आनंद भगवान गौतम बुद्ध

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आनंद भगवान गौतम बुद्ध एक बार भगवान गौतम बुद्ध ने भिक्षु संघ की बैठक बुलाई . मौद्गल्यायन आदि भिक्षुओं ने सेवा करने के लिए उत्सुकता प्रकट की .तथागत ने इसे स्पष्ट शब्दों में अस्वीकार करते हुए कहा - आप लोग भिक्षु धर्म का निर्वाह करें .संघ और तथागत की वही सबसे बड़ी सेवा होगी

आनंद भगवान गौतम बुद्ध


एक बार भगवान गौतम बुद्ध ने भिक्षु संघ की बैठक बुलाई .उन्होंने सभी से कहा - "मैं अब लगभग छप्पन वर्ष की आयु प्राप्त कर चुका हूँ .मुझे अब एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो मेरी सेवा कर सके .संघ मुझे अनुमति प्रदान करे .

यह सुनकर मौद्गल्यायन  आदि भिक्षुओं ने सेवा करने के लिए उत्सुकता प्रकट की .तथागत ने इसे स्पष्ट शब्दों में
भगवान गौतम बुद्ध
भगवान गौतम बुद्ध
अस्वीकार करते हुए कहा - आप लोग भिक्षु धर्म का निर्वाह करें .संघ और तथागत की वही सबसे बड़ी सेवा होगी .
भगवान गौतम बुद्ध की यह राय सुनकर संघ के कई बुजूर्ग सदस्यों ने भिक्षु आनंद को प्रोत्साहित करते हुए कहा - आनंद ,तुम्हारे लिए यह अच्छा अवसर है .तुम तथागत से सेवा करने का अवसर मांगों .

मुस्कराकर आनंद ने कहा - "ऐसा कहकर मैं अन्य बंधुओं का शुभ अवसर छीनना नहीं चाहता .
"लेकिन आनंद ,तथागत की सेवा करने का अवसर तुम्हे त्यागना नहीं चाहिए .बल्कि दूसरे को मिल रहा हो ,तो उसे झपट लेना चाहिए ."एक ने राय प्रकट की .
"मैं कोई चील कौवा तो नहीं हूँ नहीं ,जो अवसर पाकर झपट्टा मारूं." आनंद ने कहा .
"सोच लो आनंद .तथागत की सेवा का यह अवसर फिर इतनी सहजता से मिले भी या नहीं ,क्या पता ?" एक भिक्षु ने अपनी राय जाहिर की .

बहुत ही विनयशीलता से आनंद ने कहा - "आप मेरे शुभचिंतक हैं .इसे मैं बड़ी कृपा मानता हूँ .मेरा सोचना यह है कि सेवा तो सहज प्राप्त होगी .तथागत मुझे भी संघ कार्य में लीन देख रहे हैं .यह यदि उचित समझकर मुझे स्वयं का आदेश प्रदान करेंगे ,तो मेरे उत्साह की सीमा नहीं रहेगी .

संघ के सदस्यों की ये बातें तथागत तक भी पहुंची .वह बोले - भिक्षुओं आनंद को प्रोत्साहित करने की जरा भी आवश्यकता नहीं हैं .वह स्वयं मेरी सेवा करेगा .मैं उसके मन की बात जानता हूँ .वही मेरी सेवा में रहकर मेरा परिचारक रहेगा .

भगवान गौतम बुद्ध की यह बात सुनकर आनंद प्रसन्न हो उठे .बोले - मैं आभारी हूँ कि आपने मुझे परिचारक बनने के योग्य समझा .किन्तु मेरी चार इच्छाएं और चार याचनाएँ हैं .कृपया आप उन्हें स्वीकार करें .

"तुम्हारी इच्छाएं और याचनाएं जो भी हों ,मैं सुन तो लूं आनंद .फिर कुछ कहूँगा .तथागत ने कहा .

आनंद ने कहा - मेरी ये चार इच्छाएं है - आप अपने पाय हुए चीवर ,पात्र आदि मुझे उपहार स्वरुप नहीं दें .भिक्षा में हिस्सा भी नहीं दें .एक गंध कुटी में निवास न दें और अपने निमंत्रण में मुझे लेकर भी नहीं जाएँ .

तुम्हारी इच्छाओं का पूरा सम्मान है आनंद .एक जिज्ञासा जरुर है कि इनमें तुम क्या दोष देख रहे हो ? मुझे स्पष्ट रूप से बतलाओं .तथागत ने तभी प्रश्न किया .

"भगवन यदि ये चारों चीज़ें जारी रखेंगे तो मेरी सहयोगी सोचेंगे ,आनंद स्वार्थ वश कुछ पाने की लालसा में सेवा कर रहा है ."
"ठीक है .मैं तुम्हारी चारों इच्छाओं की पूरी करूँगा .- तथागत ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाकर कहा .
"और भगवन ,मेरी चार याचनाएं भी हैं .इन्हें भी आप सुनकर उचित आदेश प्रदान करें .- आनंद ने विनय की .

- बताओ वे क्या क्या है ?

- भगवान ! वे चार याचनाएं इस तरह हैं - आप मेरे निमंत्रण में अवश्य ही आयें .दर्शनार्थ आने वाले व्यक्ति को मैं उचित अवसर पर जब चाहूँ ,तभी आपके दर्शन करवा सकूँ .मुझे किस भी समय भी आपके पास आने की रोक न हों .कहीं और जो आप प्रवचन दें ,वे भी आप आप आकर सुना दिया करें .मैं आपकी इस कृपा के लिए ऋणी रहूँगा . "- आनंद ने कहा .

"वत्स आनंद ,तुम्हारी इच्छाओं और याचनाओं को स्वीकार करते हुए मैं बहुत आनंदित हूँ .कहकर तथागत ने आनंद को चरणों में नत देखा .सिर पर आशीष भरा हाथ रखा . 

आनंद भगवन बुद्ध के परिचारक हो गए . 


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