टोड्स माउथ

SHARE:

प्रबंधन के दरबानों की निगरानी में सारे कामगार बड़े दुख-तकलीफ़ में रहते थे । ठिठुरने वाली ठंड में उन्हें महीनों तक गरम शोरबा भी नसीब नहीं होता था । वे उतना ही उपेक्षित जीवन जीते थे टोड्स माउथ टोड्स माउथ जितनी उनकी भेड़ें । शाम को हमेशा कोई-न-कोई गिटार उठा लेता और हवा में भावुक गीत तैरने लगते ।

टोड्स माउथ


दक्षिण में यह समय बेहद कठिन था । यहाँ इस देश के दक्षिण की बात नहीं हो रही बल्कि यह विश्व के दक्षिणी हिस्से की बात है , जहाँ मौसम का चक्र उलट जाता है और बड़े दिन का त्योहार सभ्य राष्ट्रों की तरह सर्दियों में नहीं आता , बल्कि असभ्य और जंगली जगहों की तरह साल के बीच में आता है । यहाँ का कुछ भाग पथरीला और बर्फ़ीला है ; दूसरी ओर अनंत तक फैले मैदान हैं जो टिएरा डेल फ़्यूगो की ओर द्वीपों की माला में तब्दील हो जाते हैं । यहाँ बर्फ से ढँकी चोटियाँ दूर स्थित क्षितिज को भी ढँक लेती हैं और चारो ओर जैसे समय के शुरुआत से मौजूद एक सघन चुप्पी होती है । इस निविड़ एकांत को बीच-बीच में समुद्र की ओर खिसकते , दरकते हिमखंड ही तोड़ते हैं । यह एक कठोर जगह है जहाँ तगड़े, खुरदरे लोग रहते हैं ।
चूँकि सदी की शुरुआत में यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे अंग्रेज़ लोग वापस ले जा सकें, इसलिए उन्होंने यहाँ भेड़ें पालने की आधिकारिक अनुमति ले ली । कुछ ही वर्षों में पशु संख्या में इतने अधिक हो गए कि दूर से वे ज़मीन पर उमड़-घुमड़ रहे बादलों जैसे लगते थे । वे सारी घास चर गए और यहाँ की प्राचीन संस्कृतियों के सभी पूजा-स्थलों को उन्होंने रौंद डाला । यही वह जगह थी जहाँ हर्मेलिंडा अपने अजीबोग़रीब खेल-तमाशों के साथ रहती थी ।
उस अनुपजाऊ मैदान में ' भेड़पालक लिमिटेड ' का बड़ा मुख्यालय किसी भूली-बिसरी इमारत-सा उगा हुआ था । वह इमारत चारो ओर एक बेतुके लाॅन से घिरी हुई थी , जिसे संचालक की पत्नी क़ुदरत की मार से बचाने में लगी रहती थी । वह महिला ब्रितानी साम्राज्य के दूर-दराज़ के इलाक़े में जीवन बरस करने के कटु सत्य से समझौता नहीं कर पाई थी और उसने कभी-कभार भोज पर जाने के मौक़ों पर अपने पति के साथ सज-धज कर जाना जारी रखा । उसका पति पुरातन परम्पराओं के गर्भ में दफ़्न एक निरुत्साही सज्जन था ।स्पेन की ज़बान बोलने वाले स्थानीय चरवाहे शिविर
के बैरकों में रहते थे । कँटीली झाड़ियाँ और जंगली गुलाबों की बाड़ उन्हें उनके अंग्रेज़
मालिकों से अलग रखती थी । जंगली गुलाबों की बाड़ लगाना घास के विशाल मैदानों की अनंतता को सीमित करने का एक निष्फल प्रयास था ताकि विदेशियों को वहाँ
इंग्लैंड के कोमल देहात का भ्रम हो ।
प्रबंधन के दरबानों की निगरानी में सारे कामगार बड़े दुख-तकलीफ़ में रहते थे ।
ठिठुरने वाली ठंड में उन्हें महीनों तक गरम शोरबा भी नसीब नहीं होता था । वे उतना ही उपेक्षित जीवन जीते थे
टोड्स माउथ
टोड्स माउथ
जितनी उनकी भेड़ें । शाम को हमेशा कोई-न-कोई गिटार उठा लेता और हवा में भावुक गीत तैरने लगते । प्यार के अभाव में वे इतने दरिद्र हो गए थे कि वे अपनी भेड़ों , यहाँ तक कि तट पर पकड़ ली गई सील मछलियों को भी गले लगा कर उनके साथ सो जाते थे , हालाँकि रसोइया उनके खाने में शोरा छिड़कता था ताकि उनका जिस्मानी उत्ताप और उनके स्मृति की आग ठंडी हो जाए । सील मछलियों के बड़े स्तन उन्हें दूध पिलाने वाली माँ की याद दिलाते और यदि वे जीवित , गर्म और धड़कती सील मछली की खाल उतार लेते तो प्रेम से वंचित व्यक्ति अपनी आँखें बंद करके ऐसी कल्पना कर सकता था कि उसने किसी जलपरी को आगोश में ले लिया था । इतनी अड़चनों के बावजूद कामगार अपने मालिकों से ज़्यादा मज़े करते थे , और इसका पूरा श्रेय हर्मेलिंडा के अवैध खेल-तमाशों को जाता है ।
हर्मेलिंडा उस पूरे इलाक़े में एकमात्र युवती थी , यदि हम उस अंग्रेज़ महिला को छोड़ दें जो ख़रगोशों का शिकार करने के लिए अपनी बंदूक़ उठाए गुलाबों के बाड़ को पार करके उस इलाक़े में घूमती रहती थी । ऐसे में भी पुरुषों को उस अंग्रेज़ महिला के टोपी से ढँके सिर की एक झलक भर दिखती थी और धूल का ग़ुबार और ख़रगोशों का पीछा कर रहे भौंकते हुए शिकारी कुत्ते ही नज़र आते थे । दूसरी ओर हर्मेलिंडा एक ऐसी युवती थी जिसे वे जी भर कर निहार सकते थे -- एक ऐसी युवती जिसकी धमनियों में यौवन का गर्म ख़ून बहता था और जो मौज-मस्ती में रुचि लेती थी । वह कामगारों को राहत देने का काम करती थी, साथ ही चार पैसे भी कमा लेती । उसे आम तौर पर सभी पुरुष अच्छे लगते थे जबकि कुछ पुरुषों में उसकी विशेष रुचि थी । उन कामगारों और चरवाहों के बीच उसका दर्जा किसी महारानी जैसा था । उसे उनके काम और चाहत की गंध से प्यार था । उनकी खुरदरी आवाज़ , बढ़ी हुई दाढ़ी वाले उनके गाल , उनके झगड़ालू किंतु निष्कपट स्वभाव और उसके हाथों की आज्ञा मानती उनकी गठी हुई देह
-- उसे इन सबसे प्यार था । वह अपने ग्राहकों की भ्रामक शक्ति और नज़ाकत से वाक़िफ़ थी किंतु उसने कभी भी इन कमज़ोरियों का फ़ायदा नहीं उठाया था ; इसके ठीक उलट वह इन दोनों ही चीज़ों से प्रभावित थी । उसके कामोत्तेजक स्वभाव को मातृ-सुलभ कोमलता के लेश नरम बनाते थे । अक्सर रात के समय वह किसी ज़रूरतमंद कामगार की फटी क़मीज़ सिल रही होती या किसी बीमार चरवाहे के लिए खाना बना रही होती या दूर कहीं रहती किसी मज़दूर की प्रेमिका के लिए प्रेम-पत्र लिख रही होती ।
चूने वाली टीन की छत के नीचे हर्मेलिंडा ने एक ऊन भरा गद्दा बिछा रखा था जिसके सहारे वह चार पैसे कमा लेती थी । जब तेज हवा बहती तो वह टीन की छत वीणा और शहनाई जैसे वाद्य-यंत्रों की मिली-जुली आवाज़ निकालते हुए बजने लगती ।
हर्मेलिंडा मांसल देह वाली युवती थी जिसकी त्वचा बेदाग़ थी ; वह दिल खोल कर हँसती थी और उसमें ग़ज़ब का धैर्य था । कोई भेड़ या खाल उतार ली गई सील मछली
कामगारों को उतना मज़ा नहीं दे सकती थी । क्षणिक आलिंगन में भी वह एक उत्साही
और ज़िंदादिल मित्र की तरह पेश आती थी । किसी घोड़े जैसी उसकी गठी हुई जाँघों और सुडौल उरोजों की ख़बर छह सौ किलोमीटर में फैले उस पूरे जंगली प्रांत में चर्चित हो चुकी थी , और दूर-दूर से प्रेमी मीलों की यात्रा करके उसके साथ समय बिताने के लिए यहाँ आते थे । शुक्रवार के दिन दूर-दूर से घुड़सवार इतनी व्यग्रता से वहाँ पहुँचते कि उनके घोड़ों के मुँह से झाग निकल रहा होता । अंग्रेज़ मालिकों ने वहाँ शराब पीने पर प्रतिबंध लगा रखा था लेकिन हर्मेलिंडा ने अवैध रूप से दारू बनाने का तरीक़ा ढूँढ़ लिया था । यह दारू उसके मेहमानों के उत्साह और जोश को तो बढ़ा देती थी किंतु उनके जिगर का बेड़ा गर्क कर देती थी । इसी की मदद से रात में मनोरंजन के समय लालटेनें भी जलाई जाती थीं । पीने-पिलाने के तीसरे दौर के बाद शर्तें लगनी शुरू हो जाती थीं , जब पुरुषों के लिए अपना ध्यान केंद्रित कर पाना या ठीक से कुछ भी सोच पाना असम्भव हो जाता था ।
हर्मेलिंडा ने बिना किसी को धोखा दिए मुनाफ़ा कमाने की एक पक्की योजना बना रखी थी । पत्ते और पासे के खेलों के अलावा सभी पुरुष कई अन्य खेलों पर भी अपने हाथ आज़मा सकते थे । इन खेलों में जीतने वालों को इनाम के तौर पर स्वयं हर्मेलिंडा का साथ मिलता था । हार जाने वाले पुरुष अपने रुपए-पैसे हर्मेलिंडा को सौंप देते । हालाँकि विजयी पुरुषों को भी यही करना पड़ता था किंतु उन्हें हर्मेलिंडा के साथ थोड़ी देर के लिए अपना मन बहलाने का अधिकार मिल जाता था ।समय की पाबंदी हर्मेलिंडा की अनिच्छा की वजह से नहीं थी । दरअसल वह अपने काम-काज में इतना व्यस्त थी कि उसके लिए हर पुरुष को अलग से ज़्यादा समय दे पाना सम्भव नहीं था ।
' अंधा मुर्ग़ा ' नामक खेल में खिलाड़ियों को अपनी पतलूनों उतार देनी होती थीं ,
हालाँकि वे अपने जैकेट , टोपियाँ और भेड़ की खाल से बने जूते पहने रख सकते थे क्योंकि अंटार्कटिक की कँपा देने वाली ठंडी हवा से बचना ज़रूरी था । हर्मेलिंडा सभी पुरुषों की आँखों पर पट्टियाँ बाँध देती और फिर पकड़म-पकड़ाई का खेल शुरू हो जाता । कभी-कभी इस पकड़-धकड़ से उपजा शोर इस हद तक बढ़ जाता कि वह रात की नीरवता को चीरता हुआ शांत बैठे उस अंग्रेज़ दंपत्ति के कानों में भी जा पड़ता , जो सोने से पहले श्रीलंका से आई अपनी अंतिम चाय पी रहे होते । हालाँकि दोनों पति-पत्नी कामग़ारों का यह कामुक कोलाहल सुनने के बाद भी ऐसा दिखाते जैसे वह शोर मैदानी इलाक़े में चलने वाली तेज़ हवा की साँय-साँय मात्र हो । जो पहला पुरुष आँखों पर पट्टी बँधे होने के बावजूद हर्मेलिंडा को पकड़ लेता , वह ख़ुद को भाग्यवान समझता और उसे अपने आग़ोश में लेकर किसी विजयी मुर्ग़े की तरह कुकड़ू-कूँ करने लगता ।
झूले वाला खेल भी कामगारों के बीच बेहद लोकप्रिय था । हर्मेलिंडा रस्सियों से छत से लटके एक तख़्ते पर बैठ जाती । पुरुषों की भूखी निगाहों के बीच हँसती हुई वह अपनी टाँगों को इस क़दर फैला लेती कि वहाँ मौजूद सभी लोगों को यह पता लग जाता कि उसने अपने पीले घाघरे के नीचे कुछ नहीं पहन रखा । सभी खिलाड़ी एक पंक्ति बना लेते । उन्हें हर्मेलिंडा को हासिल करने का केवल एक मौक़ा मिलता । उनमें से जो भी सफल होता वह स्वयं को उस सुंदरी की जाँघों के बीच दबा हुआ पाता । झूले झूलते हुए ही हर्मेलिंडा उसे अपने घाघरे के घेरों के बीच लेकर हवा में उठा लेती । लेकिन इस आनंद का मज़ा कुछ ही पुरुष ले पाते ; अधिकांश खिलाड़ी अपने साथियों की हुल्लड़बाज़ी के बीच हार कर फ़र्श पर लुढ़क जाते ।
' मेढक का मुँह ' नाम के खेल में तो कोई भी आदमी अपने पूरे महीने की तनख़्वाह केवल पंद्रह मिनटों में हार सकता था । हर्मेलिंडा खड़िया से फ़र्श पर एक लकीर खींच देती और चार क़दम दूर एक गोल घेरा बना देती । उस घेरे में वह अपने घुटने दूर फैला कर पीठ के बल लेट जाती । लालटेनों की रोशनी में उसकी टाँगों का रंग सुनहरा लग रहा होता । फिर उसकी देह का नीम-अँधेरा मध्य भाग खिलाड़ियों को किसी खुले फल-सा दिखने लगता । यह किसी प्रसन्न मेढक के मुँह जैसा भी लगता , जबकि कमरे की हवा कामुकता से भारी और गर्म हो जाती । खिलाड़ी खड़िया से खींची गई लकीर के पीछे खड़े हो कर बारी-बारी से अपने-अपने सिक्के लक्ष्य की ओर फेंकते । उन पुरुषों में से कुछ तो अचूक निशानेबाज़ थे जो पूरी रफ़्तार से दौड़ रहे किसी डरे हुए जानवर को अपने सधे हुए हाथों से उसकी दो टाँगों के बीच पत्थर मारकर उसी पल वहीं-का-वहीं रोक सकते थे । लेकिन हर्मेलिंडा को एक छकाने वाला तरीक़ा आता था । वह अपनी देह को बड़ी चालाकी से इधर-उधर सरकाती रहती थी । ठीक अंतिम मौक़े पर उसकी देह ऐसी फिसलती कि सिक्का निशाना चूक जाता । जो सिक्के गोल घेरे के भीतर गिरते वे उसके हो जाते ।
यदि किसी भाग्यवान पुरुष का निशाना स्वर्ग के द्वार पर लग जाता तो उसके हाथ जैसे किसी शहंशाह का ख़ज़ाना लग जाता । विजयी खिलाड़ी पर्दे के पीछे परम आह्लाद की अवस्था में हर्मेलिंडा के साथ दो घंटे बिता सकता था । जिन मुट्ठी भर पुरुषों को यह सौभाग्य मिला था वे बताया करते थे कि हर्मेलिंडा काम-क्रीड़ा के प्राचीन गुप्त राज जानती थी । वह इस प्रक्रिया के दौरान किसी पुरुष को मृत्यु के द्वार तक ले जाकर उसे एक अनुभवी और अक़्लमंद व्यक्ति के रूप में वापस लौटा लाती थी ।
यह सब तब तक वैसे ही चलता रहा जब तक एक दिन पैब्लो नाम का व्यक्ति वहाँ नहीं आ गया । कुछ सिक्कों के एवज़ में केवल कुछ ही लोगों ने परम आह्लाद के उन चंद घंटों का आनंद लिया था , हालाँकि कई अन्य लोगों ने अपना पूरा वेतन लुटाने के बाद जाकर वह सुख भोगा था । हालाँकि तब तक हर्मेलिंडा ने भी अच्छी-ख़ासी रक़म इकट्ठी कर ली थी , किंतु यह काम छोड़ कर साधारण जीवन जीने का विचार उसे कभी नहीं आया । असल में हर्मेलिंडा को अपने काम में बहुत मज़ा आता था और अपने ग्राहकों को आनंद की अनुभूति देने में उसे गर्व महसूस होता था ।
पैब्लो नाम का यह आदमी देखने में पतला-दुबला था । उसकी हड्डियाँ किसी चिड़िया जैसी थीं और उसके हाथ बच्चों जैसे थे । लेकिन उसकी शारीरिक बनावट उसके दृढ़ निश्चय के बिलकुल विपरीत थी । भरे-पूरे अंगों वाली हँसमुख हर्मेलिंडा के सामने वह किसी चिड़चिड़े मुर्ग़े-सा लगता था , किंतु उसका मज़ाक़ उड़ाने वाले उसके कोप का भाजन बन गए । ग़ुस्सा दिलाने पर वह किसी विषैले सर्प-सा फँुफकारने लगता , हालाँकि वहाँ झगड़ा नहीं बढ़ा क्योंकि हर्मेलिंडा ने यह नियम बना रखा था कि उसकी छत के नीचे कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं करेगा ।
जब उसका सम्मान स्थापित हो गया तो पैब्लो भी शांत हो गया । उसके गंभीर चेहरे पर दृढ़ निश्चय का भाव आ गया । वह बहुत कम बोलता था । उसके बोलने से यह पता चलता था कि वह यूरोपीय मूल का था । दरअसल पुलिसवालों को झाँसा दे कर वह स्पेन से निकल भागा था और अब वह ऐंडीज़ पर्वत-श्रृंखला के संकरे दर्रों से हो कर वर्जित सामानों की तस्करी करता था । वह एक बदमिज़ाज , झगड़ालू और एकाकी व्यक्ति के रूप में जाना जाता था जो मौसम, भेड़ों और अंग्रेज़ों की खिल्ली उड़ाया करता था । उसका कोई निश्चित घर नहीं था और न वह किसी से प्यार करता था , न ही उसकी किसी के प्रति कोई ज़िम्मेदारी थी । लेकिन यौवन की लगाम उसके हाथों में ढीली पड़ रही थी और उसकी हड्डियों में खा जाने वाला अकेलापन घुसने लगा था । कभी-कभी जब उस बर्फ़ीले प्रदेश में सुबह के समय उसकी नींद खुलती तो उसे अपने अंग-अंग में दर्द महसूस होता । यह दर्द लगातार घुड़सवारी करने की वजह से मांसपेशियों के सख़्त हो जाने के कारण हुआ दर्द नहीं था , बल्कि यह तो जीवन में दु:ख और उपेक्षा की मार झेलते रहने की वजह से हो रहा दर्द था । असल में वह अपने एकाकी जीवन से थक चुका था , किंतु उसे लगता था कि वह घरेलू जीवन के लिए नहीं बना था ।
वह दक्षिण की ओर इसलिए आया था क्योंकि उसने उड़ती-उड़ती-सी यह ख़बर सुनी थी कि दुनिया के अंत में स्थित दूर कहीं बियाबान में एक युवती रहती थी जो हवा के बहने की दिशा बदल सकती थी , और वह उस सुंदरी को अपनी आँखों से देखना चाहता था । लम्बी दूरी और रास्तों के ख़तरों ने उसके निश्चय को कमज़ोर नहीं किया और अंत में जब वह हर्मेलिंडा के शराबख़ाने पर पहुँचा और उसे क़रीब से देखा तो वह उसी पल इस नतीजे पर पहुँच गया कि वह भी उसकी तरह की मिट्टी की बनी थी और इतनी लंबी यात्रा करके आने के बाद हर्मेलिंडा को प्राप्त किए बिना उसका जीवन व्यर्थ हो जाएगा ।वह कमरे के एक कोने में बैठकर हर्मेलिंडा की चालों का अध्ययन करता रहा और अपनी संभावनाओं को आँकता रहा ।
पैब्लो की आँतें जैसे इस्पात की बनी थीं । हर्मेलिंडा के यहाँ बनी दारू के कई गिलास पीने के बाद भी उसके होशो-हवास पूरी तरह क़ायम थे । उसे बाक़ी सभी खेल बेहद बचकाने लगे और उसने उनमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । लेकिन ढलती हुई शाम के समय अंत में वह घड़ी आ ही गई जिसकी सब को शिद्दत से प्रतीक्षा थी -- मेढक के मुँह का खेल शुरू होने वाला था । दारू को भूल कर पैब्लो भी खड़िया से खींची गई लकीर और घेरे के पास खड़े पुरुषों की भीड़ में शामिल हो गया । घेरे में पीठ के बल लेटी हर्मेलिंडा उसे किसी जंगली शेरनी की तरह सुंदर लग रही थी । उसके भीतर का शिकारी जागृत होने लगा और अपनी लम्बी यात्रा के दौरान उसने एकाकीपन का जो अनाम दर्द सहा था , अब वह एक मीठी प्रत्याशा में बदल गया । उसकी निगाहें हर्मेलिंडा के उन तलवों, घुटनों, मांसपेशियों और सुनहरी टाँगों को सोखती रहीं जो घाघरे से बाहर क़हर ढा रही थीं । वह जान गया कि उसे यह सब हासिल करने का केवल एक अवसर मिलेगा ।
पैब्लो नियत जगह पर पहुँचा और अपने पैर ज़मीन पर जमा कर उसने निशाना साधा । वह कोई खेल नहीं , उसके अस्तित्व की परीक्षा थी । चाक़ू जैसी अपनी धारदार निगाहों से उसने हर्मेलिंडा को स्तंभित कर दिया जिसकी वजह से वह सुंदरी हिलना-डुलना भूल गई । या शायद बात यह नहीं थी ।