हिन्दी के संचार माध्यम

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आधुनिक जनसंचार माध्यमों के उपयोग से हिंदी भाषा को वैश्विक रूप प्रदान हुआ है। आज समुचे विश्व में जनसंचार माध्यमों का प्रयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है।हिंदी भाषा पिछले दशक में भाषाई तौर पर नहीं, बल्कि एक बड़ी शक्ति के तौर पर समुचे विश्व में उभरी है।

जनसंचार माध्यमों का हिंदी भाषा वैश्विकरण में योगदान


                        
आधुनिक जनसंचार माध्यमों के उपयोग से हिंदी भाषा को वैश्विक रूप प्रदान हुआ है। आज समुचे विश्व में जनसंचार माध्यमों का प्रयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है।हिंदी भाषा पिछले दशक में भाषाई तौर पर नहीं, बल्कि एक बड़ी शक्ति के तौर पर समुचे विश्व में उभरी है।  इसका पुरा श्रेय जाता है दृक-श्रव्य माध्यमों को।  इन माध्यमों के अंतर्गत आने वाले विभिन्न चैलनों ने हिंदी भाषा को विश्वस्तर की एक महत्त्वपूर्ण और विशाल भाषा के रूप में
जनसंचार माध्यम
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प्रस्थापित किया।  जब इन चैनलों की शुरुआत हुई थी तब यह चैनल चलेंगे या नहीं यह हँसी का विषय बना हुआ था।  लेकिन जब इन चैलनों ने हिंदी भाषा को संजोए रखकर अपनी आर्थिक स्थिति को भी सवाराँ और हिंदी भाषा को विश्व भाषा के रूप देने में अपना अमूल्य योगदान दिया है।इस संदर्भ में डॉ. जय प्रकाश पाण्डेय जी का कहना है –“अंग्रेजीदां रिपोर्टर भी हिन्दी चैनलों में दिखने के लिए अपने बायोडाटा देने लगे और विज्ञापन की दुनिया भी समझ गई कि बाजार अब हिन्दी का ही है।  इस समझ को लपकने में भारतीय नेताओं ने भी पल भर की देर नहीं लगायी।  वे अपनी जनसंपर्क कंपनियों की मदद से कोशिश करने लगे कि अंग्रेजी चैलन में चेहरा भले ही न दिखे, लेकिन हिन्दी में तो अपनी उपस्थिति दर्ज करानी ही है, ताकि भारतीय जनता देखे और समझे कि हम लगातार काम कर रहे हें।  इसके अलावा जब वोट मांगने जाएं, तो जनता हमें दूर से ही पहचान लें।”1 अंग्रेजी चॅनलों ने भी आज हिंदी को विश्वस्तर भाषा मानते हुए जगह दी है।  एक समय था हिंदी भाषा के प्रति कोई भी आसक्ती नहीं दिखाता था लेकिन आज अंग्रेजी पत्रकारों ने भी हिंदी की लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए उसका विश्वस्तर पर स्वीकार किया है।  राजनीतिक लोग भले ही अपने स्वार्थ के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग करते होगें लेकिन प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी को वैश्विक दर्जा देने के लिए उनका भी योगदान रहा है।जनसंचार माध्यमों के अंतर्गत दृक-श्रवय माध्यमों में विभिन्न चैनलों काहिंदी भाषा वैश्विकरण में मौलिक योगदान रहा है।

दूरदर्शन ने सन 1980 के दशक में हिंदी के विविन्न चैनलों द्वारा घर-घर में अनेक धारावाहिक आने से तथा हिंदी विज्ञापनों की भरमार होने से हिंदी कार्यक्रमों की लोकप्रियता भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में होने लगी।देशी की सर्वाधिक आबादी हिन्दी भाषा होने साथ-साथ अन्य भाषी भी हिंदी भाषा को समझने लगे।  यही अवस्था विदेशों में हुई भी जिन लोगों को हिंदी भाषा नहीं आती थी व धारावाहिाकों एवं हिंदी विज्ञापनों के जरिए समझनेका प्रयास करने लगे।  इसप्रकार हिंदी भाषा विश्व की चाहती भाषा बनने लगी।  इस संबंध में सुभाष चन्द्र सत्य  कहते हैं –“टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले हिन्दी समाचारों-विशेषकर दूरदर्शन समाचारों, ‘आज तक’ तथा ‘आँखो देखी’ जैसे कार्यक्रमों की लोकप्रियता के प्रभाव से बहुत से अहिन्दी भाषी नेता तथा विशिष्ट व्यक्त्‍िा भी अपनी प्रतिक्रिया अंग्रेजी की बजाय हिन्दी में देना पसंद करने लगे हैं, ताकि उनकी बात अधिकाधिक लोगों तक पहुँच सके।  बी.बी. सी. तथा अन्य अनेक विदेशी प्रसारण-संगठनों से भी हिन्दी समाचार एवं अन्य कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं।  आकाशवाणी की विदेश प्रसारित सेवा और दूरदर्शन के अन्तर्राष्ट्रीय चैनल तथा उपग्रह चैनलों से विदेशों में बसे भारतीयों के लिए विविध प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं।”2 इसप्रकार हिंदी भाषा जनसंचार माध्यमों के जरिए समुचे विश्व में अपना स्थान प्राप्त किया है। विदेशों बसे हुए भारतियों के लिए, विदेशी हिंदी प्रेमीयों के लिए अलग-अलग तरह से कार्यक्रम तैयार किए जा रहें हैं।विदेशी प्रसारण संगठनों के माध्यम से भी हिंदी भाषा में अनेक कार्यक्‌रमों को प्रसारित किया जा रहा है।

वर्तमन में हिंदी सिनेमा, हिंदी फिल्म गीतों ने रेडियो के माध्यम से हिंदी भाषा को विदेशों में पहलेही पहुँचाया है।  आज वही काम टेलीविजन कर रहा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन ही नहीं, भारत में सक्रिय तमाम हिंदी चैनल भी जेसे बी.बी.सी. स्टार प्लस, जी टीवी, सोनी, मेट्रो चैनल, डिस्कवरी चैनल आदि ने विश्व में हिंदी भाषा को प्रतिष्ठा दिलवाई है।  जनसंचार माध्यमों के कारण विश्व में भी हिंदी भाषा के महत्त्व को लोग समझने लगे हैं।  इसका परिणाम यह हो रहा है कि विश्वभर में लोग हिंदी भाषा की ओर आकर्षित हो रहें हैं।  एक समय था विदेशी चैनलों में अंग्रेजी विज्ञापनों की भरमार रहती थी लेकिन आज पासा पलट सा गया है अंग्रेजी चॅनलों में भी हिंदी ने जगह पायी है और हिंदी के अनेक विज्ञापन उन चैनलों पर प्रदर्शित हो रहें हैं।  छोटे से कस्बे की खबर विश्वभर में तेजी से फैल रहीं हैं।  यदि गाँवों और कसबों में बाजार बनाना है तो हिंदी को अनदेखा कैसे किया जा सकता है।

आज समुचे विश्व में दूरदर्शन और चैनलों आदि श्रव्य-दृश्य माध्यमों द्वारा हिंदी भाषा प्रयुक्त हो रही है।  दृश्य-श्रव्य इन माध्यमों द्वारा जो प्रस्तुतीकरण हो रहा है, वह सूचना एवं मनोरंजन इन तत्वों को आधार बनाकर। सूचना करनेवाले कार्यक्रमों में समाचार, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षिक, स्वास्थ्यपरक आदि कार्यक्रम आते है। मनोरंजन में अनेक धारावाहिक, फिल्म, गीतबहार आदि अनेक कार्यक्रम आते हैं।  जनसंचार के माध्यमों ने हिंदी भाषा विश्व में इतना प्रचार-प्रसार किया है कि वह आज विश्व में अपनी जड़े मजबुत की है।

इलेक्ट्रॉनिक जनसंचार माध्यमों के विकास की कल्पना, भाषा के बना नहीं हो सकती और संचार माध्यमों के बिना भाषा का विकास नहीं हो सकता।  संचार माध्यमों के साथ भाषा का विकास, और भाषा के साथ संचार माध्यमों का विकास यह निरंतर चलनेवाली घटना है।  जनसंचार माध्यमों के कारण हिंदी भाषा ने भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में अपना परचम लहराया है।  इन घटनाओं के कारण समाज का विकास भी हुआ है।  मानव की आधुनिकता के लिए सहायता करनेवालों में जनसंचार माध्यमों का स्थान सर्वोपरि आता है। विश्व आज एक ऐसा समाज बना हुआ है जिसका संबंध कई भाषाओं से हैं।  जनसंचार के लिए भाषा की अनिवार्यता और भाषा के लिए जनसंचार की आवश्यकता यह एक दूसरे के लिए सापेक्ष है।भाषा और जनसंचार भारतीय जनता के ह्दय की धड़कन बनाने कार्य जनसंचार माध्यमों पिछे 2 दशकों में किया है।  विश्व की भाषा और जनसंचार माध्यम एक दूसरे जुड़ हैं इस संबंध में चन्द्रकुमार कहते हैं –“जनसंचार के क्षेत्र में बड़ी भारी क्रांति आ गयी है।  संचार के साधनों की गति तो अब चौंकानेवाली हो गयी है।  जो उपकरण तैयार हो रहे हैं आज वे पुराने पड़ रहें हैं।  आज दुनिया सिमटकर छोटी हो गयी है।  देश-विदेश की सूचनाएँ, घटनाएँ आज हम चन्द सेकंदो में प्राप्त कर रहें हैं।  उपग्रह, सैटेलाईट चन्द्र मंगल या अन्य ग्रहों से जानकारी प्राप्त करना संचार –माध्यमों का ही तो करिश्मा हैं।  न जाने सृष्टि से अब तक कैसे-कैसे चमत्कार दिखलायेंगें इसका भी पता नहीं।”3 आज जनसंचार माध्यम रेडियो, दूरदर्शन, सेटैलाईट जन-जन में रमकर कमाल दिखा रहें हैं।  हिंदी भाषा आज जिस प्रकार समुचे विश्व में फली-फुली है इसका पूरा योगदान जनसंचार माध्यमों को ही जाता है।

वर्तमान में जनसंचार माध्यमों का सबसे प्रभावी माध्यम वीडियों कांफ्रेसी की लोकप्रियता बढ़ रही है।  विश्व के किसी भी कोने में बैठे हुए व्यक्ति को सामने देखते हुए बातें कर सकतें हैं।इसमें ध्वनी और दृश्य दोनों प्रकार की संपर्क सुविधा होने के कारण संचार माध्यमों या तकनीकी का इस्तेमाल करते समय संसाधनों की भारी बचत होती है।  दूसरे देश या प्रान्त में स्थित किसी भी प्लान्ट में, अपने संयंत्र में आई कंप्युटर प्रणाली में गड़बड़ी को ठीक करने के लिए वहाँ जाने की जरूरत नहीं पड़ती।  अपने घर पर बैठे-बैठे सब कुछ ठीक किया जा सकता है।  इस तंत्र के जरिए एक ही अधिकारी को नियुक्त कर उसके द्वारा सभी प्रकार के कार्यों पर मॉनीटरिंग की जा सकती है।  इस तकनीकि द्वारा हिंदी भाषा का भी प्रयोग कर हिंदी भाषा को विश्वभर में संचारित किया जा सकता है।  विदेशों रह रहे भारतीय या हिंदी भाषा प्रयोग करने वाले लोग बड़ी आसानी से आदान-प्रदान कर सकते हैं।

आज इंटरनेट इस जनसंचार माध्यम के जरिए विश्व में कहीं पर भी अपनी सुविधाजनक भाषा का इस्तेमाल कर संपर्क किया जा रहा है।  सायबर स्पेसतकनीकि के विषय में आज विश्वभर में बाते कि जा रहीं हैं।  इसका प्रयोग
प्रा. बालाजी गोविंदराव कारामुंगीकर
प्रा. बालाजी गोविंदराव कारामुंगीकर
कम्प्युटर, बुलेटिन बोर्ड्स, टेलीविजन नेटवर्क, कमर्शियल ऑन लाईन सर्विस, इंटरनेट, उपग्रह, केबल प्रसारण आदि के जरिए हो रहा है। मीडिया में तो सायबर शब्द अब उपसर्ग (प्रीपोजीशन) की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। जैसे साइबर फीलिया, साइबर फोबिया, साइबर वन्क, साइबर सेक्स और साइबर साल्ट आदि।  वास्तव में साइबर स्पेस की तकनीकि अमरीकी साहित्यकार विलियम गिब्सन के साहित्य से निकलकर आयी है ऐसे चिंतकों का मानना है कि उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में साइबर स्पेस नाम दिया है।  अपने एक फिक्सन में कंप्युटर द्वारा बनाया हुआ (जनरेटेड) लँड स्केप माना है।  कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि गिब्सन के इस थी से उन्हें न्यूरान्स, फोटो और इलेक्ट्रॉन्स के संशोधन पर काम करते समय काफी बल और दिशा मिली है।  इससे लेखकों की खयाली दुनिया को यथार्थ और फंतासी के नये मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है।  इस तकनीकि का प्रयाग हिंदी भाषा के विस्तार के लिए आज विश्वभर में हो रहा है।  यह तकनीकि का बड़े पैमाने पर साहित्यिक, नए लेखक उपयोग अपना साहित्य, कहानिया, लेख, कविताएँ, समिक्षात्मक लेख आदि को ई-सुविधा के जरिए प्रकाशित कर रहें हैं।  इंटरनेट के इस युग में पहले अंग्रेजी का ही बोलबाला था किन्तु आज हिंदी भाषा का प्रयोग भी इस जनसंचार माध्यमों के द्वारा विश्वभर में किया जा रहा है।हिंदी भाषा को वैश्विक रूप प्रदान करने में यह जनसंचार माध्यम मील का पत्थर साबित हुए हैं।

हिंदी भाषा को वैश्विक दायरा प्रदान करने में आधुनिक जनसंचार माध्यमों का बहुत बड़ा योगदान रहा है ठिक वैसेही पारंपारिक जनसंचार माध्यमों का भी योगदान प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी को वैश्विक रूप प्रदान करनें में लगा है।  पारंपारिक जनसंचार माध्यमों में शास्त्रीय संगीत, नृत्य, लोकगीत, लोककथा आदि के प्रति विदेशों में भी आकर्षण रहा है।इन माध्यमों की सहायता से हिंदी भाषा विश्व में पहुँची है।जैसे – पंडित रविशंकर जी ने शास्त्रीय संगीत (सीतारवादन) के साथ हिंदी भाषा को विदेश पहुँचाया।  उनके बडे भाई उदयशंकर जी शास्त्रीय नृत्य के साथ विदेश में ख्याती पायी। ऐसे अनेक उदाहरण दे सकते हैं जिनके कारण पारंपारिक जनसंचार माध्यमों द्वारा भारतीय भाषा, कला, संस्कृति विदेशों में पहुँची है।  अंत में यह कहना उचित रहेगा की पारंपारिक और आधुनिक जनसंचार माध्यमों के कारण ही हिंदी भाषा ने विश्व भाषा का दर्जा पाया हैं।

      
मनुष्य को अपना जीवनयापन करने के लिए उपरोक्त बताए हुए जनसंचार माध्यमों की सहायता लेनी ही पड़ती है। जनसंचार माध्यमों के अभाव में वह अपना सर्वांगिण विकास नहीं कर सकते।  मनुष्य को अपनी अत्यावश्यक जरुरतों के अतिरिक्त जनसंचार माध्यमों को भी एक जरुरत मानकर जीवन यापित करना पड़ता है।  मनुष्यों की जिज्ञासावृत्ति के कारण प्रतिदिन जनसंचार माध्यमों के नए-नए तथ्यों की खोज़ हो रही है और इसके लिए कुछ न कुछ करने की चाह मनुष्य के अंदर पनप रही है।  मनुष्य की इसी जिज्ञासावृत्ति के कारण दिन-ब-दिन विकासक्रम में आगे बढ़ना पड़ रहा है।  आज विकास की दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो परमोच्च शिखर तक जनसंचार माध्यम पहुँच चुके है।  सुचना और प्रोद्योगिकी के इस नवयुग ने सुचना के आदान-प्रदान को नविनता और अत्याधिक गती प्रदान की है। जनसंचार जगत लगातार उत्तरोत्तर विकास एवं प्रगति की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। आज इस यांत्रिक संचार क्रांति ने रोज़गार, शिक्षा तथा दैनिक जीवन में अभुतपुर्व क्रांति कर विश्व में कीर्तिमान स्थापित हुए है। आज हमें इस सत्य को  अपनाना होगा कि जनसंचार माध्यम अर्थात मीडिया पूरी दुनिया पर हावी होकर जनमानस के दिलों पर राज कर रहा है।जनसंचार माध्यमों के अंतर्गत सूचना और प्रौद्योगिकी के आविष्कारों ने मानव-जीवन को प्रभावित किया है।  सूचना और प्रोद्योगिकी का गहरा असर वैश्वीकरण की प्रक्रिया पर हुआ है। सुचना और प्रोद्योगिकी के कारण जनसंचार के विविध विकल्प आज बाजार में उपलब्ध है।  जनसंचार माध्यमों के हिंदी के प्रयोग के कारण हिंदी अब और भी अधिक समृद्ध हो गई है।इसे और अधिक समृद्ध बनाने का प्रयास जनसंचार माध्यमों द्वारा हो रहा है।


                       

-प्रा. बालाजी गोविंदराव कारामुंगीकर
  यशवंत ज्यु. कॉलेज, अहमदपूर
                              जि. लातूर – 413515
                              मो.नं. 9823112907




सन्दर्भ :

1.   आधुनिक जनसंचार माध्यमों में हिंदी – डॉ. जय प्रकाश पाण्डेय, पृ. 59
2.   इन्द्रप्रस्थ भारती : राजभाषा हिंन्दी: स्वर्ण जयंती अंक, अक्टूबर-दिसम्बर, 1999, पृ. 102
3.   जनसंचार माध्यमों में हिंदी – चन्द्रकुमार, पृ. 32


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