दुख और सृजनात्मकता

SHARE:

दुख और सृजनात्मकता फेसबुक से लेकर साहित्य तक निजी दुख को व्यक्त करने की बाढ़ आई हुई है और उसके पक्षधर भी हैं,सवाल यह यह है क्या करें ,सामान्य परंपरागत व्यक्ति दुख में भगवान का भजन करता है,पूजा करता है,वह भगवान के सामने दुखों को मंत्र-पूजा आदि के जरिए विरेचन करता है इससे उसके मन को शांति मिलती है,साहित्यकार- दुख और सृजनात्मकता दुख और सृजनात्मकता कलाकार सृजन करता है,इससे उसे बल मिलता है।

दुख और सृजनात्मकता


फेसबुक से लेकर साहित्य तक निजी दुख को व्यक्त करने की बाढ़ आई हुई है और उसके पक्षधर भी हैं,सवाल यह यह है क्या करें ,सामान्य परंपरागत व्यक्ति दुख में भगवान का भजन करता है,पूजा करता है,वह भगवान के सामने दुखों को मंत्र-पूजा आदि के जरिए विरेचन करता है इससे उसके मन को शांति मिलती है,साहित्यकार-
दुख और सृजनात्मकता
दुख और सृजनात्मकता
कलाकार सृजन करता है,इससे उसे बल मिलता है। दुख से दुख दूर नहीं होता ,दुख तो सृजन से दूर होता है,जैसे कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं होती,कीचड़ साफ करने के लिए स्वच्छ पानी की जरुरत होती है। दुख हो तो गान गाओ,गान लिखो,रोओ मत।

दुख व्यक्त करने से दुख का विरेचन नहीं होता,दुख-त्रासदी-कष्ट-मान-अपमान आदि को व्यक्त करने का तरीका है साहित्य-कला सृजन,इसीलिए कवि ने कहा था "आह से निकला होगा गान ",इसी तरह महाकवि ने क्रौंच वध देखकर महाकाव्य लिखा ,क्रौंच या अपने दुख नहीं लिखे।वेद-उपनिषद-पुराण आदि को पढ़ते समय हम तरह -तरह की व्याख्याओं और भाष्यों की मदद लेते हैं और कहते हैं फलां ने यह कहा ,लेकिन मूल मर्म नहीं पकड़ पाते ,ये किताबें पुराने ज्ञान का भंडार हैं,ये उत्पीड़न ,भेदभाव और धर्म के प्रचार का औजार नहीं है,यह तो कालान्तर में विभिन्न मतावलम्बियों ने किया है। 

मसलन्, उपनिषद का अर्थ है गूढ़ स्थान में प्रवेश करना। यह काम तर्क और विद्या बल के जरिए ही संभव है,आस्था या विश्वास या धर्म के जरिए संभव नहीं है,धार्मिक प्रचार के जरिए यह संभव नहीं है। गूढ़ स्थान में प्रवेश करने लिए विद्या ज्ञान जरुरी है। केवल तर्क बल से चीजें समझ में नहीं आतीं। इसके लिए जरुरी है कि आपके पास उपनिषद के अर्थ को खोलने की चाभी हो।

धर्म को हमने धार्मिकता से जोड़कर विभिन्न किस्म के प्रपंचों का पुंज बना दिया है, लेकिन यह तो धर्म नहीं है,इसे धार्मिकता कहते हैं। महर्षि अरविंद ने सही कहा था, उन्होंने कहा था -धर्म यानी गभीरतम ज्ञान ।जो लोग पुराने स्तोत्र-मंत्र आदि को जादू टोना समझते हैं, मैं उनसे असहमत हूँ, यह हमारे पुराने लेखकों का साहित्य सृजन है, हम मंत्र इसलिए नहीं बोलते कि हम धार्मिक हैं,बल्कि हम इसलिए बोलते हैं क्योंकि वह पुराना सर्जनात्मक साहित्य है।


- जगदीश्वर चतुर्वेदी

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका