खड़ी बोली गद्य का आरम्भ खड़ी बोली गद्य का आरम्भ खड़ी बोली गद्य की सबसे प्राचीन रचना अकबर के राजदरबारी कवी गंग द्वारा लिखित चन्द छंद बरनन की महिमा है ,जिसमें ब्रजभाषा और खड़ी बोली के मिश्रित रूप के दर्शन होते हैं .खड़ी बोली का परिष्कृत रूप सर्वप्रथम रामप्रसाद निरंजनी द्वारा रचित भाषा योग वशिष्ठ में मिलता है .
खड़ी बोली गद्य का आरम्भ
खड़ी बोली गद्य का आरम्भ खड़ी बोली गद्य की सबसे प्राचीन रचना अकबर के राजदरबारी कवि गंग द्वारा लिखित चन्द छंद बरनन की महिमा है ,जिसमें ब्रजभाषा और खड़ी बोली के मिश्रित रूप के दर्शन होते हैं .खड़ी बोली का परिष्कृत रूप सर्वप्रथम रामप्रसाद निरंजनी द्वारा रचित भाषा योग वशिष्ठ में मिलता है .इस युग में पं. दौलतराम ने पद्म पुराण का खड़ी बोली में अनुवाद किया ,परन्तु उस पर ब्रज भाषा का प्रभाव है .
उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में खड़ी बोली गद्य के विकास में ईसाई धर्म प्रचारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई .उन्होंने खड़ीबोली में बाइबिल का अनुवाद कर भारत के अनेक स्थानों पर वितरित किया .इस प्रकार ईसाई धर्म का प्रचार के साथ साथ हिंदी का भी प्रचार होता रहा .
आर्य समाज ,ब्रह्म समाज और सनातन धर्म के उपदेशकों ने भी धर्म प्रचार के लिए उपनिषदों और वेदों के ज्ञान तथा रामायण महाभारत आदि को कथाओं के प्रचार के लिए हिंदी गद्य में पुस्तकें लिखी और पत्रिकाओं निकाली. स्वामी दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश की हिंदी में रचना की .इस प्रकार धार्मिक समुदायों के धर्म प्रचार के आन्दोलनों का हिंदी गद्य के विकास में अपूर्व योगदान रहा .
चार उन्नायनों का योगदान -
भारतेंदु युग से पूर्व खड़ीबोली के विकास में फोर्ट विलियम कॉलेज के चार प्राध्यापकों ने अंग्रेजों के आदेश से हिंदी गद्य के विकास में उल्लेखनीय कार्य किया .इंशाअल्लाह खां ने रानी केतकी की कहानी की रचना की .इनकी भाषा में भले ही पद्य का प्रभाव हो ,परन्तु इसमें ठेठ खड़ीबोली के दर्शन होते हैं .मुंशी सदा सुखलाल ने सुख सागर की रचना की .इनकी भाषा में पुराने कथावाचकों जैस पंडिताऊपन है .लल्लूलाल ने प्रेम सागर ,सिंहासन बत्तीसी ,बैताल पचीसी आदि की रचना की .इनकी भाषा पर ब्रजभाषा का प्रभाव है .सदल मिश्र का नासिकेतोपाख्याँ श्रेष्ठ गद्य रचना है .इनकी भाषा सबसे अधिक परिमार्जित है ,परन्तु उसमें कहीं कहीं पूर्विपन झलकता है .
दो राजाओं का योगदान -
भारतेंदु से पूर्व दो राजाओं का उल्लेख कर देना आवश्यक है - राजा शिव प्रसाद सितारे हिंदी और लक्ष्मण सिंह .राजा शिवप्रसाद सितारे हिंदी शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर थे .उन्होंने हिंदी को विद्यालयों में स्थान दिलाया और पाठ्य पुस्तकों की रचना की .इनकी रचनाओं में अरबी - फ़ारसी मिश्रित हिंदी का प्रयोग अधिक हुआ .दूसरी ओर राजा लक्ष्मण सिंह ने संस्कृत गर्भित शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया .इन्होने अपने शकुंतला ग्रन्थ का आदर्श रूप प्रस्तुत किया .इस प्रकार दोनों विद्वानों ने हिंदी गद्य के अलग - अलग दो स्वरूपों का प्रतिपादन किया .उनकी भाषा जनसंपर्क से दूर की भाषा ही रही .ऐसी स्थिति में हिंदी साहित्याकाश में भारतेंदु का प्रादुर्भाव हुआ .उन्होंने अपनी अलौकिक प्रतिभा से मध्यमार्गी रूप प्रस्तुत कर हिंदी भाषा में एकता स्थापित की .
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Aapne bade bade sawaalo k simple tareeke se answer deke unhe Yaad krna aasaan kr diya.exams ki taiyaari me ye helpful h
जवाब देंहटाएंभारतेंदु युग के पूर्व खड़ी बोली गध के प्रथम चार उन नाटको के नाम लिखिये
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