मकर संक्रांति पूजन, व्रत की सम्पूर्ण विधि व् नियम

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मकर संक्रांति पूजन, व्रत की सम्पूर्ण विधि व् नियम
Makar Sankranti Puja Vidhi or Vrat or Daan


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मकर संक्रान्ति
मकर संक्रान्ति
दान पुण्य का महत्व |Makar Sankranti Vrat, Pujan Vidhi&Importance of Daan Punya|Surya Utrayan, Pongal, Kichhdi, Bihu -
मकर संक्रांति व्रत कथा भारतीय ज्योतिष के अनुसार सूर्य की बाहर राशियाँ मानी गयी हैं - मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कर, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन। जब सूर्य का प्रवेश मकर राशि में होता है, तब ‘मकर संक्रांति' होती है। वैसे तो संक्रान्ति प्रत्येक मास में होती है, किन्तु मकर और कर्क राशियों का संक्रमण विशेष महत्वपूर्ण होता है। यह दोनों संक्रमण छ:-छ: महीने के अन्तर से होते हैं। मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरायण और कर्क।संक्रांति से दक्षिणायन हो जाता है। उत्तरायण में दिन बड़ा होता है और रात छोटी। दक्षिणायन में रात बडी और दिन छोटा होता है। कहा जाता है कि यशोदाजी ने इस दिन कृष्ण के जन्म के लिए व्रत किया था।

मकर संक्रांति के व्रत का विधान बहुत सरल है। धर्म ग्रन्थों में लिखा है कि मकर संक्रांति के दिन प्रात:काल तेल, उबटन से स्नान करना चाहिए। तिल के तेल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाकर, तिल से होम करना, तिल का जल पीना, तिल से बने  पदार्थ खाना और तिल का दान देना-ये छ: कर्म तिल से ही होने का विधान है।चन्दन से अष्टदल कमल बनाकर उसमें सूर्य नारायण की मूर्ति स्थापित करके उनका आवाहनादि करके विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।

उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में मकर संक्रांति को खिचड़ी कहते हैं। इस दिन लोग है । खिचड़ी और तिल का दान करते हैं और खिचड़ी ही खाते हैं। महाराष्ट्र में विवाहित  लड़कियाँ इस दिन तेल, कपास, नमक आदि सौभाग्यवती स्त्रियों को देती हैं। सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपनी सहेली को हल्दी, रोली, तिल और गुड़ देती हैं। बंगाल में भी स्नान और दान की प्रथा है। पंजाब में यह पर्व लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। गंगा सागर में इस दिन बड़ा भारी मेला लगता है। इस महीने में घी और कम्बल देने का विशेष माहात्म्य है।


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