राजा का विवाह

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राजा का विवाह एक राजा था .वह भगवान का बड़ा ही भक्त था .प्रजा पर वह प्रेम करता था .एक दिन अपने महल की छत पर बैठा हुआ था .उसी समय उसे कुछ तोते आकाश में उड़ते हुए दिखाई दिए .उनमें से एक लंगड़ा था .वह उन सबके साथ न उड़ सकता था .

राजा का विवाह 


एक राजा था .वह भगवान का बड़ा ही भक्त था .प्रजा पर वह प्रेम करता था .एक दिन अपने महल की छत पर बैठा हुआ था .उसी समय उसे कुछ तोते आकाश में उड़ते हुए दिखाई दिए .उनमें से एक लंगड़ा था .वह उन सबके साथ न उड़ सकता था .उसने अपने साथियों से थोड़ी देर के लिए ठहर जाने की विनय की .उसने उन्हें
राजा का विवाह
राजा का विवाह 
भगवान् की कसम भी रखाई ,पर वे न ठहरे .अंत में उसने उन्हें समुद्र की परी की कसम रखाई .अब की बार वे ठहर गए .लंगड़ा सुआ उनके साथ हो गया .

जब तोते चले गए तब राजा अपने मन में सोचने लगा :ईश्वर सबसे बड़ा है .उसी ने सारे संसार को बनाया है .उसकी शपथ रखाने पर सूए ठहरे नहीं .परन्तु समुद्र की परी की कसम रखाने से वे ठहर गए .जरुर समुद्र की परी ईश्वर से बड़ी होगी .ऐसा सोचा उसने अपने मन में उसे पाने का विचार का लिया .एक दिन उसने अपना राजपाट अपने मंत्री को सौंप दिया और राहखर्च के लिए कुछ हीरे - जवाहर लेकर स्वयं उसकी खोज करने को राजधानी से रवाना हुआ . 

एक दिन वह एक दूसरे बादशाह की राजधानी से गुजर रहा था .वहाँ उसने देखा कि एक मनुष्य को फाँसी दी जा रही  है .पूछने पर मालूम हुआ कि वह मनुष्य जिसे फाँसी दी जा रही है ,वह चोर है .राजा को उस पर दया आ गयी .उसने फाँसी देने वालों को कुछ हीरे देकर उसकी जान बचाने के लिए कहा .वे उसकी बात मान गयी .वह मनुष्य छोड़ दिया गया .उसका नाम दिलावर था .छोड़ दिए जाने वह राजा के पास आया और बोला - "महाराज ,आपने मेरी जान बचायी है .मैं आपकी दया को जन्म भर नहीं भूल सकता .आज से मैं आपका दास हूँ .ऐसा कहकर वह राजा के साथ हो गया . 

राह में दिलावर ने राजा से पूछा :"महाराज ! आप कहीं जा रहे हैं ?" राजा ने कहा "- मैं समुद्र की परी को खोज में जा रहा हूँ .दिलावर बोला "आप राजा हैं ,,आप यही ठहरे .यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं उसकी खोज कर लाऊं ."

ऐसा कहकर वह राजा से राह खर्च के लिए कुछ हीरे लेकर वहाँ से चला गया .रास्ते में उसने एक उड़न - खटोला ख़रीदा .उसमें बैठकर वह आकाश की राह से जाने लगा .जब वह एक जंगल के ऊपर से उड़ा जा रहा था तब रास्ते में उसने देखा कि एक साँप ने अपनी मणि पेड़ के पास रख दी है .उसने अपने उड़न - खटोले को वहीँ उतार दिया .सांप को मारकर उसने वह मणि उठा ली और फिर उड़न - खटोले पर सवार होकर आगे बढ़ गया .उस मणि में एक विशेषता थी .उसकी सहायता से मनुष्य जब चाहे अपना रूप बदल सकता था .उड़ते - उड़ते दिलावर समुद्र के किनारे पहुँचा .वहाँ उसने एक मछली का रूप धारण कर लिया .मछली बनकर वह समुद्र की परी के यहाँ गया .वह हीरों के एक सिंहासन पर बैठी थी .परियाँ नाच कर रही थी .दिलावर ने वहां पहुंचकर उस मणि की सहायता से उसे भी मछली बना दिया .उसे बाद वह उसे लेकर समुद्र के किनारे आ गया .समुद्र की परी को अब उसने मैना बना दिया .फिर वह उड़न - खटोले में बैठकर राजा के पास पहुंचा . 

राजा तो उसकी बाट देख ही रहा था . राजा के पास पहुंचकर दिलावर ने समुद्र की परी को फिर उसके पुराने रूप में कर दिया .उसे देखकर राजा बड़ा ही खुश हुआ .दिलावर को उसने अपना मंत्री बना लिया .कुछ समय राजा का विवाह समुद्र की परी के साथ हो गया .वे दोनों सुख से रखने लगे .बच्चों ! दुःख में सहायता करने वाले को सुख में भूल नहीं जाना चाहिए . 


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