प्रवासी हिंदी साहित्य

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प्रवासी भारतीय रचनाकारों की लेखन-शैली, शब्द-संस्कृति, संवेदना, सरोकार और स्तर मुख्यधारा के लेखन से भिन्न रही है। इसी भिन्नता के कारण प्रवासी हिंदी लेखन ने हिंदी साहित्य के मुख्यधारा के पाठकों को एक नई दृष्टि, एक नई चेतना, एक नई संवेदना और एक नई उत्तेजना भी दी है।” विदेशों में लिखे जा रहे सृजनात्मक हिंदी साहित्य पर अपने विचार प्रकट करते हुए उषा राजे सक्सेना का यह मानना है कि प्रवासी रचनाकारों को अपने साहित्य को बरकरार रखने के लिए अपने कैनवस को और अधिक विशाल करना होगा।

‘प्रवासी हिंदी साहित्य : संवेदना के विविध संदर्भ’ 
विषयक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



प्रवासी हिंदी साहित्य मैसूर, 8 मार्च, 2019 - प्रवासी हिंदी साहित्य का परिदृश्य वैश्विक बनता जा रहा है। हिंदी में रचे जा रहे प्रवासी साहित्य का अपना वैशिष्ट्य है जो उसकी संवेदना, परिवेश, जीवन दृष्टि तथा सरोकारों में दिखाई देता है। इसी कड़ी में कर्नाटक की पारंपरिक नगरी मैसूर के हिंदी अध्ययन विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मानसगंगोत्री, मैसूर तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में ‘प्रवासी हिंदी साहित्य : संवेदना के विविध संदर्भ’ विषयक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, मैसूर विश्वविद्यालय के बहादुर इंस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेंट के सभागार में आयोजित की गई।

इस अवसर पर ब्रिटेन की प्रख्यात हिंदी लेखिका उषा राजे सक्सेना प्रमुख अतिथि रही। उद्घाटन भाषण में
प्रवासी हिंदी साहित्य
उन्होंने विदेशों में हिंदी साहित्य सृजन के परिवेश, स्वरूप, विषय-वस्तु, महत्वाकांक्षाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा - “प्रवासी भारतीय रचनाकारों की लेखन-शैली, शब्द-संस्कृति, संवेदना, सरोकार और स्तर मुख्यधारा के लेखन से भिन्न रही है। इसी भिन्नता के कारण प्रवासी हिंदी लेखन ने हिंदी साहित्य के मुख्यधारा के पाठकों को एक नई दृष्टि, एक नई चेतना, एक नई संवेदना और एक नई उत्तेजना भी दी है।” विदेशों में लिखे जा रहे सृजनात्मक हिंदी साहित्य पर अपने विचार प्रकट करते हुए उषा राजे सक्सेना का यह मानना है कि प्रवासी रचनाकारों को अपने साहित्य को बरकरार रखने के लिए अपने कैनवस को और अधिक विशाल करना होगा।

उद्घाटन सत्र में प्रो.आर.शशिधरन, कुलपति, विज्ञान तथा तकनीकी विश्विविद्यालय, कोचिन ने बीज भाषण में प्रवासी साहित्यकारों की अहम भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि रचनाकारों ने अपने वतन से दूर रहकर अपनी रचनाओं के ज़रिये हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य को गौरवान्वित करने का सराहनीय कार्य किया है तथा प्रवासी जीवन की संवेदना की अभिव्यक्ति ही प्रवासी साहित्य में मुखर हुई है।

प्रो. प्रतिभा मुदलियार की अध्यक्षता और मार्गदर्शन में इस द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन हुआ। संगोष्ठी में मॉरीशस, फीजी, चीन और ब्रिटन से प्रतिभागी आए थे। अध्यक्षीय भाषण में प्रो. प्रतिभा मुदलियार ने संगोष्ठी के मूल उद्देश्य को प्रतिपादित करते हुए कहा कि विदेशों में बसे भारतीय मूल के लेखकों के साहित्य को समझने के लिए उनका जीवन संघर्ष, मानवीय जीवन तथा सामाजिक परिवेश आदि को जानना जुरूरी है। इस अवसर पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘प्रवासी हिंदी साहित्य : संवेदना के विविध संदर्भ’ का लोकार्पण भी संपन्न हुआ।

मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के प्रो. रामवीर सिंह ने कहा कि प्रवासी साहित्य नोस्टेलिजिया का साहित्य होते हुए भी विभिन्न संवेदनाओं को लेकर चलता है।

उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष्य प्रो. लिंगराज गांधी, कुलसचिव, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर ने हिंदी विभाग को इस प्रकार के आयोजन के लिए बधाई दी और साहित्य में प्रवासी लेखकों के योगदान को रेखांकित किया।

समापन सत्र के प्रमुख अतिथि के रूप में प्रो.ऋषभदेव शर्मा ने द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का मूल्यांकन करते हुए कहा कि प्रवासी साहित्य हिंदी सहित कई और भारतीय भाषाओं में भी लिखा जा रहा है और उसका महत्व आज के युग में बहुत अधिक है। उनका यह कहना था कि इस साहित्य की ओर आलोचकों को व्याख्याकार के दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है। इस संगोष्ठी के दौरान प्रो.ऋषभदेव शर्मा की पुस्तक ‘संपादकीयम्’ का लोकार्पण भी हुआ। समापन सत्र में प्रो. टी. आर भट्ट, मुखय अतिथि और प्रो. शशिधर एल. गुडिगेनवर अध्यक्ष के रूप में उपस्थित थे।

संगोष्ठी के अंतर्गत आठ अकादमिक और समांतर सत्रों में सत्तर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। इन सत्रों की अध्यक्षता डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. रामनिवास साहु, डॉ. रामप्रकाश, डॉ. शशिधर एल. जी., डॉ. शुभदा वांजपे, डॉ. सतीश पांडेय, डॉ. नामदेव गौड़ा और उषा राजे सक्सेना ने की।   

पहले दिन रंगारंग सांस्कृतिक संध्या का आयोजन मुख्य रूप से आकर्षण का केंद्र रहा जिसमें कर्नाटक की लोक संस्कृति को व्यक्त करने वाली संगीतमय प्रस्तुतियों के अलावा ‘अंधेर नागरी’ और ‘वापसी’ के नाट्य रूपांतरण ने समां बाँध दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रेखा अग्रवाल एवं अन्य प्राध्यापकों ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. एम. वासंति ने किया।



प्रेषक – डॉ. प्रतिभा मुदलियार
विभागाध्यक्ष
हिंदी अध्ययन विभाग
मैसूर विश्वविद्यालय
मानसगंगोत्री
मैसूर – 570006 

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