श्री कृष्ण रास लीला

SHARE:

श्रीकृष्ण रासलीला श्रीकृष्ण भक्ति में रासलीला एक लोकप्रिय साधन रासलीला के पात्रों में राधा-कृष्ण तथा गोपिकाएँ रहती है। बीच-बीच में हास्य का प्रसंग भी रहता है। विदूषक के रूप में ‘मनसुखा’रहता है, जो विभिन्न गोपिकाओं के साथ प्रेम एंव हँसी की बातें करके कृष्ण के प्रति उनके अनुराग को व्यंजित करता है।

श्रीकृष्ण भक्ति में रासलीला एक लोकप्रिय साधन 


श्रीकृष्ण भारत की पुण्य भूमि में अवतरित हुये थे। वे भगवान विष्णु के 8वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईष्ट ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। वह निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ , सोलह कलाओं एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनको द्वापरयुग युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार कहा जाता है। हिंदू धर्म के भीतर कृष्ण भक्ति  परंपरा का एक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय केंद्र रहा है, विशेषकर वैष्णव संप्रदायों में । कृष्ण के भक्तों ने लीला की अवधारणा को ब्रह्मांड के केंद्रीय सिद्धांत के रूप में माना जिसका अर्थ है दिव्य नाटक। यह भक्ति योग का एक रूप है, तीन प्रकार के योगों में से एक भगवान कृष्ण द्वारा भगवद गीता में चर्चा की है। 
ध्यान या कल्पना कीजिए कि आपके सामने श्रीकृष्ण एक छोटे से बालक के रूप में हैं, कमल के समान सुकोमल और विशाल नेत्र, वक्षरूस्थल पर श्रीवत्स और भृगुलता के चिह्न, कानों में झलमलाते हुए कुण्डल जिनकी प्रभा अरूणाभ कपोलों पर पड़ रही है, मुष्टिमेय कटि है। अर्थात् मुट्ठी में आ जाय इतनी कमर है उनकी, करधनी बँधी हुयी है, पाँवों में नूपुर हैं, हाथों में कंगन हैं, गले में बघनखा है, माथे पर तिलक है, सिर पर सुन्दर काले घुँघराले बाल हैं और अपनी मुस्कान से, चितवन से, हमारे मन को अपनी ओर खींच रहे हैं। उनके अंग-अंग से सौन्दर्य की रसधारा बह रही है। क्या इस ध्यान से आपको आनन्द नहीं आएगा ? 
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार आनन्द-प्रधान अवतार है।  इसलिए श्रीकृष्ण में आनन्द अधिक प्रकट हुआ है। यही कारण है कि वे लोगों की प्रीति को, आसक्ति को अपनी ओर अधिक खींचते हैं। जहां कृष्ण नाम का संकीर्तन होता है वहां से सब पाप-ताप तत्काल दूर भाग जाते हैं, तब स्वयं भगवान जहां पृथ्वी की पीड़ा मिटाने के लिए अवतीर्ण होते है। हमारे संतों ने सही कहा है कि दुख भोगना हो तो नरकों में जाओ, सुख भोगना है तो स्वर्ग में जाओ परन्तु इन दोनों से ऊंचा उठकर असली तत्त्व परमात्मा को प्राप्त करना है तो मनुष्य शरीर में आओ ।
दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभंगुर ।
तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठ प्रियदर्शनम् ।।
श्रीमद्भागवत के अनुसार यह मानव शरीर अत्यन्त दुर्लभ है । इसकी प्राप्ति के लिए बड़े-बड़े देवता भी ललचाते रहते हैं क्योंकि परमात्मा की प्राप्ति इस शरीर से ही संभव है बस करना केवल इतना ही है कि इसके लिए उत्कट (तीव्रतम) अभिलाषा अपने मन में जगानी होगी कि मुझे तो केवल यही चाहिए । इससे ही उस परम तत्त्व का दर्शन हो जाएगा क्योंकि परमात्मा तो सब जगह मौजूद है । गीता (8/14 ) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
अनन्यचेतारू सततं यो मां स्मरति नित्यश ।
तस्याहं सुलभरू पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन ।।
अर्थात् हे अर्जुन ! जो मनुष्य नित्य-निरन्तर अनन्यचित्त से मुझ परमेश्वर का स्मरण करता है, उस निरन्तर मुझमें लगे हुए योगी के लिए मैं सुलभ हूँ अर्थात् वह सुगमता से मुझे पा सकता है । गीता में केवल इसी एक श्लोक में भगवान ने ‘सुलभ’ शब्द का प्रयोग किया है । किसी वस्तु में मन न लगाकर भक्त जब जीवन भर अनन्य भाव से भगवान का चिन्तन करता है तब वह भगवान का वियोग सहन नहीं कर पाताय भगवान भी उसका वियोग सह नहीं पाते और स्वयं उससे मिलने की इच्छा करते हैं । गीता (4/11) में भगवान ने स्वयं कहा है ‘जो भक्त मुझे जैसे भजता है, मैं भी उसे वैसे ही भजता हूँ ।’

