ये कैसा अत्याचार है

SHARE:

ये कैसा अत्याचार है नारी को लक्ष्मी कहते घर में उसकी पूजा करते बाहर होती बलात्कार है लक्ष्मी से ही पैसा लेकर करते/होता उस पर अत्याचार है ये पुरुषों तेरा ये कैसा व्यौहार है तेरा ये कैसा अत्याचार है । लूट लेते हो उसकी अस्मत

ये कैसा अत्याचार है


नारी को लक्ष्मी कहते 
घर में उसकी पूजा करते 
बाहर होती बलात्कार है 
लक्ष्मी से ही पैसा लेकर 
करते/होता उस पर अत्याचार है 
ये पुरुषों तेरा ये कैसा व्यौहार है 
तेरा ये कैसा अत्याचार है । 
लूट लेते हो उसकी अस्मत 
बिगाड़ देते हो उसका चेहरा 
नारी
निकले नहीं वो घर से 
बैठा देते हो उस पर पहरा 
निकलती है जब घर से बाहर 
टूट पड़ते हैं भूखे भेड़िये 
ये कैसा कदाचार है 
ये पुरुषों तेरा ये कैसा व्यौहार है 
खत्म होती अब इंसानियत 
बढ़ती जा रही है हैवानियत 
दहेज की आग में आज भी 
जल रही है दुल्हन 
राखी बांधने के लिए 
कैसे हाथ उठाए बहन 
भाई ही कर रहा शर्मशार है 
ये कैसा अत्याचार है 
ये पुरुषों तेरा ये कैसा व्यौहार है 
बाप साँप बन गया है 
पलपल डंस रहा है,
आबरू बचता नहीं 
अपनों से अब मासूमों का 
ये कैसा व्यापार हैं
ये पुरुषों तेरा ये कैसा व्यौहार है 
ये कैसा अत्याचार है 
काहे को इतनी हेकड़ी 
कहे को इतनी तड़क-भड़क 
बदलो अपने विचार 
शुद्ध करो अपनी मानसिकता 
दो दिन की दुनिया 
फिर तो ये नश्वर संसार है 
पुरुषो ये तेरा कैसा व्यौहर है 
पुरुषो ये तेरा कैसा अत्याचार है॰ 

ज्वालामुखी

अगर किसी कवि को 
करते हो कैद / लगते हो बैन 
या जारी करते हो फतवा 
तो उस कवि को नहीं 
आप समाज के सोच को 
कैद करते हो 
समाज के विचार को 
बैन करते हो 
सारे समाज पर 
फतवा जारी करते हो 
किसी एक कवि को 
कैद करने से या 
उसे मार देने से/बैन करने से 
सोच खत्म नहीं हो जाती 
विचार खत्म नहीं हो जाते 
बल्कि और जोश-ओ-खरोश के साथ 
नए रूप में जन्म लेते हैं/लेंगें 
अनेक कवि हैं 
आप कितनों को कैद करेंगे 
कितनों के विरूद्ध 
मौत का फतवा जारी करेंगे 
कितनों के ऊपर बैन लगाएंगे 
और कबतक .........
ये बैन/ये क़ैद /ये फतवा 
एक दिन ज्वालामुखी बन कर फट पड़ेंगे 
और उसमे सब भस्म हो जाएंगे 
और उसमे सब भस्म हो जाएंगे ॰


तुम कौन

हिन्दू सूर्य की पूजा करते हैं 
मुसलमान चाँद में आस्था रखते हैं 
लेकिन सूरज कब कहता है कि 
मई रोशनी केवल हिन्दू को दूँगा 
चाँद कब कहता है कि वो 
अपनी शीतलता केवल मुसलमान को दूँगा 
दोनों सबको रोशनी और शीतलता 
देते हैं बिना किसी भेद भाव के
पारसी धर्मवाले आग कि पूजा करते हैं 
आग कब कहती है कि मैं
हिन्दू के घर नहीं जलूँगी 
मुसलमान के घर नहीं जलूँगी 
वो तो सबके घर जलती है 
अमीर के घर भी गरीब के घर भी 
महल में भी और फुटपाथ पर भी 
पर ये दुष्ट मनुष्य तुम इस सब में 
भेद भाव करने वाले कौन होते हो 
मैं तो ऊपर से सीधे-साधे, 
इंसान भेजता हूँ धरती पर 
उसे हिन्दू,मुसलमान,सीख,ईसाई 
पारसी,जैन ,बौद्ध इत्यादि 
बनाने वाले तुम कौन होते हो 
इंसान को इंसान ही रहने दो, 
जाति धरम में क्यों बाटते हो 
संभाल जाओ अभी भी समय है 
नहीं तो विनाश काले, 
विपरीत बुद्धि तो है ही । 


ये भारत तुझे प्रणाम,बार-बार प्रणाम 

ये भारत तुझे प्रणाम,बार-बार प्रणाम 
हजार बार प्रणाम,अनगिनत बार प्रणाम 
बनी रहे शान तेरी, चाहे चली जाए जान मेरी 
ऐसे विचार जहाँ के लोगो का हो 
उस भूमि को मेरा सलाम 
ये भारत तुझे बार-बार प्रणाम 
माँ से भी प्यारी मातृभूमि होती है 
तभी तो माएं अपने लाल न्योक्षावर करती है 
वैदिक काल से ही हो तुम महान 
इस बात को जनता सकल जहान 
यहीं पर जन्मे बुद्ध,नानक,राम और श्याम 
ये भारत तुझे प्रणाम,बार-बार प्रणाम 
यहाँ की संस्कृति है बेमिशाल
अतिथि देवो भव बना महान 
वसुधैवकुटुंबकम का दिया संदेश
यहाँ की मिट्टी है बड़ी अनोखी 
देवता भी करना चाहे यहाँ विश्राम 
ये भारत तुझे प्रणाम,बार-बार प्रणाम 
कलकल करती बहती नदियां तेरी 
हरियाली से भरे जंगल पर्वत विशाल
पाँव पखारे समुंदर जहाँ 
ऐसा मनोरम दृश्य और कहाँ 
इंडिया हिंदुस्तान तेरा ही नाम 
ये भारत तुझे प्रणाम,बार-बार प्रणाम 
तेरी आन बान शान की खातिर 
कितने वीर शहीद हुये 
कितनी माओं की कोख उजड़ी 
कितनी दुल्हन विधवा बनी 
कितनी बहने रोती रही लेके भईया का नाम 
ये भारत तुझे प्रणाम,बार-बार प्रणाम 
हँसते-हँसते फांसी पर चढ़ने वाले तेरे बेटे यहाँ 
अनेकता में एकता की बिशेषता यहाँ 
सभी धर्मों का मेल होता यहाँ 
सुबह को आजान शाम को आरती यहाँ 
होती रहती है यहाँ आठों याम 
ये भारत तुझे प्रणाम,बार-बार प्रणाम 
काश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक 
कच्छ से लेकर कोहिमा  तक 
कितना सुंदर तस्वीर तेरा
भाव राग ताल का मिश्रण जीवन तेरा 
“दीनेश” का तुझे शत बार प्रणाम   
ये भारत तुझे प्रणाम,बार-बार प्रणाम 






                                        -
- दिनेश चन्द्र प्रसाद “दीनेश “
                                                                                                डीसी-119/4, स्ट्रीट न.310,
                                       न्यू टाउन कोलकाता -700156   
      चलभाष न॰ 9434758093
                                                   

COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका