युद्ध की वास्तविकता

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युद्ध की वास्तविकता युद्ध के जोश की कविताएं करना, मार डालो, काट डालो, मिटा डालो के नारे लगाना बहुत आसान है लेकिन सच में युद्ध करना एक बहुत कठिन कर्म है। यह मानवता का सबसे घृणित और वीभत्स सत्य है जिसमें घोषित हार-जीत किसी की भी हो लेकिन वस्तुतः दोनों पक्ष हारते ही हैं।

युद्ध की वास्तविकता


प्रायः देखा गया है कि हर राष्ट्र का असैनिक वर्ग जिसे कभी युद्ध लड़ना नहीं होता, जो अपने घर में एक चूहे, छिपकली और काकरोच से भी डरता है, जो ठंड में रजाई नहीं छोड़ पाता और गर्मी में एसी से बाहर नहीं
युद्ध
युद्ध
निकलता, उसमें युद्ध के लिए बड़ा जोश होता है। यह वर्ग जोशीले भाषण देता है, कविताएं रचता है, गीत गाता है लेकिन जिन्हें वास्तव में कारगिल जैसे कठिन क्षेत्रों में युद्ध के मैदान में दुश्मन का सामना करना पड़ता है वे सैनिक जानते हैं कि युद्ध की सच्चाई क्या है।

मानवता हारती है - 

युद्ध के जोश की कविताएं करना, मार डालो, काट डालो, मिटा डालो के नारे लगाना बहुत आसान है लेकिन सच में युद्ध करना एक बहुत कठिन कर्म है। यह मानवता का सबसे घृणित और वीभत्स सत्य है जिसमें घोषित हार-जीत किसी की भी हो लेकिन वस्तुतः दोनों पक्ष हारते ही हैं। मानवता हारती है, ज्ञान हारता है, जीवन मूल्य हारते हैं, संवेदना हारती है, सभ्यता हारती है और हारते हैं वे माता पिता जिन्होंने अपने बुढ़ापे की लाठी खोई है, हारती है वे वधुएं जिन्होंने अपना प्रियतम खोया है, हारते हैं वे परिवार, वे संबंध जिन्होंने अपना कोई आत्मीय युद्ध के मैदान खो दिया है और खुद जीवन भर के लिए इस दुख से घायल हो गए हैं। इसलिए कृपा करके युद्ध के लिए उकसाइए मत, विवश मत कीजिए।

आत्मरक्षा के लिए युद्ध - 

अपराधी को सजा मिलनी चाहिए उतनी, जितना बड़ा उसका अपराध है; उतनी, जितने से उसे और अपराध करने से रोका जा सके। कई वैश्विक शक्तियां भी भारत-पाक युद्ध की प्रतीक्षा में हैं ताकि उनके हथियार बिकें और वे मालामाल हो जाएं। युद्ध करने वाले दोनों राष्ट्र इन हथियार विक्रेताओं के द्वारा लूटे जाएंगे। दोनों राष्ट्र अपना धन भी खोएंगे और सैनिक भी। यह युद्ध अगर प्रारंभ हुआ तो दस पांच दिन में खत्म होने वाला नहीं है। हो सकता है यह युद्ध विश्व युद्ध में बदल जाए। अतः युद्ध की कल्पना करके रूह कांपना चाहिए। आत्मरक्षा के लिए युद्ध हमारी मजबूरी हो सकती है लेकिन यह कभी भी वांछित नहीं होना चाहिए। भावना तो हमें युद्ध मुक्त धरती की ही करना चाहिए। नेताओं के बड़े बोलो से युद्ध भड़क तो सकते हैं लेकिन जीते नहीं जा सकते क्योंकि युद्ध जुबान से नहीं सामरिक कौशल से जीते जाते हैं, सेना के मनोबल से जीते जाते हैं पर जो देश आजादी के ७० सालों में  हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर ना हुआ हो, जिस देश में हथियारों के हर सौदे पर भ्रष्टाचार का घुन लगा हो, उस देश की सेना का मनोबल कैसा होगा, यह विचारणीय है, चिंतनीय है। 

निर्णय जनता को करना होगा - 

युद्ध से यह समस्या सुलझने वाली नहीं है अपितु युद्ध से दोनों देश बर्बाद होंगे और मामला सीधे-सीधे आतंकवादियों के हाथों में चला जाएगा। युद्ध इसका हल नहीं है इसका बहुत आसान और प्रभावशाली उपाय यह है कि भारत की सरकार नहीं, भारत की जनता यह तय करे कि हम अगले छह माह तक इन देशों से आयात की हुई किसी वस्तु का उपयोग नहीं करेंगे और ना ही उन्हें अपने देश से कोई वस्तु निर्यात करेंगे। जो वस्तुएं इन देशों से आती हैं हम उनका उपयोग ही नहीं करेंगे। इससे न केवल आतंकवाद पर लगाम लगेगी अपितु हमारा विदेशी व्यापार घाटा भी समाप्त हो जाएगा। और हां! अपने मनोरंजन के लिए कश्मीर की यात्रा का पूरी तरह बहिष्कार कर दें। यह सरकार को नहीं स्वयं जनता को करना होगा। सरकारों के स्तर पर ऐसे निर्णय नहीं लिए जा सकते क्योंकि उन पर विश्व राजनीति के दबाव होते हैं लेकिन जनतंत्र में जनता पर कोई दबाव नहीं होता। इसलिए यह निर्णय सरकार को नहीं जनता को करना होगा और उस पर अमल भी करना होगा। हमें ऐसा करना चाहिए यदि हम भारत को अपना देश मानते हैं, यदि हम अपने आप को भारतीय मानते हैं। भगवान सबको सद्बुद्धि दें। 

–विजयलक्ष्मी

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