दिल से ओडिया लेकिन पहचान है छत्तीसगढ़ी

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दिल से ओडिया लेकिन पहचान है छत्तीसगढ़ी इन ग्रामीणों के पास छत्तीसगढ़ का मतदाता पहचान पत्र है लेकिन यह खुद को दिल से ओडिया मानते हैं। उनके बच्चे ओडिया माध्यम स्कूल में पढाई करते हैं और उन्होंने ओडिया भाषा को भी अपनाया है। ओडिशा के झारसुगुड़ा जिले के कनकतोरा गांव 120 ढोकरा कारीगरों का घर है ।

दिल से ओडिया लेकिन पहचान है  छत्तीसगढ़ी


इन ग्रामीणों के पास छत्तीसगढ़ का मतदाता पहचान पत्र है लेकिन यह खुद को दिल से ओडिया मानते हैं। उनके बच्चे ओडिया माध्यम स्कूल में पढाई करते हैं और उन्होंने ओडिया भाषा को भी अपनाया है।  ओडिशा के झारसुगुड़ा जिले के कनकतोरा गांव 120 ढोकरा कारीगरों का घर है । गांव में घूसते ही आपको भूख से रोते दुबले-पतले बच्चे, मिट्टी के ढांचे को आग में तपाते-तपाते आधी झुलसी हुई औरतें और मिट्टी के खिलौनों पर पीत्तल जड़ते बूढ़े नजर आएंगे । आपको यहां कम युवा नजर आएंगे । इसका कारण गांव के कुछ बुजुर्ग बताते हैं
ढोकरा कला
ढोकरा कला
कि 'ढोक्रा कारीगरी में मेहनत बहुत है लेकिन उस हिसाब से पैसे नहीं मिलते । इसीलिए गांव के युवक बाहर जाकर मजदूरी करते हैं '।

विस्थापन का भयंकर नतीजा - 

1956 में संबलपुर का जामपाली गांव इन कलाकारों का घर था । हीराकुद बांध परियोजना के कारण आधे से ज्यादा परिवार विस्थापित हो गए। बाद में वे खानाबदोश बन कर छत्तीसगढ़ चले गए। इसके बाद इन लोगों को बहुत संघर्ष करना पड़ा । अब वे सभी ढोकरा कलाकार हैं। उन्होंने कई पुरस्कार जीते हैं लेकिन इनकी कारीगरी बस उनके गांव तक ही सीमित है ।  इस गाँव से सात-सात कलाकारों को ढोकरा कला में अपने योगदान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है । इसके अलावा सात कलाकारों 16 कलाकारों को ओडिशा सरकार से कई पुरस्कार मिले हैं। एक महिला ढोकरा कलाकार धानमति झरा ने 2003 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता है । 

पुरस्कार रोटी नहीं दे सकता - 

धनमति झरा कहती हैं कि मैं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने के बाद भी खुश नहीं हूं क्योंकि हम जिस समस्या का सामना कर रहे हैं, एक पुरस्कार हमारी समस्या का समाधान नहीं कर सकता है। यह हमारे परिवार के लिए रोटी कमाने में हमारी मदद नहीं कर सकता ''। ढोकरा कलाकार ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने उन्हें कभी भी कोई मंच नहीं दिया है और न ही कोई समर्थन दिया है ताकि वे अपने उत्पादों को बाहर बेच सकें। छत्तीसगढ़ सरकार ने रायगढ़ में उनके लिए 'झरा कला और एम्पोरियम ’नामक एक कार्यशाला की स्थापना की है लेकिन यह एम्पोरियम उनके लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि यह उनके गांव में नहीं है। कभी-कभी कुछ दलाल अपने उत्पादों को बहुत सस्ते मूल्य में खरीदते हैं और उन्हें उच्च मूल्य में बेचने का आरोप कारीगरों ने लगाया है ।

रामलाल झरा
रामलाल झरा
गांव के अन्य कारीगर रामलाल झरा ढोकरा कला में अपने योगदान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने ढोकरा कला के रूप में 'रामायण' की कहानी बनाई थी। उन्होंने हांग कांग, इटली, जापान में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और अपने काम को प्रदर्शित किया है। रामलाल कहते हैं,   'हम विभिन्न प्रदर्शनियों में अपने कामों को बेचने के लिए मुंबई, दिल्ली जाते हैं। इस प्रक्रिया में टिकट खरीदने पर हम अपने लाभ का 40% निकालते हैं जो हम अपने कामों को बेचने के बाद कमाते हैं। अगर सरकार कम से कम हमारे यात्रा खर्च को वहन कर सकती है तो इस समस्या का  ’हल हो जाता  ' ।

हम ओडिया हैं - 

एक अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कलाकार गोविंदा झरा कहते हैं, '' हीराकुद बांध परियोजना के कारण हमें ओडिशा छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था लेकिन हम दिल से ओडिया हैं। हम ओडिशा सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह ढोकरा कला और कलाकार को बढ़ावा देने के लिए कुछ पहल करे। '

इस मामले में हमने झारसुगुड़ा के जिला ग्रामीण विकास एजेंसी के परियोजना निदेशक सत्यनाथ दास से बात की। वह कहते हैं,  'हाल ही में हमने समुदाय के विकास के लिए कई पहल की हैं। हम उनकी हरसंभव मदद कर रहे हैं लेकिन उन्होंने कभी भी ढोकरा से जुड़ी किसी चीज की मांग नहीं की। भविष्य में अगर हमें ऐसी शिकायत मिलती है तो हम निश्चित रूप से उनकी मदद करेंगे ''।




- हृषिकेश मिश्र

COMMENTS

Leave a Reply: 3
  1. मांस मदिरा इनकी निर्धनता का कारण है कमाई से मदिरा का सेवन पहले भोजन बाद में करेंगे ये..... जब पैसे समाप्त हो जाते हैं तब किलो के भाव में बेच देते हैं इन कलाकृतियों को
    घर में पड़ी हुई ये कलाकृति पांच दस...... किलो के भाव में क्रय की हुई..... घर बुलाओ तो घर आ जाते हैं अतंराष्ट्रीय पुरष्कार का प्रमाणपत्र लेकर.....कहते और चाहिए..... ?


    छग के १०० दरिद्रों में ८० ये उड़िया हैं जो भाग कर यहाँ आ बसे हैं..... १० टाइल्स वाले घर में रहते हैं निर्धन रेखा के नीचे में नाम लिखा रखा है शासकीय योजनाओं का लाभ लेने के लिए.....२ बिहारी है शेष बिहारी कमा कमा के २० वर्षों में ऊँचे भवन वाले हो गए हैं यहाँ.....

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  2. पीतल धातु की कलाकृतियां हैं ये.....

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  3. BAHUT ACHA LEKH HAI . PADHNE KEY BAD IN KALAKARON KI DURDASHA KI JANKARI MILI.

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