हिंदी दिवस हमारे सांस्कृतिक उत्थान की राह

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हिंदी दिवस हमारे सांस्कृतिक उत्थान की राहहिन्दी का मौलिक कामकाज रुक जाता है। केवल एक भाषा खत्म कर दीजिए फिर देखिए उसकी पूरी संस्कृति खत्म हो जाएगी। आज किसान बदल रहा है, खेती का तरीका बदल रहा है तो गाँव भी बदल रहे है। इसका प्रभाव क्या पड़ा कि ग्रामीण कृषि-जीवन की पूरी शब्दावली ही लुप्त हो रही है।

हिंदी दिवस हमारे सांस्कृतिक उत्थान की राह


जब भी सभ्यता विकसित हुई होगी, निश्चय ही उसके विकास में भाषा का पूरा योगदान रहा होगा। इसी भाषा ने सांस्कृतिक और सामाजिक विकास को सबसे ज़्यादा मजबूत बनाया। भारत के परिप्रेक्ष्य में परतंत्रकाल की भाषाएँ थोपी गई भाषाएँ थी। अतः भाषाई और राजनैतिक स्वतन्त्रता की जो ललक हिन्दी ने घूम-घूमकर जगायी वह कोई एक प्रांतीय भाषा के माध्यम से पूर्ण न हो सकता था। हर मोर्चे पर भिड़ने का जो संस्कार हिन्दी ने प्राप्त किया वह उसके पैदाइश के इतिहास में ही छिपा है। 
संक्रमण काल के दौरान ‘उर्दू’ जो फौजी शब्द है और ‘हिंदी’ जो फारसी का शब्द है, के उद्गम की बात छोड़ दें तो यह स्पष्ट है कि जो बोलियां थी उनको समेकित करके 17-18वी शती में जो भाषा विकसित हुई उसे खड़ी बोली अथवा हिंदी भाषा के रूप में जाना जाता है।
किसी समय हिंदी के बारे में शायर अमीर खुसरो ने कहा था कि “मैं हिन्दी की तूती हूँ।” याने कि हिन्दी या हिंदवी जो कभी हिन्दुस्तानियो के बीच शानोशौकत से बया होती थी। आम आदमी के जेहन और रहन में मसरूफ़ थी। वहीं आज मंत्रालयो मे हिंदी का काम नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गया है। इसके कई कारण है। एक कारण तो प्रमुखता है यांत्रिक परेशानियों का है जिसमें फोंट ही नहीं मिलते। ‘हँस’ और ‘हंस’ एक हो गए हैं। और कहीं-कहीं प्रोजेक्ट के अनुमोदन स्तर पर ही हिंदी भाषा की अनिवार्यता का कोई जिक्र टेंडर में नहीं होता और उसकी वजह से काम ग्राहकों का केवल अंग्रेजी भाषा में हो पाता है।   हो  भी  क्या ,   बाज़ार   सब  चीन  के  सामान  से  भरा  हुआ  है ,  बरतन ,अगरबत्ती , खिलोने ,  पटाखे , मोबाइल आदि     से ,   सो  कोई   भाषा ,हिंदी  भी  अलग-थलग  पड  गई  है ।

इस वैज्ञानिक युग में जबकि हमारे युवा इतने साक्षर हैं तब पुराने ऐसे कानून , अथवा  उनके  कुछ  अंश , जिनकी अब उपयोगिता नहीं रह गई है , उनके जारी रखने पर पुनर्विचार/ समीक्षा   होना चाहिए जैसे:एडवोकेट एक्ट/थाने में पीड़ित का प्रार्थना पत्र देना/समस्याओं के वैकल्पिक समाधान एडीआर की  विधि  संस्थान  , नई  दिल्ली की  शाखाएं  राज्य के  प्रतिष्ठित और संतुलित शैक्षिक संस्थानों में खोला जाना/भाषा संबंधी संवैधानिक विशेष अधिकारों को संतुलित किया जाना(विशेषकर संसद और सर्वोच्च न्यायालय के संबंध में) ।जो सरकार जनता के दरवाजे पर न्याय पहुंचाने के लिए आतुर हो,  वह महत्वपूर्ण सूचनाओं सामान्य सूचनाओं को अधिक दिन तक छुपा कर नहीं रख सकती। अब तक इस मामले में जो पहल हुई है उसको अक्षुण्ण बनाए रखना एक अनिवार्य  शर्त है ।विधि, तकनीकी, अभियंत्रिकी, कृषि और चिकित्सा के क्षेत्र में शैक्षिक पाठ सरल हिंदी में उच्च स्तर पर भी उपलब्ध कराया जाना आवश्यक है ।

अभी हाल ही में आउटलुक में अब्दुल बिस्मिल्लाह का एक लेख मुझे पढ़ने को मिला था और उसमें सड़कों के नाम बदलने को लेकर और कई ऐसी बातें लिखी गई थी। कोई भी लेखक हो केवल अपने विचार व्यक्त करता है और इस पर उनसे अधिक जानकारी अन्य लोगों के पास भी सटीक और प्रासंगिक हो सकती है।उसी प्रकार का
हिंदी दिवस
एक लेख हिन्दी समाचार पत्र दैनिक जागरण ( सप्तरंग) में दिनांक  09सितंबर 2019 को  पृष्ठ 12 पर छपा है जिसमें विश्व हिंदी सम्मेलनों, प्रयोजनमूलक हिंदी पाठ्यक्रम में शामिल कर देने भर से प्रगति की बात कही गई है। स्वातंत्र्य के इतने वर्षों पश्चात यह प्रगति अपर्याप्त है। इससे पूर्व डॉ पांडे ने हिंदी वर्णमाला में अनुस्वार आदि को शामिल न किए जाने पर भी एक लेख लिखा था। व्याकरण हिंदी व्याकरण खासतौर से उसमें समयानुसार संवर्धन और परिवर्तन होना भी चाहिए और जो कमियां है उनको दूर किया जाना चाहिए लेकिन मुख्य बात यह है कि आप उच्च पाठ्यक्रमों में टिप्पणी और शैक्षिक सामग्री सरल और सटीक हिंदी में उपलब्ध कराएं। अभी शब्दों का एकीकरण जो वर्षों पूर्व केंद्रीय हिंदी निदेशालय में शब्दावली समन्वय समिति श्री काशीराम शर्मा जी के नेतृत्व में चल रही थी  सन 80 के आसपास,  उसे प्रभावी ढंग से अच्छे विद्वानों के साथ पुनर्गठित किया जाना चाहिए और संपूर्ण भारतवर्ष में वह न केवल उपलब्ध होनी चाहिए बल्कि लागू भी होनी चाहिए।
  
बहुत सारे काम करने शेष है जिनमें जो व्यक्ति जिस स्तर के पद पर बैठा है उसे तैयार करने की सामग्री भी सीमित लोग जानते हैं उदाहरण के तौर पर मंत्रिमंडल के समक्ष जो नोट जाते,  वह किस प्रकार के जाते हैं वह सामान्य कार्यालय के अधिकांश बाबुओं को पता नहीं । अब यह सामग्री इतनी भी गोपनीय नहीं रही पर मानक रूप में नमूने के तौर पर उनकी मुख्य बातों की जानकारी तो विषय से संबंधित अनुवाद अधिकारियों और संबंधित अधिकारियों को सुलभ होनी चाहिए।अधिकारियों और कर्मचारियों दोनों को ही  हिंदी  में  डिक्टेसन देहे  के  लिए   समय अनुसार और समय की बचत करने के लिए और अन्य तकनीकी कार्मिकों की निर्भरता को न्यूनतम करने के लिए गूगल के एप्पल स्टोर से स्पीच नोट का फ्री वर्जन अपने मोबाइल पर डाउनलोड कर लेना चाहिए। आज का युग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है इसलिए विज्ञान की अधुनातन जानकारी मानक परिभाषा शब्द संकेतों और सूत्रों के अनुसार प्रासंगिक और उत्तम ग्रहण कर लेनी चाहिए फिर स्रोत चाहे वे कहीं के भी हो।डिजिलॉकर, एंटी थेफ्ट डिवाइस जो   कि मोबाइल के खो जाने पर आपको स्थान आदि की जानकारी सटीक देगी वह अवास्ट डॉट कॉम पर उपलब्ध होगी avast.com का फ्री एंटीवायरस भी डेस्कटॉप और मोबाइल दोनों के लिए उपयोगी है ।

साहित्य को भी और विचारशील और चिंतनशील बनाया जाना चाहिए ,75 के आसपास धर्मयुग नामक पत्रिका
क्षेत्रपाल शर्मा
क्षेत्रपाल शर्मा
बहुत अच्छे अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य को हिंदी में अनूदित करके उपलब्ध कराती थी और कोलकाता से छपने वाली पत्रिका रविवार भी बहुत अच्छा काम कर रही थी और इलाहाबाद पटना दिल्ली के कई प्रकाशकों को हिंदी के प्रकाशकों को श्रेय जाता है कि उन्होंने अच्छी सामग्री उपलब्ध कराई लेकिन कहना न होगा कि यहां स्तरीय सामग्री भी अधिकांश  अंग्रेजी में ही थी। अब समय आ गया है कि इस विषय में स्तरीय सामग्री हिंदी में उपलब्ध कराने के लिए विद्वान अधिकारियों को समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण के काम को ध्यान में रखते हुए अपने हाथ में ले लेना चाहिए  काम  किस  तरह  हो  ,  कोलकाता  के  आनंदलोक  अस्पतालों की  श्रंखला से   सीख लेनी  चाहिए।
एक बात महत्वपूर्ण है जो कि नागपुर, महाराष्ट्र में कार्यरत डॉ. जय प्रकाश से हुई वार्ता में उन्होने बताया कि वर्तमान में हिन्दी शब्द-चयन जैसी विकट समस्या में फंसी है। तो दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारी अपने नफे-नुकसान को देखकर भाषा को इस्तेमाल करता है, कोई बात उस पर न आन पड़े इसलिए वह चुपचाप अँग्रेजी को यथारूप संदर्भित कर देता है ताकि कोई पूछताछ हो तो वह अपने को बेचारा सिद्ध करते हुए बता सके कि उसने तो पहले वाला ही ज्यों का त्यों रखा है कोई परिवर्तन नहीं किया अतः उसे दोषी न माना जाए।मैथिलीशरण गुप्त जी ने हम कौन थे क्या हो गए अब और क्या होंगे अभी आओ  विचारे आज मिलकर यह समस्याए सभी , तब निश्चित रूप से आज का युग इसी विषय पर चिंतन को विवश कर रहा है. मनुष्य जीवन भाषा  धर्मी और  भाषा प्रयोगी है,जो भाषा जिस तरह व्यवहार और संस्कार मे प्रयोग की जा रही है वही सावधानीपूर्वक जारी रहे । हमारे सुनने मे यह आया ही है कि संस्कृत हमारी मुख्य भाषा थी लेकिन आज नही है । अनुष्ठानिक कार्य आज भी संस्कृत मे व्यवहृत है ।

यही पर हिन्दी का मौलिक कामकाज रुक जाता है। केवल एक भाषा खत्म कर दीजिए फिर देखिए उसकी पूरी संस्कृति खत्म हो जाएगी। आज किसान  बदल रहा है, खेती का तरीका बदल रहा है तो गाँव भी बदल रहे है। इसका प्रभाव क्या पड़ा कि ग्रामीण कृषि-जीवन की पूरी शब्दावली ही लुप्त हो रही है। इस प्रकार भाषा और संस्कृति का जो गठजोड़ बना था , वह अँग्रेजी/ कार्पोरेट जगत ने नष्ट कर दिया है।




संपर्क  - क्षेत्रपाल शर्मा
म.सं 19/17  शांतिपुरम, सासनी गेट ,आगरा रोड अलीगढ 202001
मो  9411858774    ( kpsharma05@gmail.com )

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