दसवाँ आदमी

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दसवाँ आदमी ठंड की उस रात में हम सब बरामदे में अलाव के इर्द-गिर्द बैठ कर एक-दूसरे को कहानियाँ सुना रहे थे । रात के बारह बज रहे थे । जब कोई बोलना बंद करता तो रात की नीरवता और गहरी हो जाती ।

दसवाँ आदमी


ठंड की उस रात में हम सब बरामदे में अलाव के इर्द-गिर्द बैठ कर एक-दूसरे को कहानियाँ सुना रहे थे । रात के बारह बज रहे थे । जब कोई बोलना बंद करता तो रात की नीरवता और गहरी हो जाती ।
“ आज यहाँ कहानी सुनाने वाला मैं दसवाँ और अंतिम आदमी हूँ । आप सब ने आज यहाँ जो कहानियाँ सुनाईं , वे सभी भूत-प्रेतों से जुड़ी थीं । लेकिन किसी कहानी ने मुझमें भय उत्पन्न नहीं किया । वह भय जो आपके रोंगटे खड़े कर दे । जो सर्द रात में आपके माथे पर पसीना छलका दे । जो डर के मारे आपकी कँपकँपी छुड़ा दे । जिसकी वजह से आपकी घिग्घी बँध जाए । ऐसा नहीं है कि मुझे डर नहीं लगता । बरसों पहले मेरे साथ एक ऐसा वाक़या हुआ था जिसने मुझे भीतर तक भयभीत कर दिया था । आज मैं आप सबको वही घटना सुनाता हूँ , “ सफ़ेद
डाक बंगला
बालों वाले उस बूढ़े ने अपनी बात की शुरुआत ऐसे की । वह भारी आवाज़ वाला एक लम्बा आदमी था । बुढ़ापे में भी उसकी मज़बूत क़द-काठी देख कर सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता था कि अपनी जवानी में वह बेहद बलशाली रहा होगा । उसने नीले रंग का डेनिम का जैकेट और नीले रंग की ही जीन्स पहनी हुई थी ।
“ बात तब की है जब मैं छब्बीस साल का था , “ बूढ़े ने आगे कहना शुरू किया । “ मैं दिल्ली के डी.ए.वी.कॉलेज में लेक्चरर के पद पर काम कर रहा था । उसी साल गर्मी की छुट्टियों में जून के पहले हफ़्ते में मैं और मेरे दो अन्य अविवाहित सहकर्मियों ने हिमाचल प्रदेश में गुशैनी घूमने जाने का मन बनाया । नियत दिन हम टैक्सी ले कर सुबह छह बजे दिल्ली से निकल पड़े और चंडीगढ़ , बिलासपुर , मंडी होते हुए उसी रात आठ बजे गुशैनी में हिमालयन गेस्ट हाउस पहुँच गए जहाँ हमने अगले चार दिन अपने ठहरने की बुकिंग करवाई हुई थी ।
“ अगले दो दिन हमने प्रकृति की गोद में अच्छा समय बिताया । चारों ओर पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ एक छोटा-सा सुरम्य गाँव था गुशैनी । घाटी में तीर्थन नदी बहती थी जिसके ठंडे पानी में मछलियाँ पकड़ने का अपना ही आनंद था । हमने पहाड़ पर और जंगल में ट्रेकिंग भी की । शुरू से ही मेरी रुचि साहित्य में भी रही है और मुझे पढ़ने-लिखने का शौक़ भी रहा है । इस ट्रिप में मैं अपनी कुछ मनपसंद किताबें भी साथ लाया था । मनोरम दृश्यों के बीच गुनगुनी धूप में ‘ हैमक ‘ पर लेट कर अपने पसंद के लेखकों की किताबें पढ़ने का मज़ा ही कुछ और होता है ।
“ दो दिनों के बाद मेरे सहकर्मियों ने तय किया कि वे अगले कुछ दिन मनाली में बिताएँगे । चूँकि मुझे यहीं मज़ा आ रहा था , इसलिए मैंने उनको विदा किया । रात का खाना खा कर मैं अपने कमरे में पहुँचा । कुछ दिनों से एक कहानी मेरे मन में कुलबुला रही थी । उस दिन समय मिला तो मैंने सोचा कि क्यों न आज रात यह कहानी लिख ली जाए ।
“ रात के दस बज रहे थे । उस छोटे-से पहाड़ी गाँव में सन्नाटा पसरा हुआ था । कभी-कभार दूर कहीं किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ सन्नाटे को चीरती हुई गुज़र जाती और फिर सन्नाटा गहरा हो जाता ।
“ मैं कमरे के कोने में पड़ी मेज़ और कुर्सी के पास पहुँचा । वहीं पड़े अपने बैग में से मैंने कुछ ख़ाली काग़ज़ और बॉल-पेन निकाल ली ताकि बैठ कर ज़हन में मौजूद कहानी लिख सकूँ । तभी कमरे के दूसरे कोने में पड़ा टी.वी. अपने-आप ऑन हो गया । मैंने रिमोट से उसे बंद कर दिया । कुर्सी खींच कर मैं बैठ गया और कुछ लिखना शुरू ही करने वाला था कि टी.वी. एक बार फिर अपने-आप ऑन हो गया । मुझे कुछ हैरानी हुई । यह क्या मैलफंक्शनिंग हो रही है — टी. वी. को दोबारा रिमोट से बंद करते हुए मैंने सोचा । किंतु कुछ ही सेकेंड बाद टी.वी. फिर से अपने-आप ऑन हो गया । मुझे ग़ुस्सा आ गया । झुँझलाते हुए मैं कुर्सी से उठ कर टी.वी. तक पहुँचा । टी.वी. का मुख्य स्विच ऑफ़ करके मैंने टी.वी. का प्लग सॉकेट में से निकाल कर बाहर रख दिया । चैन की साँस लेकर मैं दोबारा कुर्सी पर बैठा और कहानी लिखने के बारे में विचार करने लगा ।
“ लेकिन कुछ ही पलों के बाद टी.वी.फिर से अपने-आप ऑन हो गया । अब मैं आप सबसे झूठ नहीं बोलूँगा । इस बार मैं थोड़ा सहम गया । आख़िर यह हो क्या रहा था ? क्या यह कमरा भुतहा था ? अ हॉन्टेड
प्लेस ?
“ इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता , टी.वी.पर मेरे ही कमरे का समूचा दृश्य आने लगा । वहाँ टी.वी.स्क्रीन पर कमरे में कुर्सी पर बैठा मैं भी मौजूद था । मैं थोड़ा घबरा गया । रात के इस पहर में कमरे में मेरे अलावा और कोई मौजूद नहीं था । उस ज़माने में भारत में सी.सी.टी.वी. कैमरा टेक्नॉलॉजी के बारे में किसी ने नहीं सुना था , न ही यह टेक्नॉलॉजी देश में उपलब्ध थी । फिर मेरे कमरे का समूचा दृश्य उस टी.वी.स्क्रीन पर कैसे दिख रहा था ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ।
“ टी.वी.स्क्रीन पर कमरे में बैठा मैं भी दिख रहा था । क्या वह मैं ही था या मेरा कोई हमशक़्ल था , कोई समरूप या प्रतिरूप था ? मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि तभी टी.वी.में मौजूद मेरे प्रतिरूप ने पलट कर मेरी ओर देखा और मुझे एक कुटिल मुस्कान दी । मैं भीतर तक सिहर गया । वहाँ टी.वी. स्क्रीन पर जो कोई भी मौजूद था , वह ‘ मैं ‘ तो क़तई नहीं था । मेरा वह प्रतिरूप कौन था ?
“ अचानक टी.वी. स्क्रीन पर मौजूद मेरे प्रतिरूप ने दोबारा मेरी ओर मुड़कर एक विकृत मुस्कान दी और उसने अपने हाथ में क़लम पकड़ ली और कुछ लिखने का उपक्रम करने लगा । मैं तब सन्न रह गया जब मैंने पाया कि मेरी मर्ज़ी के बिना मेरे हाथ ने भी मेज़ पर रखी क़लम पकड़ ली और मेरा हाथ भी कुछ लिखने का उपक्रम करने लगा । यानी टी.वी.स्क्रीन पर मौजूद मेरा वह प्रतिरूप जैसे मुझे नियंत्रित करने का प्रयत्न कर रहा था ।
“ मुझे काटो तो ख़ून नहीं । मेरे रोंगटे खड़े हो गए । माथे पर पसीना छलक आया । डर के मारे मैं अपनी जगह पर जड़ हो गया । तभी टी.वी.स्क्रीन पर मौजूद मेरे प्रतिरूप ने पलट कर मेरी ओर देखा और अट्टहास कर उठा । मैंने भी अपनी मर्ज़ी के बिना स्वयं को अट्टहास करता हुआ पाया । तब मैं समझ गया कि मुझे इस असाधारण नकारात्मक शक्ति के चंगुल से निकलना होगा । अपनी पूरी ताक़त बटोर कर मैंने मेज़ पर रखा पेपर-वेट उठाया और उसे ज़ोर से टी.वी. स्क्रीन पर दे मारा । उधर टी.वी.स्क्रीन चटका , इधर बदहवास-सा मैं कमरे से बाहर भागा ।
“ मेरे पास मनाली चले गए मेरे सहकर्मियों के कमरों की चाबियाँ मौजूद थीं । काँपते और गिरते-पड़ते हुए मैं उन में से एक कमरे में घुसा और बिस्तर पर पड़ा कम्बल ओढ़ कर हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए किसी तरह सो गया ।
“ अगली सुबह मेरी नींद आठ बजे खुली । धूप निकल आई थी और बाहर पेड़ों पर चिड़ियाँ चहचहा रही थीं । लेकिन कल रात की घटना मेरे ज़हन में जैसे छप गई थी । मैं सीधा गेस्ट हाउस के मालिक के पास पहुँचा और मैंने कल रात का सारा वाक़या उन्हें सुनाया । लेकिन उन्होंने यह सब मानने से साफ़ इंकार कर दिया ।
“ ऐसा हो ही नहीं सकता । आपने ज़रूर रात में कोई बुरा सपना देखा होगा । “ उन्होंने कहा ।
“ मैं सच कह रहा हूँ । कल रात यह सारी घटना ऐसे ही घटी थी । “ मैंने उनकी बात का खंडन
किया ।
“ मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आपके कमरे का टी.वी. तो पिछले एक हफ़्ते से ख़राब पड़ा हुआ है । पिछला गेस्ट जब जा रहा था तब उसने उसी कमरे के टी.वी. के नहीं चलने की शिकायत की थी । मैं उसके बारे में भूल ही गया इसलिए मैं उसे ठीक नहीं करवा सका । दूसरी बात यह है कि किसी तकनीकी ख़राबी की वजह से कल शाम छह बजे से यहाँ टी.वी.पर कोई प्रसारण नहीं आ रहा है । ऐसे में कल रात आपका टी.वी.कैसे चलने लगा और आपने उसमें अजीब-सी चीज़ें कैसे देख लीं ? “ गेस्ट हाउस के मालिक ने कहा ।
“ उनकी बात सुन कर मैं हतप्रभ रह गया । आख़िर पिछली रात मैंने अपने कमरे के टी.वी. स्क्रीन पर क्या देखा था ? इतना तो तय है कि वह कोई भूत-प्रेत नहीं था । क्या वह मेरा ही कोई शैतानी समरूप था ? या मेरा मतिभ्रम ? या मेरे बेचैन और अशांत मन की उपज ? या समय और काल में कोई गुप्त पोर्टल खुल गया था जिस में से होकर किसी वैकल्पिक समानांतर ब्रह्मांड की शैतानी छवियाँ मुझ तक पहुँच रही थीं ? आप सब यक़ीन मानिए , यदि आपका समरूप या प्रतिरूप आपकी मर्ज़ी के बिना आपको नियंत्रित करने लगे तो आप सब भी उतना ही डर जाएँगे जितना मैं उस रात डर गया था ।
“ एक बात और । यदि आप मेरे घर आएँगे तो आप पाएँगे कि मेरे घर में कोई टी.वी. नहीं है । आज के युग में बिना टी.वी. के रहना आसान नहीं है , लेकिन बरसों पहले घटी उस भयावह घटना के बाद मैं टी.वी. नहीं देख पाता हूँ । डर क्या होता है , यह उस रात मुझे पता चल गया था ... ।” इतना कह कर बूढ़ा उठा और चुपचाप चल दिया । हम सब अवाक्-से उसे दूर जाता हुआ देखते रहे ।

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प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ.प्र.)
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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दसवाँ आदमी
दसवाँ आदमी ठंड की उस रात में हम सब बरामदे में अलाव के इर्द-गिर्द बैठ कर एक-दूसरे को कहानियाँ सुना रहे थे । रात के बारह बज रहे थे । जब कोई बोलना बंद करता तो रात की नीरवता और गहरी हो जाती ।
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