सास बहू

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सास बहू घर का कुआँ था और घर की बहू थी, जब सास से झगड़ती कुए में कूदने की धमकी दे देती । तीन बार कूदी बचा ली गयी । मजे की बात ये थी बचाने वाला कितनी भी देर से आया हो वह डूबी कभी नहीं । हालाकि तीनों बार ही बचाने वाला उसका पति ही था ।

सास बहू


घर का कुआँ था और घर की बहू थी, जब सास से झगड़ती कुए में कूदने की धमकी दे देती । तीन बार कूदी बचा ली गयी । मजे की बात ये थी बचाने वाला कितनी भी देर से आया हो वह डूबी कभी नहीं । हालाकि तीनों बार ही बचाने वाला उसका पति ही था ।
सास बहू
सास बहू
रुकमा की शादी 18 वर्ष में देवी लाल से हो गयी थी। शादी के एक साल बाद हीरालाल पैदा हुआ था । हीरा जब अठारह का हुआ तो उसका ब्याह लच्छी से कर दिया और इस प्रकार 37 वर्ष की आयु में वो सास बन गयी थी ।
सभी सास बहुओं का कभी न कभी झगड़ा होता है। इस घर का झगड़ा विशेष था । दो वर्ष पूर्व लच्छी का ब्याह रुकमा के बड़े बेटे हीरा लाल से हुआ था । ब्याह के इस घर में आने पर रुकमा ने उसके सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया था ‘दूधों नहाओ पूतों फलो’। दो साल में लच्छी को तो कुछ न हुआ । रुकमा पेट से हो गयी थी। चौथा महिना चल रहा था ।
इस घर की इकलौती बहू वही थी । उसके बारह और चौदह साल के दो देवर और दस साल की एक नन्द थी। घर के काम का सारा बोझ उसी के सर आ पड़ा था। उस पर सास की फर्माइशें , ‘लच्छी आज ये खाने का मन है।आज वो बना दे। ’लच्छी ये सोच के और चिड़ती कि जो ठाठ उसके होना चाहिये थे, उस ठाठ के मजे उसकी सास ले रही थी।
कभी कभी बात बेबात अपने पति हीरालाल से भी लड़ बैठती। जिद करती उसे किसी डाक्टरनी को दिखा लाये। हीरालाल टाल मटोल करता। एक दिन बात बढ़ गयी और लच्छी जाकर कुए में कूद गयी। पहली बार जब कूदी थी तो हीरालाल उसे बचाने खुद ही कूद गया था और हीरालाल के पिता देवी लाल और छोटे भाइयों ने मिलकर निकाला था। अबकी बार वो इत्मीनान से चलता हुआ कुए की जगत पे पहुंचा। कुए में दो तीन मीटर गहराई पर ही पानी था। हीरालाल ने कुए में झांक कर देखा तो पाया लच्छी कुए की दीवार से थोड़ी बाहर निकली हुई ईंट को पकड़े लटकी थी। उसका आधा बदन पानी में डूबा हुआ था । उसने रस्सी फेंकी तो लच्छी ने पकड़ ली । दो तीन हाथ रस्सी खींचने में ही वह झूलती हुयी ऊपर आ गयी । हीरालाल ने दायें हाथ में रस्सी लपेटी और थोड़ा कुए के ऊपर झुककर बायें हाथ से लच्छी को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। लच्छी हीरालाल के कंधे पकड़ के लटक गयी। हीरालाल ने उसे जमीन पर खड़ा किया तो वह चुपचाप अपने कमरे में चली गयी। कहने को इतना बड़ा कांड हो गया किसी को पता नहीं चला । रात का समय था । सब या तो सो रहे थे या बेफिक्र थे । कोई उठकर नहीं आया था।
हीरालाल कमरे में जाकर चुपचाप पलंग पर लेट गया। लच्छी कपड़े बदल कर आयी और हीरा के बगल में लेट गयी।
थोड़ी देर बाद वह बोली, “तुम चाह रहे थे क्या हम कुए में डूब जायें?
हीरालाल ने पूछा, “हम क्यों चाहेंगे?
लच्छी ने कहा, “ फिर देर क्यों लगायी आने में ?
हीरालाल ने कहा, “हमें पता है कि इतनी देर में तुम डूब नहीं सकतीं?”
लच्छी ने पूछा, “क्यों नहीं डूब सकते?”
रवि रंजन गोस्वामी
रवि रंजन गोस्वामी
हीरालाल लाल ने कहा, “शादी के पहले हम चुपके से तुम्हें देखने तुम्हारे गाँव आये थे और तुम्हें नदी में कूदते और तैरते देखा था।
लच्छी शर्मा के बोली, “हे भगवान, तुम्हें सब पता है।”
और उसने करवट लेकर हीरालाल के सीने में अपना चेहरा छुपा लिया।
अचानक उसका जी मितलाने लगा । वो तुरंत उठकर पलंग की पाटी पर बैठ गयी ।
हीरालाल ने चौंक कर पूछा, “क्या हुआ?”
उससे तुरन्त जवाब देते नहीं बना । उसे दो तीन बार उल्टियाँ हुयीं ।
हीरा की माँ को आहट मिल गयी थी । वे एक लोटा नीबू की शिकंजी लेकर हीरा के कमरे पर चली आयी ताजी हवा के लिये हीरा ने कमरे का दरवाजा पहले ही खोल दिया था । रुकमा अंदर आयी और बहू के हाथ पकड़े और सिर और पीठ पर हाथ फेरा। थोड़ी शिकंजी पिलायी ।
फिर वो हीरा से बोली, “घबड़ाने की कोई बात नहीं है । अच्छी खबर है। सबेरे बहू को डाक्टरनी को दिखा लाना ।”
दूसरे दिन डाक्टरनी साहिबा ने भी पक्का कर दिया कि लच्छी माँ बनने वाली है। लच्छी खुश थी साथ ही सास और बहू अब सखियाँ बन गयीं थीं ।




- रवि रंजन गोस्वामी
कोचीन 
मोबाइल -9895596826

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