जैनेन्द्र कुमार के उपन्यास

SHARE:

जैनेन्द्र कुमार के उपन्यास jainendra kumar novels जैनेन्द्र उपन्यासों का विषय गांवों को न बनाकर नगरों को बनाया है .इन उपन्यासों में नागरिक जीवन को मनोवैज्ञानिक समस्याओं का चित्रण उपलब्ध है .जैनेन्द्र हिंदी में शरत की भूमिका का निर्वाह करते हैं .इनके प्रमुख उपन्यास परख ,त्यागपत्र ,सुनीता ,कल्याणी ,जयवर्धन आदि हैं .

जैनेन्द्र कुमार के उपन्यास



जैनेन्द्र कुमार के उपन्यास jainendra kumar novels - जैनेन्द्र ,प्रेमचंद के बाद हिंदी के सर्वश्रेष्ठ सफल उपन्यासकार हैं .इन्होने अपने उपन्यासों का विषय गांवों को न बनाकर नगरों को बनाया है .इन उपन्यासों में नागरिक जीवन को मनोवैज्ञानिक समस्याओं का चित्रण उपलब्ध है .इनके उपन्यासों पर फ्रायड की प्रमुख छाप स्पष्ट है .आत्मपीड़ा की अधिकता के कारण कुछ लोगों का कहना है कि जैनेन्द्र हिंदी में शरत की भूमिका का निर्वाह करते हैं .इनके प्रमुख उपन्यास परख ,त्यागपत्र ,सुनीता ,कल्याणी ,जयवर्धन आदि हैं .

परख - 

परख में मानवीय प्रवृत्ति तथा सामाजिक विषमता से उत्पन्न विधवा समस्या है .इस उपन्यास का प्रकाशन १९१० में हुआ है . कट्टों का मास्टर के प्रति अंध विश्वास है .सत्यधन आदर्श वादिता में विधवा कट्टों से प्रेम करता है परन्तु
जैनेन्द्र कुमार
जैनेन्द्र कुमार
सामाजिक भय ,अर्थ ,लोभ आदि से वह कट्टों को पत्नी नहीं बना पाता .वह बिहारी की बहिन गरिमा से विवाह कर लेता है .दूसरी ओर बिहारी वैधव्य यज्ञ में खरा उतरता है .इस प्रकार सत्यधन के प्रेम की परख होती है और वह खोटा सिद्ध होता है .

सुनीता - 

जैनेन्द्र के उपन्यासों में सुनीता का एक विशेष स्थान है .इस उपन्यास का प्रकाशन १९३६ में हुआ है . उपन्यास का नायक हरि प्रसन्न एक राष्ट्रीय कार्यकर्ता है .वह अपने मित्र श्रीकांत के यहाँ रहता है .धीर - धीरे सुनीता और हरि प्रसन्न में आकर्षण उत्पन्न होता है .हरि प्रसन्न सुनीता को क्रांतिकारी दल का मंत्री बनता है .इसी बीच उसकी भावुकता भी जागती है .कालांतर में हरि प्रसन्न का मोह टूटता है और वह सुनीता को घर लौटाकर हमेशा के लिए चला जाता है .

कल्याणी - 

शादी और डाक्टरी ,पत्नीत्व और निजत्व का परस्पर संघर्ष ही कल्याणी की कहानी है .इस उपन्यास का प्रकाशन १९४० में हुआ है कल्याणी की नायिका श्रीमती असरानी डॉक्टर है और उसके पति भी डॉक्टर है .श्री मति असरानी बुद्धिमती और उदार हैं .उन्होंने स्वतंत्र जीवन का स्वाद लिया है .अब वैवाहिक बंधन में बंधकर उसकी मर्यादा के बीच चल रही हैं .पत्नी और पति के मनोभावों में बड़ा अंतर हैं .वह अपनी पत्नी पर संदेह करके उसे पीटते भी हैं .वह चाहते हैं कि उनकी पत्नी गृहणी बने .उसे भी गृहणी बनने में आपत्ति नहीं हैं .समस्या है - आज की गृहणी बनने में .वह अपनी पत्नी की इच्छा को पति की इच्छा पर निछावर करती हुई अंत में अचानक मूक हो जाती है .

त्यागपत्र - 

त्यागपत्र उपन्यास के प्रधान पात्र हैं विनोद और उसकी बुआ मृणाल .इस उपन्यास का प्रकाशन १९५७ में हुआ है .इनमें विनोद कलाकार हैं और जो कुछ कहानी है .बुआ की .मृणाल विनोद के माता - पिता द्वारा पाली गयी है .पढाई के समय अपनी सहेली के भये से प्रेम करने लगती है .इसके लिए विनोद की माँ भी मृणाल को बुरी तरह पीटती है .शीघ्र ही किसी व्यस्क के साथ मृणाल की शादी कर दी जाती है .पति उसके प्रति अत्याचार करता है उसे घर से निकाल देता है .इसके बाद भी उसके जीवन के कष्टों का अंत नहीं होता .सांसारिक कष्टों को लगभग २० वर्षों तक झेलती हुई इस संसार से विदा ले लेती हैं .उसकी मृत्यु का विनोद पर इतना प्रभाव पड़ा कि वह नौकरी से त्यागपत्र देकर दुनिया से विरक्त हो गया है .

सुखदा - 

सुखदा आत्म चरित्रात्मक उपन्यास है .इस उपन्यास का प्रकाशन १९५२ में हुआ है .कहानी की नायिका सुखदा अपने वैवाहिक जीवन और पति की आर्थिक दशा के सम्बन्ध में ऊँची ऊँची कल्पनाएँ करती है .परन्तु इसके विपरीत स्थिति में सुका विवाह होता है .पति का वेतन कुल डेढ़ सौ है जिसका एक अंश गाँव भेजना पड़ता है .उसका मन अभाव से भर उठता है .कालांतर में सुखदा क्रांति संघ की उपाध्यक्ष हो जाती है .इसी बीच क्रांति दल के एक अन्य सदस्य लाल साहब से उसका परिचय होता है सुखदा और लाल को लेकर दल में बड़ा असंतोष उभरता है और अंततः हरीदा संघ को भंग कर देता है .इसके बाद हरीदा को छुडाते समय लाल गोली का शिकार होता है .अब कान्त और सुखदा का साथ साथ रहना असमंजस पूर्ण हो जाता है और सुखदा अपनी माँ के घर चली जाती है .

व्यतीत - 

व्यतीत भी सुखदा के समान आत्म चरित्रात्मक उपन्यास है .इस उपन्यास का प्रकाशन १९५३ में हुआ है .इसमें नायक जयंत प्रेम में असफल होने पर जीवन से विरक्त होकर इधर - उधर भटकता रहता है . 




उपरोक्त विश्लेषण के पश्चात हम कह सकते हैं कि इनके उपन्यासों में नारी पुरुष के प्रेम की समस्या का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है .दार्शनिकता के कारण कहीं कहीं आपकी शैली अत्यंत जटिल प्रतीत होती है .इन्होने अपने उपन्यासों में मौखिक प्रश्न उठाये हैं ,वे मानव जीवन में विचारणीय है .कथावस्तु के चयन पात्र ,कल्पना ,जीवन दृष्टि सभी दृष्टियों से इनमें नवीनता है .


COMMENTS

Leave a Reply: 4
  1. बहुत अच्छी जानकारी

    जवाब देंहटाएं
  2. त्यागपत्र उपन्यास वाली टिप्पणी मुझे लगता है उसमे थोड़ी त्रुटि है।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रकाशन वर्ष को ठीक किया जाए

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रकाशन वर्ष गलत डाले गए हैं।

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका