सद्बुद्धि क्या है

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सद्बुद्धि क्या है सद्बुद्धि को लेकर विचार विमर्श सद्बुद्धि अर्थात परमात्मा द्वारा प्रदत्त विशेष बुद्धि जिससे मनुष्य अपने विवेक से स्वयं का व समाज का कल्याण करता है। सदबुद्धि जरूरी नहीं कि पढ़े लिखे लोगों की होती है।

सद्बुद्धि को लेकर विचार विमर्श


सद्बुद्धि अर्थात परमात्मा द्वारा प्रदत्त विशेष बुद्धि जिससे मनुष्य अपने विवेक से स्वयं का व समाज का कल्याण करता है। सदबुद्धि जरूरी नहीं कि पढ़े लिखे लोगों की होती है। कम पढ़ा लिखा व निरक्षर भी सदबुद्धि से ही व्यापार प्रारंभ कर लाभ कमाता है।जबकि पढ़ा लिखा नौकरीपेशा होकर भी उतना नहीं कमा पाता जितना कि
सद्बुद्धि
वह और अधिक कमाने की अपेक्षा रखता है। इस संसार में ऐसे बहुत से लोग हैं जो कम पढ़े लिखे होकर भी नामी इंसान बने जिनका जिक्र कहीं न कहीं इतिहास में पढ़ने व सुनने को मिल जायेगा। सदबुद्धि ऐसे ही नहीं आती। उसके लिये मनुष्य स्वयं उस योग्य दूसरों के अनुभवों से सीखकर बनता है। जब घर में एक कमाने वाला हो और दूसरे निकम्मे हो तो इसका मतलब यह नहीं कि निकम्मे के पास कमाने के लिए सदबुद्धि नहीं है या वह कमाना नहीं चाहता। कभी - कभी संगती ले बैठती है। जो अच्छे लोगों की संगत करेगा, दूसरों का आदर करेगा व उनकी बात सुनेगा अपने आप सदबुद्धि योग्य बनेगा। अगर वह शुरू से बूरे लोगों के साथ रहा और तनिक भी अच्छा नहीं सोचा खुद को लेकर तो वह अधोपतन कर रहा होता है खुद का, और ऐसा इसलिए होता है कि मनुष्य को अपने प्रारब्ध के दुःख भी भोगना पड़ता है। जो पिछले जन्म के दुःख शेष रह जाते हैं उन्हें अगले जन्म में भुगतना ही पड़ता है। वह लाख कोशिश करके देख ले कि मै ये कर लूँ, मै वो कर लूँ, परंतु होगा वहीं जो ऊपर वाला चाहेगा। ईश्वर ने प्रत्येक जीव को सदबुद्धि देकर ही इस संसार में भेजा है। अब यदि मनुष्य विवेक से काम न लेकर मुर्खतावश अपनी ऊर्जा को निष्क्रिय करे तो इसमें ईश्वर का क्या दोष ?

