गौरा गाय महादेवी वर्मा

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गौरा गाय महादेवी वर्मा Gaura by Mahadevi Verma महादेवी वर्मा की कहानी गौरा का सार mahadevi verma story gaura summary in hindi gaura by mahadevi verma Summary of story gaura written by mahadevi verma in hindi महादेवी द्वारा रचित गौरा कहानी गौरा शीर्षक रेखाचित्र का सारांश लिखिए गौरा गाय कहानी महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कहानी है

गौरा गाय महादेवी वर्मा
Gaura by Mahadevi Verma


गौरा गाय महादेवी वर्मा महादेवी वर्मा की कहानी गौरा का सार mahadevi verma story gaura summary in hindi gaura by mahadevi verma Summary of story gaura written by mahadevi verma in hindi महादेवी द्वारा रचित गौरा कहानी गौरा शीर्षक रेखाचित्र का सारांश लिखिए - गौरा गाय कहानी महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कहानी है .गौरा थी महादेवी वर्मा की छोटी बहन के घर में पली बछिया .स्नेह प्यार पाकर वह खूब सुन्दर खिल गयी थी .बहन के कहने पर महादेवी वर्मा ने गौरा को पाल लिया .गौरा की देह इतनी उजली थी की लगता था किसी ने उसके रोमों पर अभ्रक का चूर्ण मल दिया हो ,जिससे विशेष चमक झिलमिलाती थी .उसकी आखें गहरी काली और खूब चमकीली थी .गाय जब महादेवी वर्मा के घर आई ,तो उनके परिचितों और परिचायकों का ताँता लग गया .गाय को लाल सफ़ेद गुलाबों की माला पहनाई गयी .केसर - रोली का टीका लगाया गया .घी का चौमुख दिया जलाकर उसकी आरती उतारी गयी और उसे दही पेडा खिलाया गया .उसका नाम गौर रखा गया .गौरा महादेवी वर्मा के बंगले में बहुत प्रसन्न जान पड़ती थी .गौरा सचमुच प्रियदर्शन थी .उसकी काली बिल्लौरी आँखों का सौन्दर्य देखने वाली की दृष्टि को बाँध लेता था .उन आँखों में मनुष्य के प्रति विश्वास झलकता था .गौरा की चाल अलसाई हुई ,मस्त भरी धीमी थी . 
गौरा गाय
गौरा गाय 

थोड़े दिनों में वह घर के पशु पक्षियों से हिल मिल गयी ,बिल्ली उसके पेट के नीचे या पैरों के बीच खेलती थी .पक्षी उसकी पीठ और माथे पर बैठते थे .गौरा उनके संपर्क सुख में खो जाती थी .वह हम सबके पैरों की आहट से पहचानने लगी थी .चाय नाश्ता और भोजन के समय की उसे इतनी पहचान हो गयी थी की वह थोड़ी देर कुछ पाने की प्रतीक्षा के बाद जोर से रंभाने लगती थी .हमसे उसका लगाव मानवीय स्नेह के निकट पहुंचता था .वह अपनी आँखों से ही उल्लास ,दुःख ,उदासीनता और व्याकुलता की भावनाएं व्यक्त कर देती थी .एक वर्ष बाद गौरा माँ बनी .पुष्ट ,सुन्दर बछड़े को उसने जन्म दिया .बछड़ा गेरू के पुतले सा लाल रंग का था .उसके माथे पर पान के आकार का सफ़ेद तिलक था .बछड़े का नाम लालमणि रखा गया .गौरा प्रातः सायं दस लीटर के लगभग दूध देती थी .दूध घर के लोगों को ही नहीं ,पास - पड़ोस को भी और घर के पशु पक्षियों को भी मिलता था .सब तृप्त हो रहे थे .महादेवी वर्मा ने पहले जिससे दूध लेती थी ,उसी ग्वाले को दूध दूहने के लिए रख लिया .दो - तीन महीने बाद गाय भयंकर रूप से बीमार हो गयी .पशु - चिकित्सकों ने बताया कि इसे गुड में सुई खिला दी गयी है .जब सुई उसके ह्रदय के पार हो जायेगी ,तो यह मर जायेगी .ग्वाले का कहीं पता नहीं था .मृत्यु से घोर संघर्ष करती हुई ,हर प्रकार के उपचार से ठीक न होने पर एक दिन गौरा चल बसी .गौरा को जब गंगा में प्रवाहित करने के लिए लाया लगा ,तो महादेवी के मन में मानों करुणा का समुद्र उमड़ आया .उसके मुँह से उदगार निकले - "आह मेरा गौ पालक देश . "

महादेवी वर्मा की कहानी गौरा गाय का कथानक - 

गौरा गाय ,महादेवी वर्मा की एक महत्वपूर्ण कहानी है .इसका कथानक एक ऐसी गाय से सम्बद्ध है जो बछिया के रूप में लेखिका को उसकी छोटी बहन श्यामा से प्राप्त हुई है .एक वर्ष बाद गौरा एक सुन्दर बछड़े की माँ बनती है .वत्स लाल रंग और स्वेत रंग की थी .जब कभी माँ और वत्स एक स्थान पर होते तो ऐसा प्रतीत होता था कि हिमराशि और ज्वलित अंगार एक साथ शोभायाँ हैं .लेखिका मानती हैं कि गौरा उसके घर दूधो नहावों का वरदान लेकर आई थी .गौरा का दूध दूहने की उसके समक्ष एक समस्या थी .बाध्य होकर उसने पहले वाले ग्वाले को पुनः दूहने के लिए अपने घर पर नियुक्त किया .गाय आ जाने से ग्वाले के व्यवसाय में बाधा उत्पन्न हुई .उसने अनुभव किया कि जब तक गौरा यहाँ रहेगी ,उसका दूध इस घर में नहीं बिक पायेगा .ग्वाले के मन में पाप भावना समा गयी कि गौरा को अपने मार्ग से हटाने के लिए कुछ न कुछ करना होगा .ऐसा सोचकर उसने गुड की बटी में सुई डालकर गाय को खिला दिया .इसके उपरान्त दिन प्रतिदिन गौरा दुर्बल और क्षीणकाय होती गयी .अत्यधिक प्रयास के बाद भी गौरा को बचाया नहीं जा सका और वह अपने बछड़े को छोड़कर सदैव के लिए चल बसी . 

महादेवी वर्मा की कहानी गौरा गाय का उद्देश्य /सन्देश - 

भारत के लोग दावा करते हैं कि वे गाय को पालना अपना धर्म समझते हैं .गाय उनके लिए माता के समान है .उसी गाय को अपने स्वार्थ के कारण मारने वाले व्यक्ति भी इसी देश के होते हैं .गौरा को अपने स्वार्थ में बाधक समझकर एक ग्वाले ने गुड में सुई मिलाकर खिला दी थी .वह कमजोर और सुस्त रहने लगी .अब गौरा का मृत्यु से संघर्ष शुरू हो गया .गौरा सुई की चुभन को अत्यंत शांतिपूर्वक सह रही थी .कभी कभी उसकी सुन्दर पर उदास आँखों के कोनों में पानी की दो बूंदे झलकने लगती थी .वह लेखिका के कन्धों पर अपना मुख रख देती थी और अपनी खुरदुरी जीब से उसकी गर्दन चाटने लगती थी .गौरा की सुन्दर चमकीली आँखें निष्प्रभ हो चली .उसका अंत समय निकट आ गया .गौरा ने अंतिम बार अपना मुख लेखिका के कंधे पर रखा वैसे ही पत्थर जैसा भारी हो गया और बाँह पर से सरक कर धरती पर आ गयी .गाय की मृत्यु हो गयी .ग्वाले के इस घृणित कार्य को जानकर ग्लानी का उभरना स्वाभाविक ही है .लेखिका का ह्रदय वेदना से रो उठा .


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