साकेत मैथिलीशरण गुप्त

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साकेत मैथिलीशरण गुप्त saket maithili sharan gupt साकेत मैथिलीशरण गुप्त साकेत महाकाव्य साकेत राष्ट्रकवि मैथिशरण गुप्त का प्रसिद्ध काव्य है .इस महाकाव्य की कथा उर्मिला और लक्ष्मण के संयोग सुख से प्रारम्भ होती है ,फिर वनवास के बाद समाप्त हो जाती है .यह महाकाव्य १२ सर्गों में आबद्ध है .

साकेत मैथिलीशरण गुप्त 


साकेत मैथिलीशरण गुप्त साकेत महाकाव्य साकेत saket maithili sharan gupt - साकेत राष्ट्रकवि मैथिशरण गुप्त का प्रसिद्ध काव्य है .इस महाकाव्य की कथा उर्मिला और लक्ष्मण के संयोग सुख से प्रारम्भ होती है ,फिर वनवास के बाद समाप्त हो जाती है .यह महाकाव्य १२ सर्गों में आबद्ध है . 

प्रस्तुत महाकाव्य में कवि का उद्देश्य समष्टिगत कल्याण करना है .इसे से कवि ने राम का चित्र इसी रूप में
साकेत
चित्रित किया है .उर्मिला का विरह त्याग में भरा हुआ है .कवि इस धरती पर रामराज्य स्थापित करके इसे स्वर्ग बनाना चाहता है .इस काव्य के सारे पात्रों में त्याग और निस्वार्थ प्रेम की भावना का समावेश है .इस काव्य का प्रधान रस श्रृंगार है .अन्य रसों का भी समावेश हुआ है परन्तु गौण रूप में .सम्पूर्ण काव्य विरह एवं वेदना से ओत प्रोत है .गुप्त ने गिरे हुए ,उपेक्षित ,चरित्रों का परिमार्जन करके इन्हें लोक दृष्टि में ऊँचे स्थान पर आरूढ़ किया है .इन्होने इस काव्य के माध्यम से कैकियी के चरित्र का सुसंस्कार किया है .मांडवी ,उर्मिला और सीता को उच्चासन पर आसीन किया है .राम के मुखारविंद से उर्मिला की प्रशंसा कराके वे एक अनुपम उदाहरण देकर पाठकों को सोचने के लिए आतुर कर देते हैं . 

तूने तो सहधर्मिणी से भी ऊपर, धर्म स्थापन किया भाग्यशालिनी ,इस भूपर . 


वास्तव में भारतीय नारी का सर्वश्व उसका पति है .अग्नि के समक्ष लाल वस्त्रों में लिपटी हुए भारतीय नारी सुख दुःख में पति के साथ रहने की प्रतिज्ञा करती हैं .इसी से सीता राम के साथ वन में चली जाती हैं .परन्तु उर्मिला दूसरे के सुख व कर्तव्यपूर्ति में बाधक नहीं बनना चाहती .स्पष्ट है - 

स्वामि-सहित सीता ने
नन्दन माना सघन-गहन कानन भी,
वन उर्मिला बधू ने
किया उन्हीं के हितार्थ निज उपवन भी!

अपने अतुलित कुल में
प्रकट हुआ था कलंक जो काला,
वह उस कुल-बाला ने
अश्रु-सलिल से समस्त धो डाला।

साकेत के राम रामायण के राम नहीं है .इस काव्य में उनकी परंपरा एकदम अलग है .वे इस धारा पर सुख शान्ति हेतु क्रांति पैदा करने आये हैं .साकेत के राम कहते हैं . 

मैं आर्यों का आदर्श बताने आया .जन सम्मुख धन को तुच्छ बताने आया.
मुख शान्ति हेतु मैं क्रांति मचाने आया .विश्वासी का विश्वास बचाने आया . 


इस ग्रन्थ में काव्यरूपक एवं गीतिकाव्य दोनों शिल्पों का प्रयोग हुआ है .सारे संवाद नाटकीय शैली में प्रस्तुत किये गए हैं .गंभीर से गंभीर बातों को सरल ,स्पष्ट एवं सार गर्भित भाषा में प्रस्तुत किया गया है . 


विडियो के रूप में देखें - 


COMMENTS

Leave a Reply: 7
  1. इस रचना के लिए मैथिली शरण गुप्त जी को साहित्य का नोबेल क्यों नहीं मिला यह एक पहेली है।

    जवाब देंहटाएं
  2. भगवान स्वयं पुरस्कारों से आनंद नहीं होते, साहित्यकार आप सृष्टिकर्त्ता होने के कारण, स्वयं भगवान होते हैं।
    अब भगवान को पुरस्कार कौन दे सकता है भला?

    जवाब देंहटाएं
  3. साकेत की रचना का मूल उद्देश्य क्या था?

    जवाब देंहटाएं
  4. साकेत का नवम सर्ग एक उत्कृष्ट विरह काव्य है" कथन की सोदहरण विवेचना कीजिए

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तर
    1. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी मे है आप मुझे नवम सग्र का दूसरा भाग bta सकते हैं

      हटाएं
  6. बेनामीजून 08, 2022 9:33 am

    साकेत के माध्यम से रामकथा के उपेछित पत्रों पर प्रकाश डालने में अधिक अफल हुआ है।

    जवाब देंहटाएं
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