सद्बुद्धि  के मार्ग

सदबुद्धि मंदिर जाने से आयेगी, सदबुद्धि संतजनों के साथ रहने से आयेगी, सदबुद्धि दुष्टों का साथ छोड़ने से, लालच छोड़ने से, मोह छोड़ने से आयेगी। सदबुद्धि के मार्ग में आना उतना ही आसान है जितना प्यासे का कुँए तक चलकर आना। जब जमाने भर की ठोकरे खाकर, दूसरों से धोका खाकर, सर से पाँव तक आलस्य की चादर हटाकर बिल्कुल नग्न होकर मात्र आसक्त साधारण प्राणी बनने की चेष्टा रखेगा तब सदबुद्धि अपने आप आ जायेगी।एक उदाहरण को लेकर हम आसानी से समझ सकते हैं- एक घर में दो बहने थी। एक बहुत पढ़ी लिखी
मनीष कुमार पाटीदार
मनीष कुमार पाटीदार
थी व एक कम पढ़ी लिखी। जो बहुत पढ़ी लिखी थी और नौकरी करके अपना घर चलाती थी उसकी शादी एक संपन्न परिवार में हो गई जबकि उसका पति कम पढ़ा लिखा था। और जो कम पढ़ी लिखी थी उसकी शादी एक पढ़े लिखे धनाढ्य घर में हो गई। यह देखकर बड़ी बहन जो ज्यादा पढ़ी लिखी थी उसके मन में संदेह हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है कि मै ज्यादा पढ़ी लिखी हूँ तो मेरी शादी कम पढ़े लिखे से हो गई और छोटी बहन की ज्यादा पढ़े लिखे से ? उसने यह प्रश्न एक दिन अपने पिताजी के सामने रखा मायके में। पिताजी ने जवाब दिया- बेटी जब तेरी शादी को लेकर तेरी माँ की और मेरी चिंता बढ़ने लगी तो हमने सही अवसर देखते हुए तेरा विवाह कम पढ़े लिखे से कर दिया ताकि तु पढ़ी लिखी और समझदार होकर कैसे भी घर गृहस्थी चला सके। और जब छोटी की शादी को लेकर चिंता होने लगी तो उसकी शादी घर बैठे आये पढ़े लिखे और समझदार दामाद से कर दी। ताकि वह हमारी बेटी को सदा सुखी रखे। लड़के में कमी थी कि वह अपाहिज था, जबकि हमारी बेटी में कोई खराबी नहीं थी। सोचो अगर उसकी शादी कम पढ़े लिखे या गरीब से हो जाती तो उसे जीवनभर दुःख नहीं उठाना पड़ता क्या ?

स्वविवेक -

यदि तुम्हारी शादी पढ़े लिखे से करवा देता तो तुम पढ़े लिखे अक्सर अपनी ही मनमानी करते और घर में कलहपूर्ण एक दूसरे का अपमान करते जिससे परिवार बिखर जाता। अक्सर ज्यादा पढ़े लिखे दाम्पत्य जीवन मेें ही कलह होता रहता है छोटी छोटी बातों को लेकर।तो इस तरह हम उदाहरण से समझ सकते हैं कि किस तरह एक पिता ने सदबुद्धि से अर्थात स्वविवेक से अपनी बेटियों के घर बसाये। जबकि पिता अनपढ़ किसान था। क्या उसे यह सदबुद्धि ईश्वर ने स्वप्न में आकर दी या किसी महात्मा या साधु ने ? उसे यह सदबुद्धि दूसरों के अनुभवों से मिली, उसे यह सदबुद्धि अपने सभ्य व्यवहार व पुर्वजों के संस्कारों से मिली।

ईश्वर की दृष्टि -

अतः इस तरह हम समझ सकते हैं कि मंदबुद्धि और सदबुद्धि व्यक्ति में क्या विशेषताएँ होती है। मंदबुद्धि व्यक्ति दूसरों का गुलाम होता है जबकि सदबुद्धि व्यक्ति कभी किसी का गुलाम नहीं होता। वह अपने विवेक से एवं दूसरों से परामर्श लेकर जीवन में आगे बढ़ता है।मंदबुद्धि को सदबुद्धि तब तक नहीं आती जब तक उसमें दूसरों के प्रति करूणा, प्रेम एवं इस मायावी संसार को ईश्वर की दृष्टि से देखने की ताकत नहीं आ जाती।वह भीतर ही भीतर अंधकारवश खुद को दुःखी समझने लगता है जबकि उसे सही राह दिखाने वाला तो उसका कोमल मन होता है जो उसे भटकाता रहता है। मन को वश में करना जिसने जीत लिया समझो ईश्वर को जीत लिया।अच्छा सोचोगे, सुनोगे तो सदबुद्धि अपने आप आ जायेगी।




- मनीष कुमार पाटीदार, 
ग्राम + पोस्ट ईटावदी, तहसील महेश्वर, जिला खरगोन (म. प्र.)
मोबा - 8435740937

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