Deewano ki Hasti दीवानों की हस्ती

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Deewano ki Hasti दीवानों की हस्ती


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हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

आए बन कर उल्लास अभी,
आँसू बन कर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?

व्याख्या - प्रस्तुत पक्तियों में कवि भगवतीचरण वर्मा ने दीवानों के मस्तमौलापन का वर्णन किया है। दीवानों के जीवन में आनंद ही सब कुछ होता है। वे जहाँ जाते हैं ,अपने साथ आनंद और उल्लास साथ लेकर जाते हैं। जिस प्रकार हवा अपने साथ धुल उड़ाती चलती है ,उसी प्रकार दीवाने भी मस्ती का आलम उड़ाते चलते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं ,उल्लास व खुशियाँ साथ लेकर जाते हैं। लोग भी उनके आने से आनंदमय हो जाते हैं। संसार की कठिनाइयों को दीवाने लोग धूल समझकर उठा देते हैं। लोग दीवानों से इतना घुलमिल जाते हैं कि उनके चले जाने पर रोते रह जाते हैं। दीवानों से बिछड़ कर लोग दुखी हो जाते हैं और पूछते है कि तुम इतनी जल्दी आये थे और इतनी जल्दी चले जा रहे हो।

किस ओर चले? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,

दो बात कही, दो बात सुनी।
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।

व्याख्या - कवि का कहना है कि दीवानों के आनंद का मार्ग क्या है ? यह वो बताना नहीं चाहते हैं। वे केवल आनंद के मार्ग पर चलना जानते हैं। उन्हें चलना है ,इसीलिए चलते हैं। गति ही जीवन है और जड़ता ही मृत्यु है। इस भाव को वे मानते हैं। संसार से जो कुछ भी ग्रहण करते हैं ,उसका वे समरूपी वापस कर देते हैं। जितना लिया ,उतना दिया वाला भाव दीवानों का मूल मन्त्र है। जीवन में दुःख -सुख ,रात दिन ,ख़ुशी -गमी लगी रहती है। मानव मात्र इसी में लिप्त होकर अपना जीवन बिताता है ,लेकिन दीवाने इससे अनासक्त रहते हैं। दीवाने दुःख और सुख को जीवन के एक ही सिक्के के दो पहलु मानते हैं। उनका मानना है कि हम दुःख और सुख को जीवन से अलग नहीं कर सकते हैं। इसीलिए उन्हें समभाव से स्वीकार करना चाहिए।

हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी – सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।

अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहें रुकने वाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बँधन तोड़ चले।

व्याख्या - कवि के अनुसार दीवाने इस दुनिया को भिखमंगों की दुनिया मानते हैं। दुनिया को सिर्फ लेना आता है ,देना नहीं। इसके विपरीत दीवाने लगत में अपना स्नेह और प्यार निर्बाध गति से बिताते चलते हैं। दुनिया दीवानों को असफल व्यक्ति मानती है क्योंकि सांसारिक अर्थ में जिसे सफलता मानी जाती है ,दीवाने उसे नहीं पाते हैं। दुनिया उनके मस्तमौलापन को असफलता मानती है। दीवाने अपना और पराया का भेद नहीं मानते हैं। वे चलते रहते हैं क्योंकि चलायमान व्यक्ति ही जीवन है। जो व्यक्ति जड़ है ,उनके लिए भी दीवाने सफलता और आबाद रहने की कामना करते हैं। दीवाने संसार में रहने और जीवन यापन करने के लिए नियम स्वयं बनाते हैं और इसी अनुसार चलते हैं क्योंकि वे सांसारिक नियमों में व्यवस्थित नहीं हो पाते हैं। सबसे मज़े की बात है कि दीवाने इतने मस्तमौलापन में होते हैं कि वे अपने ही नियम तोड़कर जीवन में आगे बढ़ जाते हैं।



Deewano ki Hasti Summary saransh  कविता का सार / मूल भाव 

दीवानों की हस्ती
दीवानों की हस्ती
दीवानों की हस्ती भगवतीचरण वर्मा जी की प्रसिद्ध कविता है ,जिसमें कवि दीवानों के मस्तमौला जीवन पर प्रकाश डाला है। दीवानों को समाज भले ही नगण्य मानता हो म्लेकिन उनका कार्य प्रासंगिक रहता है। वे जहाँ भी जाते हैं ,जगत में आनंद और उल्लास का वातावरण अपने साथ लिए चलते हैं। वे मनुष्य जीवन की दुखों और परेशानियों को धूल की तरह उड़ाते चलते हैं। लोगों पर उनका इतना प्रभाव रहता है कि उनके आने की प्रतीक्षा करते रहते हैं और चले जाने पर आँसू बहाते हैं।

गति ही जीवन है और रुकना ही मृत्यु है। दीवानों के लिए सभी मनुष्य अपने होते हैं ,वे सभी को अपना प्रेम बाँटते हैं। वे दुनिया से जितना ग्रहण करते हैं ,उससे ही अधिक वे सूद समेत वापस करते हैं। सभी सुख दुःख के क्षण में वे समान भाव से रहते हैं। दुनिया ,दीवानों के अनुसार भिखमंगों की दुनिया है। जहाँ पर केवल लेना जानते हैं ,देना नहीं। इसके विपरीत दीवाने अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। उनकी यही सरलता को दुनिया असफलता मानती है। दीवानों अपने पराये में भेद नहीं करते हैं। वे सभी की मंगलकामना करते हैं ,भले ही दुनिया उनके बारे में कैसे भी विचार रखती हो। दीवाने स्वछंद होते हैं ,वे अपने नियम स्वयं बनाते हैं और मज़े की बात है कि वे अपने नियमों से स्वयं भी बंधे नहीं होते हैं। वे अपने स्वयं के नियमों को तोड़कर जीवन में गतिमान रहते हैं।

Deewano ki Hasti Question Answers  प्रश्न - अभ्यास कविता से 


प्र.१. कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बन कर बह जाना’ क्यों कहा है?

उ. कवि के अनुसार दीवानों का जीवन मस्तमौलापन लिए रहता है। वे संसार में सभी की भलाई के लिए कार्य करते रहते हैं। दूसरों की सुखी रखना उनका मूलमंत्र है। यही कारण है कि आम जनता बहुत दुखी हो जाते हैं। वे उनकी आने की प्रतीक्षा करते हैं और चले जाने पर दुखी हो जाते हैं। हालाँकि दीवाने एक जगह पर रुकते नहीं है ,उनका जीवन चलायमान है। सभी की सेवा करना दीवानों का धर्म है।

प्र.२. भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने वाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?

उ.कवि दीवानों के अनुसार दुनिया को भिखमंगों की दुनिया मानता है। दीवानों जहाँ अपना प्रेम सभी को लुटाते चलते हैं। वे इतना सरल होते हैं कि अपना पराया में भेद नहीं करते हैं। सभी के प्रति करुणा भाव रखते हैं। उनकी यही सरलता को दुनिया असफलता मान लेती है। दुनियां जहाँ अपने पराये का भेद करते हैं। अपनी कुत्सित स्वार्थों की पूर्ति में लिप्त रहती है ,वहीँ दीवाने सभी के प्रति अनासक्त भाव रखते हैं। दुनिया भले ही इसे असफलता माने ,लेकिन दीवाने अपनी असफलता पर भी प्रसन्न है और वे संसार की भलाई में लीन रहते हैं।

प्र.३. कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सब से अच्छी लगी?

उ. मुझे दीवानों की हस्ती कविता प्रेरणादायक लगी। कुछ सन्देश कवि ने पाठकों को दिया है ,जिनमें प्रमुख है कि हमें जीवन के सुख दुःख के प्रति समान भाव रखना चाहिए। सभी लोग भले ही सांसारिक पद प्रतिष्ठा को पाने में तल्लीन हो ,हमें दीवानों की तरह जगत की भलाई में ही लगे रहना चाहिए। भले ही दुनिया हमें असफल माने ,हमें केवल मानव जीवन को समृद्धशाली बनाने में लगे रहना चाहिए। 


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