यह भी संभव है कि अन्य पुरुषों की भीड़ में से शायद हर्मेलिंडा ने ही पैब्लो को अपने साथ के लिए चुना हो । जो भी रहा हो, पैब्लो ने एक लंबी साँस ली और अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर के उसने लक्ष्य की ओर सिक्का उछाल दिया । सिक्के ने अर्द्ध-चंद्राकार मार्ग लिया और भीड़ के सामने ही सीधा निशाने पर जा लगा । इस कारनामे को वाह-वाहियों और ईर्ष्या-भरी सीटियों से सराहा गया । तस्कर लापरवाही से तीन क़दम आगे बढ़ा और उसने हर्मेलिंडा का हाथ पकड़ कर उसे अपने आग़ोश में खींच लिया । दो घंटों की अवधि में वह यह साबित करने के लिए तैयार लग रहा था कि हर्मेलिंडा उसके बिना नहीं रह सकती । वह उसे लगभग खींचता हुआ दूसरे कमरे के भीतर ले गया । बंद दरवाज़े के बाहर खड़ी पुरुषों की भीड़ दारू पीती रही और दो घंटे का समय बीतने की प्रतीक्षा करती रही, किंतु पैब्लो और हर्मेलिंडा दो घंटे बीत जाने के बाद भी बाहर नहीं आए । तीन घंटे हो गए , फिर चार और अंत में पूरी रात बीत गई । सवेरा हो गया । काम पर जाने की घंटी बजने लगी लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला ।
दोनों प्रेमी दोपहर के समय कमरे से बाहर आए । बिना किसी की ओर देखे पैब्लो सीधा अपने घोड़े की ओर बाहर चला गया । उसने फटाफट हर्मेलिंडा के लिए एक दूसरे घोड़े का और उनका सामान उठाने के लिए एक खच्चर का प्रबंध किया । हर्मेलिंडा ने घुड़सवारी करने वाली पोशाक पहनी हुई थी और उसके पास रुपयों और सिक्कों से भरा एक थैला था जो उसने कमर से बाँध रखा था । उसकी आँखें एक नई तरह की ख़ुशी से चमक रही थीं और उसकी कामोत्तेजक चाल में संतोष की थिरकन
थी । गंभीरता से दोनों ने अपना सामान खच्चर की पीठ पर लाद कर बाँधा । फिर वे अपने-अपने घोड़ों पर बैठे और रवाना हो गए । चलते-चलते हर्मेलिंडा ने अपने उदास प्रशंसकों की ओर हल्का-सा हाथ हिलाया , और फिर बिना एक बार भी पीछे देखे वह पैब्लो के साथ दूर तक फैले उस बंजर मैदान की ओर चली गई । वह कभी वापस नहीं आई ।
हर्मेलिंडा के चले जाने से उपजी निराशा और हताशा कामगारों पर इस क़दर हावी हो गई कि उनका ध्यान बँटाने के लिए भेड़पालक लिमिटेड कंपनी के प्रबंधकों को झूले लगवाने पड़े । अंग्रेज़ मालिकों ने वहाँ कामगारों के लिए तीरंदाज़ी और बरछेबाज़ी की प्रतियोगिताएँ शुरू करवाईं ताकि वे लोग वहाँ निशानेबाज़ी का अभ्यास कर सकें ।
यहाँ तक कि मालिकों ने मिट्टी से बना खुले मुँह वाला एक मेढक भी लंदन से आयात किया ताकि सभी कामगार सिक्के उछालने की कला में पारंगत हो सकें , पर ये सभी चीज़ें उपेक्षित पड़ी रहीं । अंत में ये सभी खिलौने अंग्रेज़ संचालक के मकान के अहाते में डाल दिए गए जहाँ आज भी शाम का अँधेरा होने पर अंग्रेज़ लोग अपनी ऊब दूर करने के लिए इनसे खेलते हैं ।

------------०------------

मूल कथा : इज़ाबेल अलेंदे
अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

------------०------------

प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
A - 5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ. प्र . )
मो: 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

------------0------------




इज़ाबेल अलेंदे चिली की सुप्रसिद्ध लेखिका हैं , हालाँकि उनका जन्म लीमा , पेरु ( Peru ) में हुआ था । यूरोप और मध्य-पूर्व में बचपन बीता । पत्रकार रहीं । चिली टेलीविज़न के लिए कार्य किया । बीस की उम्र में शादी की । उनके चाचा को , जो चिली के पहले चुने हुए मार्क्सवादी राष्ट्रपति थे , जब सैनिकों ने सत्ताच्युत कर दिया तो वे वेनेज़ुएला ( Venezuela ) चली गईं और काफ़ी समय तक वहाँ तथा अन्य देशों में रहीं । इन दिनों वे सैन फ़्रांसिस्को में रहती हैं ।कृतियाँ : द हाउस आॅफ़ स्पिरिट्स ( 1982 ) , आॅफ़ लव ऐंड शैडोज़ ( 1984 ) ,इवा लुना ( 1991 ) आदि । इनके उपन्यास तथा इनकी कहानियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित हुई हैं । ये लातिनी अमेरिका की बेहद लोकप्रिय लेखिका हैं ।)

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,35,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1414,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,30,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,73,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,179,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,24,प्रेमचंद,40,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,12,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,12,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,118,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,53,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,222,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,70,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,360,हिंदी लेख,506,हिंदी व्यंग्य लेख,4,हिंदी समाचार,165,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,86,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,352,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,102,hindi stories,656,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,17,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,15,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,3,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,42,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: टोड्स माउथ
टोड्स माउथ
प्रबंधन के दरबानों की निगरानी में सारे कामगार बड़े दुख-तकलीफ़ में रहते थे । ठिठुरने वाली ठंड में उन्हें महीनों तक गरम शोरबा भी नसीब नहीं होता था । वे उतना ही उपेक्षित जीवन जीते थे टोड्स माउथ टोड्स माउथ जितनी उनकी भेड़ें । शाम को हमेशा कोई-न-कोई गिटार उठा लेता और हवा में भावुक गीत तैरने लगते ।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUdk9VcmEw5j-_zBZ_CoprAlxMxjz2Oh0Mp1mFsjWYMPmxUgVyO4tutBlQs8-k7ZpSFZpMWBNZ5BWAQjkOdfWdatqLu_mm5wsN8B8wmCp-4f30WOyjJk_cpDFrcHzuKeTcV3rz0qYR4QsM/s1600/download.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUdk9VcmEw5j-_zBZ_CoprAlxMxjz2Oh0Mp1mFsjWYMPmxUgVyO4tutBlQs8-k7ZpSFZpMWBNZ5BWAQjkOdfWdatqLu_mm5wsN8B8wmCp-4f30WOyjJk_cpDFrcHzuKeTcV3rz0qYR4QsM/s72-c/download.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2019/04/toads-mouth.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2019/04/toads-mouth.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका