रविदास का जीवन परिचय

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रविदास का जीवन परिचय


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रैदास का जीवन परिचय - 

संत रविदास
संत रविदास
काशी में मडुवाडीह के पास सं १४४० में इनका जन्म हुआ था और आप यही रहा करते थे .संत रविदास पढ़े लिखे नहीं थे ,परन्तु कबीर के समान बहुश्रुत थे .इन्होने स्वयं अपनी जाति चमार बताई है .कह रैदास खलास चमार .रैदास की पत्नी का नाम लोना था .ये संत प्रवृत्ति के घुम्मकड़ और फक्कड़ व्यक्ति थे .इन्होने प्रयाग ,मथुरा ,जयपुर ,भरतपुर ,चित्तौड़ आदि स्थानों का भ्रमण किया था . पतन्तु इनके महत्व को बढ़ाने के लिए इन्हें पूर्व जन्म का ब्राह्मण बताया गया है .चमार जाती के लोग अपने आपको रविदासी कहते हैं .मीराबाई ने इनको अपना गुरु कहकर पुकारा है .१२० वर्ष की अवस्था में सन १५६० में इनकी मृत्यु काशी में बताई गयी है .

रैदास की काव्य कला व विचारधारा - 

रविदास समाज तथा साहित्य से महात्मा रूप में समझे जाते हैं .संत रूप में भी आप महान थे .संतो की सहजता ,सरलता ,निश्कप्ता ,उदारता तथा सेवाभाव आप में भरे पड़े थे .कबीर के सामान से आप भी ईश्वर को निर्गुण या निराकार बताते हैं .कबीर की भाँती ही आपने भी अपनी रचनाओं में ईश्वर को हरि, राम आदि शब्दों से पुकारा है .रविदास मानते हैं कि जब तक अहंकार को मन से नहीं निकाला जाएगा ,ईश्वर प्राप्ति संभव नहीं .अहंकार को ह्रदय में रखकर तो भक्ति भी नहीं की जा सकती है .इन्होने जिन रचनाओं का निरूपण किया है ,वह प्रेम भाव की है .इनकी मान्यता है कि परमत्मा का परिचय केवल सुहागिनें ही प्राप्त कर सकती हैं क्योंकि वह अपने आपको मनसा वाचा कर्मणा समर्पित कर देती हैं . 

रैदास की रचनाएँ - 

जहाँ तक रचनाओं का सम्बन्ध है इनकी रचनाओं का एक संग्रह "रैदास की बानी" नाम से प्रकाशित है .गुरु ग्रन्थ साहब तथा अन्य कई संग्रहों में इनके पद बिखरे पड़े हैं .कुछ लोगों का कहना है की अभी भी इनकी कई हस्तलिखित रचनाएं राजस्थान में मिली हैं .रैदास की भाषा कृत्रिमता से रहित अत्यंत सरल तथा सुबोध है .उस समय बोलचाल में फ़ारसी का बड़ा महत्व था ,इस कारण इनके पदों में फ़ारसी के शब्दों की अधिकता है .


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