आखिरी सवाल

SHARE:

आखिरी सवाल मेरे प्रिय, आपको याद है वो नीम का पेड़ वही जो आपके घर के आस पास है जिसके चारो तरफ आप बचपन में लुका छिपी खेले होगें और यौवन में मेरे साथ उसी नीम की छाया में और उसी मध्य रात्रि में शब्दों और भावनाओं की दुनिया बसायी थी!

आखिरी सवाल



मेरे प्रिय,
             आपको याद है वो नीम का पेड़ वही जो आपके घर के आस पास है जिसके चारो तरफ आप बचपन में लुका छिपी खेले होगें और यौवन में मेरे साथ उसी नीम की छाया में और उसी मध्य रात्रि में शब्दों और भावनाओं की दुनिया बसायी थी!
कितने साल गुजर गये हमें एक दूसरे से अंजान हुए,
शायद आप अपनें जीवन के संघर्ष में मुझें भूलना चाहा होगा,
क्योंकि मैं भी तो एक व्यथा की दुनिया बना ली थी आपसे अंजान होकर!
लेकिन देखिए आज हम फिर एक दूसरे के सामने आ गये,
पर्दा और दीवार ही सही लेकिन चार इंच की दूरी से हम एक दूसरे से होकर गुजर जाते है!
फिर भी हमारे दिल की धड़कन जुबां के बदले बात करती है,
आंखों को क्या कहूं ये बेचारा मजबूर है आपको सामने पाकर भी नही देख पाता है!
मगर आज मैं बहुत फूरसत में उसी दुःख को महसूस कर रहा हूं जब आखिरी बार मैंने आपके सवालों का जवाब दिया था!
उसी नीम के छाया में जहां से हम दोनों वक्त के आगोश में खो गये थे!
मैं उन्हीं सवालों और जवाबों के सिलसिलाओं को यहां लिख रहा हूं हो सके तो इन्हें आंसुओं के साथ नही बल्कि चेहरे पर मुस्कुराहट ला कर इसको पढ़ लीजिएगा!
शायद कुछ छण के लिए मैं और आप उसी वक्त में...
आपका सवाल..."देव" देखो हमारे मिलन का साज ये नीम के पत्ते भी गा रहे है,
सुनो देव अर्ध्द रात्रि में कितना मधुर लग रहा है न,
देव सुन रहे हो न ?
तुम आज दुःखी क्यों लग रहे हो यह खामोशी कैसी?
मेरा जवाब...प्रिये आज मैं आधि और व्याधि में फंस गया हूं जिससे बाहर आना मेरे लिए संभव नही!
आपका सवाल...देव यह आधि और व्याधि क्या है?
मेरा जवाब...तुमसे अलग होने का मानसिक कष्ट आधि है,
संघर्ष करने के लिए जिस शारीरिक कष्ट से गुजर रहा हूं वो व्याधि है प्रिये!
आपका सवाल...देव मेरा प्रेम क्या है?
मेरा जवाब...अलौकिक!
आपका सवाल...अलौकिक क्या होता है देव?
आखिरी सवाल
मेरा जवाब...जो संसारिक न हो!
आपका सवाल...देव तुम मेरे विचारों को कैसे अपनाओगे?
मेरा जवाब...अनुयायी बनकर!
आपका सवाल...अनुयायी किसे कहते है देव?
मेरा जवाब...किसी के विचारों को मानने वाला!
आपका सवाल...मेरे बातो को कहां संजो के रखोगे देव !
मेरा जवाब...चित्त में!
आपका सवाल...चित्त का अर्थ क्या है देव?
मेरा जवाब...स्मृति में!
आपका सवाल...देव तुम मुझें कहां जिंदा रखना चाहते हो?
मेरा जवाब...हृदय में!
आपका सवाल...हृदय में क्यों देव?
मेरा जवाब...हृदय मनोविकार से परे होता है जैसे किसी बच्चे की तरह निश्छल!
आपका सवाल...यह मन क्या होता है देव?
मेरा जवाब...मन तो तर्क वितर्क करने वाली ज्ञानेद्रिय है प्रिये इसलिए आपको मैं हृदय में रखना चाहूँगा क्योंकि आप तर्क वितर्क से दूर हो यही मेरी प्रार्थना है!
आपका सवाल...प्रार्थना क्यों देव?
मेरा जवाब...किसी कार्य के हेतू विनम्र इच्छा ही प्रार्थना है!
आपका सवाल...देव इच्छा क्या है?
मेरा जवाब...किसी वस्तु के प्रति मन का भाव प्रिये!
आपका सवाल...तुम्हारी कोई इच्छा है देव?
मेरा जवाब...मुझे इच्छा नही उत्कंठा है प्रिये!
आपका सवाल...यह उत्कंठा क्या है देव?
मेरा जवाब...प्रतिक्षायुक्त प्राप्ति की तीव्र इच्छा जैसे इस समय मुझे है तुम्हारे लिए प्रिये!
आपका सवाल...देव मैं अगर तुम्हारी हो जाऊंगी तो तुम्हें संतोष मिल जायेगा?
मेरा जवाब...मुझे संतोष नही तृप्ति चाहिए प्रिये!
आपका सवाल...भला संतोष और तृप्ति में क्या अंतर है देव?
मेरा जवाब...संतोष किसी वस्तु से भी मिल सकता है, तृप्ति इच्छा पूर्ति से उत्पन्न शक्ति भाव है प्रिये,ठीक उसी तरह जैसे आशा और कामना !
आपका सवाल...क्या यह आशा और कामना दोनों अलग अलग भाव है देव?
मेरा जवाब...आशा प्राप्ति की संभावना है जैसे मुझे तुम्हारे लिए है प्रिय,और कामना मन की साधारण इच्छा!
आपका सवाल...क्या तुम्हें मुझसे आसक्ति है या अनुराग! देव?
मेरा जवाब...मुझे आप से अनुराग है प्रिये आसक्ति नही !
आपका सवाल...अनुराग और आसक्ति में क्या अंतर है देव?
मेरा जवाब...अनुराग व्यक्ति पर शुद्धाभाव से मन केन्द्रित करना है,और आसक्ति मोह से ग्रसित प्रेम को कहते है प्रिये!
आपका सवाल...देव हमारे अनुराग को कहां रखोगे?
मेरा जवाब...अन्तःकरण में प्रिये!
आपका सवाल...अन्तःकरण में क्यों देव?
मेरा जवाब...अन्तःकरण विशुद्ध मन की विचार जनित शक्ति है प्रिये और यही मेरी अभिलाषा है!
आपका सवाल...अभिलाषा क्या है देव?
मेरा जवाब...किसी विशेष वस्तु की हार्दिक इच्छा प्रिये लेकिन देखो कितना विषाद में डूबा हूं!आज से तुम मुझसे फासलों पर भी नही दिख पाओगी!
आपका सवाल... विषाद क्यों है तुम्हें देव?
मेरा जवाब...घोर दुःखी होने के कारण समझ में न आना क्या करूं क्या नही लेकिन आप जहां जाये वहां खुश रहे वक्त के पंखो पर अपना नाम,जमीर सलामत रखना मेरा क्या है मैं ताउम्र आपकी पूजा करता रहूंगा जो आप मन मंदिर दे गये थे आपकी सिसकी आज भी मुझे याद है शायद आप को याद न हो और याद होना भी नही चाहिए सिसकियों में ही दबी आखिरी सवाल पूछा थाआपनें ! सवाल था...पूजा क्या होती है देव?
और मैनें आखिरी जवाब दिया था आपको याद है?
जवाब था...बिना किसी वस्तु सामग्री के भक्तिपूर्ण प्रार्थना ही पूजा कहलाती है!
रोते हुए आप मुझसे ओझल हुई थी!
तो प्रिये क्या तुम्हें मेरा कोई सवाल याद है अगर याद है तो लिख भेजना पता तो आप को याद ही है वही नीम का पेड़ और मध्य रात्रि! इंतजार रहेगा..... 
आपका देव!





यह रचना राहुलदेव गौतम जी द्वारा लिखी गयी है .आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है . आपकी "जलती हुई धूप" नामक काव्य -संग्रह प्रकाशित हो चुका  है .
संपर्क सूत्र - राहुल देव गौतम ,पोस्ट - भीमापर,जिला - गाज़ीपुर,उत्तर प्रदेश, पिन- २३३३०७
मोबाइल - ०८७९५०१०६५४

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका