आषाढ़ का एक दिन नाटक में मातुल मातुल कालिदास के वंश का प्रसिद्ध पुरुष है . वह कवि है .Ashadh Ka Ek Din matul मातुल कालिदास को उज्जयनी जाने के लिए प्रेरित करता है . मातुल कर्मठ पुरुष है . मातुल की कथानक में स्थिति एक केन्द्रीय पात्र के रूप में होती है . राजकन्या प्रियगुमंजरी उसी के यहाँ आकर ठहरती है .वह कालिदास और मल्लिका के बीच की कड़ी भी है .
आषाढ़ का एक दिन नाटक में मातुल
आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश जी द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध नाटक है .मातुल प्रस्तुत नाटक में एक महत्वपूर्ण पात्र है .मातुल कालिदास के वंश का प्रसिद्ध पुरुष है ,वह एक अच्छा कवि है .कालिदास को कविता लिखना वही सिखाता है .
"मैंने पाला -पोसा ,बड़ा किया .क्या इस दिन के लिए की यह इस तरह कुल द्रोही बने ? कालिदास राजकीय सम्मान को ठुकराकर उज्जयनी जाना नहीं चाहते हैं .इससे मातुल परेशान हो जाता है .
"मैं आज सारे ग्राम में घोषणा करने जा रहा हूँ कि मेरा इस कालिदास नामधारी जीव से कोई सम्बन्ध नहीं है .
मातुल कालिदास के उज्जयनी जाने में अपने वंश का सम्मान समझता है .वह अम्बिका से कहता है -
"अम्बिका ,तुम समझती हो की एक तरह से राज्य की ओर से हमारे वंश का सम्मान किया जा रहा है .
मातुल को भय है कि सम्राट सम्मान को स्वीकार न करने से हमारे वंश का सम्मान किया जा रहा है .
"जो व्यक्ति कुछ देता है ,धन हो या सम्मान हो ,वह अपना मन बदल भी सकता है और मन बदल गया तो बदल गया .तुम सोचो सम्राट रुष्ट भी तो हो सकते हैं कि एक साधारण कवि ने उनका सम्मान स्वीकार नहीं किया ."
राजकन्या मातुल के यहाँ ही आकर ठहरती है .उनके मकान को पक्का बनवा देती है .मातुल प्रियगुमंजरी की अपनी कर्मठता का परिचय देता हुआ कहता है कि "मैं पशुओं के पीछे दस दस योजन घूमा हूँ .मैं कहता हूँ संसार में सबसे कठिन काम कोई है तो पशु चारण का .
मातुल का गुप्त वंश से सम्बन्ध रहा है .उसके वंशजों को राजकीय सम्मान भी मिलता रहा है .उसके भागनेय ने शकों से युद्ध किया था .मातुल की स्थिति अंतिम अंक में भी आती है .फिसलने से उसका पैर बेकार हो चुका है .अब वह वैशाखी के सहारे चलता है .कालिदास ने कश्मीर के शासक का पद छोड़ दिया है .इस सूचना के उसे कष्ट होता है .वह इसकी सूचना मल्लिका को आकर देता है .
मातुल की स्थिति कथानक में एक केन्द्रीय पात्र के रूप में हैं .कथानक का सूत्र उसकी उपस्थिति ही जोडती है .प्रारंभ में कथानक का विकास का आधार मातुल ही बनता है .राजपुरुष कालिदास को लेने आये हैं .कालिदास जाने का इच्छुक नहीं है .वह जगदम्बा के मंदिर में जा बैठता है .मातुल उसकी खोज करता है और उज्जयनी जाकर राजकीय सम्मान स्वीकार करने को प्रेरित करता है .प्रियगुमंजारी उसी के यहाँ आकर ठहरती है और उसका सम्मान करती है .अंतिम दृश्य में भी मातुल की भूमिका महत्वपूर्ण है .अतः मातुल निश्चय ही कथानक का महत्वपूर्ण पात्र है .
मातुल का विवरण संक्षेप में निम्न है -
- मातुल कालिदास के वंश का प्रसिद्ध पुरुष है .
- वह कवि है .
- मातुल कालिदास को उज्जयनी जाने के लिए प्रेरित करता है .
- मातुल कर्मठ पुरुष है .
- मातुल की कथानक में स्थिति एक केन्द्रीय पात्र के रूप में होती है .
- राजकन्या प्रियगुमंजरी उसी के यहाँ आकर ठहरती है .वह कालिदास और मल्लिका के बीच की कड़ी भी है .
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