कृष्ण भक्ति के विविध आयाम - 

भक्ति-पद तक ऊपर उठने के लिए हमें पांच बातों का ध्यान रखना चाहिए - 1. भक्तों की संगति करना, 2. भगवान कृष्ण की सेवा में लगना, 3. श्रीमद् भागवत का पाठ करना, 4. भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन करना तथा 5. वृन्दावन या मथुरा में निवास करना । यदि कोई इन पांच बातों में से किसी एक में थोडा भी अग्रसर होता है तो उस बुद्धिमान व्यक्ति का कृष्ण के प्रति सुप्त प्रेम क्रमशः जागृत हो जाता है ( मध्य लीला 24.193-194) ।
कृष्णभावनामृत हमारी चेतना को निर्मल तथ शुद्ध बनाने की विधि है ।  जब मनुष्य हर वस्तु को अपनी मानता है तब वह भौतिक चेतना में रहता है और जब वह समझ जाता है कि हर वस्तु श्री कृष्ण की है तो वह
श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण
कृष्णभावनामृत को प्राप्त कर लेता है । कृष्णभावनामृत में की गयी प्रगति कभी नष्ट नहीं होती । जिसने कृष्ण के प्रति प्रेम उत्पन्न कर लिया वही भक्त है ।गीता (6.41-43) में भगवान कृष्ण कहते हैं। “यदि भक्ति पूरी नहीं भी होती तो भी कोई नुकसान नहीं हे क्योकि असफल योगी पवित्र आत्माओ के लोक में अनेक वर्षो तक भोग करने के बाद या तो सदाचारी पुरुषों के परिवार में या धनवानो के कुल में जन्म लेता हें । ऐसा जन्म पा कर वह अपने पूर्व जन्म की देवी चेतना को पुनः प्राप्त करता हे और आगे उन्नति करने का प्रयास करता है” । भगवान श्रीकृष्ण का लीलामय जीवन अनके प्रेरणाओं व मार्गदर्शन से भरा हुआ है। उन्हें पूर्ण पुरुष लीला अवतार कहा गया है। उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन श्री व्यास ने श्रीमद्भागवत पुराण में विस्तार से किया है। भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र मानव को धर्म, प्रेम, करुणा, ज्ञान, त्याग, साहस व कर्तव्य के प्रति प्रेरित करता है। उनकी भक्ति मानव को जीवन की पूर्णता की ओर ले जाती है। भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देश व विदेश में कृष्ण जन्म को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उनका सम्पूर्ण जीवन विविध लीलाओं से युक्त है।
उत्तर भारत से उद्भूत होकर वैष्णव भक्ति धारा बाद में आलवार भक्तों तक पहुंचकर श्रीसंप्रदाय प्रभृति विभिन्न संप्रदायों ने अनेक रूप प्रदान किया तथा दक्षिण से प्रत्यावर्तित होकर इस भक्ति-धारा ने पुनः उत्तर भारत में, विशेषकर वृन्दावन में पहुंचकर बल्लभ, निम्बार्क, राधाबल्लभ, हरिदासी तथा चैतन्य संप्रदायों के माध्यम से अपना स्वरुप निर्धारित किया। भजन कीर्तन ध्यान योग सगुण निर्गण आदि रूपों में प्रचलित होते हुए यह रासलीला या कृष्णलीला के स्वरुप में दृष्टिगोचर होती है। रासलीला या कृष्णलीला में युवा और बालक कृष्ण की गतिविधियों का मंचन होता है। कृष्ण की मनमोहक अदाओं पर गोपियां यानी बृजबालाएं लट्टू थीं। कान्हा की मुरली का जादू ऐसा था कि गोपियां अपनी सुतबुत गंवा बैठती थीं। गोपियों के मदहोश होते ही शुरू होती थी कान्हा के मित्रों की शरारतें। माखन चुराना, मटकी फोड़ना, गोपियों के वस्त्र चुराना, जानवरों को चरने के लिए गांव से दूर-दूर छोड़ कर आना ही प्रमुख शरारतें थी, जिन पर पूरा वृन्दावन मोहित था। जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा की इन सारी अठखेलियों को एक धागे में पिरोकर यानी उनको नाटकीय रूप देकर रासलीला या कृष्ण लीला खेली जाती है। इसीलिए जन्माष्टमी की तैयारियों में श्रीकृष्ण की रासलीला का आनन्द मथुरा, वृंदावन तक सीमित न रह कर पूरे देश में छा जाता है। जगह-जगह रासलीलाओं का मंचन होता है, जिनमें सजे-धजे श्री कृष्ण को अलग-अलग रूप रखकर राधा के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते दिखाया जाता है। इन रास-लीलाओं को देख दर्शकों को ऐसा लगता है मानो वे असलियत में श्रीकृष्ण के युग में पहुंच गए हों। 

