जब आदिवासी गाता है

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जब आदिवासी गाता है परिवेश की चिंता करती कविताएं जब आदिवासी गाता है जमुना की यह पुस्तक मुझे मामूली से आग्रह पर प्राप्त हुई , पढ़कर मन प्रसन्न हो गया ।यद्यपि आपकी ये प्रकाशित कविताओं का पहला संग्रह है फिर भी पाठकों के लिए यह आपका तोहफा है कि वे आपकी सारी कविताओं का आनंद ले सकें ।

जब आदिवासी गाता है
परिवेश की चिंता करती कविताएं 

                  
जब आदिवासी गाता है जमुना की यह पुस्तक मुझे मामूली से आग्रह पर प्राप्त हुई , पढ़कर मन प्रसन्न हो गया ।यद्यपि आपकी ये प्रकाशित कविताओं का पहला संग्रह है फिर भी  पाठकों के लिए यह आपका तोहफा है कि वे आपकी सारी कविताओं का आनंद ले सकें ।आपकी कविताओं में पहाड़ों के रंग – भेष और वहाँ की सभ्यता-संस्कृति की विशेष झलक मिलती है ।यह वहाँ के समाज और समय को पूरी समग्रता से शब्दांकित करती हैं , आपकी भाषा में एक गज़ब का पहाड़ीपन है लेकिन वह कविताओं में  नदियों जैसी चंचलता प्रकट करती है ।
जब यह किताब की पंक्तियां मैं पढ़ रहा था तब यहाँ फेथई तूफान की आमद से सर्दी में अंगीठी तापते आपकी ये पंक्तियां पहाड़ों की सर्दियों तक ले गईं – 
जब आदिवासी गाता है
जब आदिवासी गाता है
बाँस के बने घर मे कुल14 अंगीठियाँ , जब ये सारी जल उठती हैं , तब रोशनियाँ घर के छिद्रों से तैरकर  बाहर निकलती और बाहर खूब उजाला फैलता ।  पूरा परिवार इसके इर्द – गिर्द बैठकर दिन भर की किस्से – कहानियाँ सुनाया करते.....।
इस अंगीठी की गर्मी मुझे यहां तक महसूस हो रही है , टूटते परिवार के बीच अब ऐसे संवाद एक फैशन बन कर रह गए हैं , शुक्र है कि कविताओं में वह जिंदा है , पहाडों में साँसे ले रहा है ।
यथार्थ की समझ के साथ भाषा आपके शब्दों को पुष्ट कर रही है , एक विचारमय परिदृश्य पाठक के मन मष्तिष्क में खलबली मचा देता है । आपको अपने परिवेश की चिंता है, एक क्रोध है नव विस्तार से जो इन पंक्तियों में स्पष्ट दिखता है – 
............कितनी रोचक और मनोरंजक है / किसानों से गुंडागर्दी की रूपांतरण की यह कथा ।
.......जब आदिवासी गाता है, तो नदी गाती है, पेड़ गाता है, पक्षी गाता है, ........., प्रकृति का कोना – कोना गाती है।
आपकी कविताओं में त्रिशि लोककथाओं से जुड़ाव है , हर परिकथा किसी भयानक दानव के बिना अधूरी होती है ठीक उसी प्रकार यहाँ बाकोक आता है ।वहाँ के स्वातंत्र्य सैनिकों को आपकी पंक्तियाँ स्मरण करती हैं – मोजी रीबा , मातमुर जामोह और तानी समुदाय के मिथुन को मानने का भी उल्लेख करती हैं ।
देहात की याद कविता में ये पंक्तियां लाजवाब हैं – 
................तुम्हारी देहाती बोली हमें समझ मे नहीं आती / अंग्रेजी तो आएगी नहीं तुझे / हिंदी में बात करो , तब से तीनों में बातचीत बंद ।
फुर्सत कविता में ऑफिस से सप्ताह भर की छुट्टी के बदले गाँव की छुट्टी की तुलना अच्छी बन पड़ी है । पहाड़ो के बीच प्रेम का रंग आना ही था पँक्तियाँ पूछ रही हैं – -----  शब्दों का वजन तो होता होगा / प्रेम का रंग सुर्ख क्यों होता है ?
पंक्तियां पूछ रही हैं- क्या हुआ चिड़िया का , पहाड़ का , ----- जंगल आदमी या भारतीय आर्मी , दोनों में से किसकी गोली का स्वाद पसंद है, ---- अमन बहाली का , घर लौटने का ।
संवेदनाओं के शब्द  को आपकी पंक्तियां कूची से रंग भी भर रही हैं , इसे पढ़ते हुए पूरा दृश्य उभर आता है – पेड़ , पहाड़ , चिड़िया , धुंध , आबादी , चाँद , रिवाज , सभ्यता , और इन सबके बीच महक उठता है गाँव की एक साँझ । पहाड़ के अंतर्मन की पुकार कविता के शब्दों में लौटते हुए चीत्कार रही है- औद्योगिक विकास के खिलाफ , वाकई प्रकृति को बाज़ारवाद का वैश्विक चूहा कुतर रहा है और पूंजीवाद इसका सबसे बड़ा औजार है ।वे और हम कविता में – 
.....सभ्यता के लिए आदिवासियों को , बदलते है वे , अपने फायदे के लिए .....। 
आदमी जंगल काटकर शहर बनाता है कांक्रीट का , फिर जब उसे हरापन याद आता है तब वह पेड़ लगाने का नाटक करता है , फोटो खिंचवाता है यह एक कड़वी हकीकत है, वे ये भी कहते पाए जाते हैं – इससे तो हमारा गाँव ही अच्छा था , इस तरह जंगल के श्मशान पर शहर के विकास की बातें खारिज हो जाती हैं ।  आज के सोशल मीडिया से आपकी कविता डर बच नहीं पाई , लिख पड़ी है – 
.....सोशल मीडिया की होड़ा- होड़ी मची है-------लोग अब  वीभत्स रस में रसास्वादन करने लगे हैं ---- ।

पहाड़ों को मुस्कुराने दें, ऐसी संवेदनशील मन की कल्पनाशीलता का यह संग्रह एक ईमानदार प्रयास है । अपने आगोश में समा लेती हैं आपकी कविताएं , पहाड़ों से उतरने नहीं देती , चिंता ये है कि ये दुनिया भी कहीं उसके चाहने वालों को उसकी तरह बंजर ना बना दे ।। अच्छी कविताओं का संग्रह पहाड़ों से निकल आयी है, पाठकों को अवश्य ही यह पसंद आएगी ।
इस संग्रह के लिए अनंत शुभकामनाएं और लिखते रहें ।

जब आदिवासी गाता है – कविता संग्रह 
कवि – जमुना बीनी तादर , अरुणाचल प्रदेश 
परिंदे प्रकाशन – दिल्ली 2018 मूल्य - 230रु. पृ. – 112 




-रमेश कुमार सोनी 
जे पी रोड बसना , जिला महासमुंद , छत्तीसगढ़ 
पिन 493554 , मोबाइल – 7049355476 

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