माटी मानुष चून

SHARE:

माटी मानुष चून अभय मिश्रा का उपन्यास पढ़ते हुए यह डर लगातार बना रहता है कि यह किसी लेखक की कल्पना की उपज नहीं है, यह हमारे भविष्य का संकेत भी है। साथ ही यह उम्मीद भी जगती है। कि ऐसी कथाएँ पढ़कर शायद हम चेत जायें। शायद हम मान लें कि हम अपने पर्यावरण से अलग नहीं हैं, उसका एक हिस्सा भर हैं।

माटी मानुष चून


अभय मिश्रा पत्रकार हैं। वे फ़िल्मों, खेल-कूद या चुनावी राजनीति जैसे विषयों पर नहीं लिखते, जिन पर सामग्री लोग आसानी से पढ़ लेते हैं। वे एक कठिन विषय को समझने की साधना में लगे रहते हैं, ऐसा विषय जो शायद हमारे समय में यथार्थ का सबसे बड़ा शिकंजा बनता जा रहा है : पर्यावरण।

ऐसा लगता है कि इन कठिन विषयों पर पत्रकारिता करते-करते यथार्थ की मुठभेड़ ने अभय मिश्रा का मन बदल
माटी मानुष चून
दिया। गहराई और मेहनत से किसी बात को समझने वालों के साथ ऐसा कभी-कभी हो जाता है। उन्हें कहीं-न-कहीं लगा होगा कि पत्रकारिता और तथ्यों पर आधारित लेखन हमारे समय के बड़े संकटों का भव्याकार ठीक से बतला नहीं पाते। शायद इसीलिए वे साहित्य और कल्पना के संसार की ओर मुड़े। आपके हाथ में जो उपन्यास है वह इसी का नतीजा लगता है। पत्रकारिता में पर्यावरण के शोध के दौरान एक विशाल संसार और उसके अनेकानेक गुँथे हुए तार उन्हें दिखने लगे। इस अनुसन्धान ने उनकी कल्पना की मांसपेशियों को खींच-खींच कर मज़बूत किया है। इतना मज़बूत, कि वे अपनी अगली बात कथा-संसार से कहने के लिए तैयार हो गये।

यह एक पत्रकार का पहला उपन्यास है। लेकिन यह कल्पना और यथार्थ के बीच ऐसे झूलता है जैसे अच्छी कला झूलने की कोशिश करती है। भविष्य की गोदी में निडर हो कर कूदने वाली इस कहानी की धुरी है सन् 2074 में फरक्का के बाँध का टूटना। इसके बाद जो त्रासदी खुलती जाती है, उसमें प्रलय के संकेत दिखते हैं। कई कथाकार ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी कल्पना के सहारे वह बात बतलाई है जो बाद में सही में घटित हुई। फलित भविष्य बताने की तरह। अभय मिश्रा का उपन्यास पढ़ते हुए यह डर लगातार बना रहता है कि यह किसी लेखक की कल्पना की उपज नहीं है, यह हमारे भविष्य का संकेत भी है। साथ ही यह उम्मीद भी जगती है। कि ऐसी कथाएँ पढ़कर शायद हम चेत जायें। शायद हम मान लें कि हम अपने पर्यावरण से अलग नहीं हैं, उसका एक हिस्सा भर हैं।

शायद हम अपने अहंकार को किनारे रखकर प्रकृति के महारास में रम जायें। इस प्रलय की कहानी में एक अंश आशा का भी है।

सोपान जोशी

अनुपम भाई अक्सर कहा करते थे कि प्रकृति का अपना कैलेण्डर होता है और कुछ सौ बरस में उसका एक पन्ना पलटता है। नदी को लेकर क्रान्ति एक भोली-भाली सोच है इससे ज़्यादा नहीं। वे कहते थे हम अपनी जीवन-चर्या से धीरे-धीरे ही नदी को ख़त्म करते हैं और जीवन-चर्या से धीरे-धीरे ही उसे बचा सकते हैं।

उनका ‘प्रकृति का कैलेण्डर’ ही इस कथा का आधार बन सका है। नारों और वादों के स्वर्णयुग में जितनी बातें गंगा को लेकर कही जा रही हैं यदि वे सब लागू हो जाये तो क्या होगा? बस आज से 55-60 साल बाद सरकार और समाज के गंगा को गुनने-बुनने की कथा है ‘माटी मानुष चून'।

अभय मिश्रा -लेखक परिचय

पैदाइश और पढ़ाई-मध्य प्रदेश में। पापा सरकारी नौकरी में थे इसलिए प्रदेश के कई हिस्सों (सीधी, रीवा, अम्बाह, होशंगाबाद, खण्डवा, इन्दौर, भिण्ड, ग्वालियर और भोपाल) की संस्कृति ने पोसा। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता में डिग्री ली। रोजी रोटी की चिन्ता दिल्ली ले आयी वाया हैदराबाद। नवभारत, ईटीवी, वायस ऑफ़ इंडिया, राज्यसभा टीवी सहित कई चैनलों और अख़बारों में काम करने का मौका मिला। जब मुख्य धारा का मीडिया भरोसा पैदा नहीं कर पाया तो स्वतन्त्र लेखन की तरफ़ मुड़ गये। यथावत में पिछले पाँच सालों से नदियों पर नियमित कॉलम। द प्रिंट, जनसत्ता सहित डिजिटल और प्रिंट माध्यम में स्वतन्त्र लेखन।

पूरे गंगापथ (गोमुख से गंगासागर) की अब तक चार बार यात्रा की। देश की तक़रीबन सभी नदियों को छूकर देखने-समझने की कोशिश अनवरत जारी। विभिन्न स्कूलों में बच्चों के साथ नदी संस्कृति और उसके बदलाव पर बातचीत होती रहती है। (लेक्चर थोड़ा भारी शब्द है।) पंकज रामेन्दु संग दर दर गंगे लिखी जो गंगा पर आधारित फ़िक्शनल ट्रैवेलॉग है। इन दिनों इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में नदी संस्कृति को समझने की कोशिश कर रहे हैं।

COMMENTS

Leave a Reply: 3
  1. ऐसे विषय पर उपन्यास लिखना मुश्किल है,पर समय की मांग है.

    जवाब देंहटाएं
  2. माती मानुष चून के विषय में पुस्तक समीक्षा पढ़ी| यह पुस्तक हम कैसे online पढ़ सकते है?

    ज्योति

    जवाब देंहटाएं
  3. माटी मानुष चून पुस्तक समीक्षा पढ़ी| यह पुस्तक हम online कैसे पढ़ सकते है?

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका