमा ने बोलना सीखा  Jab Cinema Ne Bolna Sikha Ncert Solutions for Class 8 Hindi CBSE जब सिनेमा ने बोलना सीखा निबंध में लेखक प्रदीप तिवारी ने भारत की पहली  सवाक फिल्म आलम आरा का वर्णन किया है। १४ मार्च १९३१ को यह बोलती फिल्म प्रदर्शित की गयी थी। आलम आरा ने बोलती फिल्मों का नया दौर शुरू कर दिया था।  

आलम आरा को बनाने वाले थे अर्देशियर एम ईरानी। उन्होंने १९२९ में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म शो बोट देखी थी। उसी फिल्म की प्रेरणा पर पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर उन्होंने फिल्म
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जब सिनेमा ने बोलना सीखा  
बना दी। इस फिल्म में कोई स्वतंत्र रूप से संगीतकार या गीतकार नहीं था। संगीत के लिए मात्र तबला ,हारमोनियम और वायलिन का प्रयोग करके गीत डाल दिए गए थे। मूक फिल्मों की अधिकतर शूटिंग दिन के प्रकाश में किया जाता था ,लेकिन इस फिल्म में शूटिंग रात में कृतिम प्रकाश की व्यवस्था करके किया गया था। इस प्रकार आलमआरा ने भविष्य के कई स्टार तकनीशियन दिए ही ,स्वयं अर्देशियर की कंपनी ने डेढ़ सौ से अधिक मूक और लगभग सौ अवाक फ़िल्में बनायीं। 

फिल्म में हिंदी उर्दू के मेलवाली हिन्दुस्तानी भाषा की लोकप्रिय बनाया। इसमें गीत ,संगीत एवं नृत्य की अनोखी प्रस्तुति थी। फिल्म की नायिका जुबैदा और नायक विट्ठल थे। विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थी। पहले उनको नायक के रूप में लिया गया था ,फिर बार में उन्हें हटा दिया गया। इसके लिए उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को वकील नियुक्त किया। जिसमें विजयी होकर विट्ठल भारत की पहली सवाक फिल्मों के नायक बने। साथ ही इस फिल्म में काम करने वाले कलाकार भविष्य में हिंदी सिनेमा के प्रमुख स्तम्भ बने।  

आलम आरा पहली बार मैजेस्टिक सिनेमा घर में प्रदर्शित हुई। फिल्म को देखने के लिए इतनी भीड़ आती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना आसान नहीं था। यह दर्शकों के लिए अनोखा अनुभव था। यह फिल्म १० हज़ार फूट लम्बी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। आलम आरा के बाद आरंभिक बोलती फिल्मों के दौर की फिल्मों के कई अभिनेता गायक बड़े परदे पर नज़र आये। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओँ की शुरुवात हुई। हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिदिन फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगी। आलमआरा भारत के अलावा श्री लंका ,वर्मा और पश्चिम एशिया में पसंद की गयी। बाद में भारतीय सिनेमा के जनक फाल्के ने आलमआरा द्वारा स्थापित मानदंडों को अपनाया। 

जब सिनेमा ने बोलना सीखा प्रश्न अभ्यास पाठ से 


प्र.१. जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन से वाक्य छापे गये थे? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।

उ. जब पहली बोलती फिल्म आलम आरा प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर " वे सभी सजीव है ,सांस ले रहे हैं ,शत प्रतिशत बोल रहे थे ,अठत्तर मुर्दा इंसान जिन्दा हो गए हैं ,उनको बोलते ,बातें करते देखो। आदि वाक्य लिखे गए थे। उस फिल्म में अठारह चेहरे थे।  

प्र.२. पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए।

उ. पहली बोलती फिल्म के आलम आरा के निर्देशक अर्देशियर ईरानी को १९२९ में हॉलीवुड की फिल्म शो बोट से मिली। उन्होंने पारसी रंग मंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर फिल्म की पटकथा बना डाली। 

प्र.३.  विट्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप में हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुन: नायक होने के लिए क्या किया? विचार प्रकट कीजिए।

उ. विट्ठल का चयन आलम आरा के नायक के रूप में हुआ था लेकिन उर्दू का उच्चारण न ठीक ढंग से कर पाने के कारण उन्हें हटा दिया गया। उन्होंने इस कारण उस दौर के मशहूर वकील मोहम्मद अली जिन्ना को नियुक्त किया और मुक़दमे में जीत पायी। इस प्रकार से हिंदी की पहली बोलती फिल्म के नायक बने।  

प्र.४. पहली सवाक फिल्म के निर्माता निर्देशक अर्देशिर ईरानी को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है?

उ. पहली सवाक फिल्म के निर्माता निर्देशक अर्देशियर ईरानी को १९५६ में आलम आरा के प्रदर्शन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर सम्मानित किया गया और भारतीय सवाक फिल्मों का पिता कहा गया। लेखक के अनुसार अर्देशियर बड़े विनम्र व्यक्ति थे। यही कारण है कि सम्मान पाने पर वे कहते है कि मुझे इतना बड़ा खिताब देने की आवश्यकता नहीं है।मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरुरी योगदान दिया है। 



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