रासलीला उत्तर प्रदेश में प्रचलित लोकनाट्य भी - 

रासलीला उत्तर प्रदेश में प्रचलित लोकनाट्य का एक प्रमुख अंग है। इसका आरंभ सोलहवीं शती में वल्लभाचार्य तथा हितहरिवंश आदि महात्माओं ने लोक प्रचलित, जिस श्रृंगार प्रधान रास में धर्म के साथ नृत्य, संगीत की पुनः स्थापना की और उसका नेतृत्व रसिक शिरोमणि श्रीकृष्ण को दिया था, वहीं राधा तथा गोपियों के साथ कृष्ण की श्रृंगार पूर्ण क्रीड़ाओं से युक्त होकर रासलीला के नाम से अभिहित हुआ। कृष्ण के प्रति ब्रजवासियों का बड़ा स्नेह था। गोपियाँ तो विशेष रूप से उनके सौंदर्य तथा साहसपूर्ण कार्यों पर मुग्ध थीं। प्राचीन पुराणों के अनुसार शरद पूर्णिमा की एक सुहावनी रात को गोपियों ने कृष्ण के साथ मिलकर नृत्य-गान किया। इसका नाम रास प्रसिद्ध हुआ। धीरे-धीरे यह प्रथा एक नैमित्तिक उत्सव बन गया, जिसमें गोपी-ग्वाल सभी सम्मिलित होते थे। सभंवत रात में इस प्रकार के मनोविनोदों और खेलकूदों को इस हेतु भी प्रचारित किया गया कि जिससे रात में भी सजग रह कर कंस के उन षड्यंत्रों से बचा जा सके जो आये दिन गोकुल में हुआ करते थे।

राधा-कृष्ण तथा गोपिकाएँ पात्र - 

रासलीला के पात्रों में राधा-कृष्ण तथा गोपिकाएँ रहती है। बीच-बीच में हास्य का प्रसंग भी रहता है। विदूषक के रूप में ‘मनसुखा’रहता है, जो विभिन्न गोपिकाओं के साथ प्रेम एंव हँसी की बातें करके   कृष्ण के प्रति उनके अनुराग को व्यंजित करता है। साथ-ही-साथ दर्शकों का भी मनोरंजन करता है। जब कभी परदें के पीछे नेपथ्य में अभिनेताओं को वेशविन्यास या रूपसज्जा करने में विलम्ब होता है तो उस अवकाश के क्षणों के लिए कोई हास्य या व्यंग्यपूर्ण दो पात्रों के प्रहसन की योजना कर ली जाती है, किन्तु यह कार्य लीला से सम्बन्धित नहीं होता। रास-कार्य सम्पन्न करने वाले रासधारी कहलाते हैं। रासलीला वे प्रायः बालक और युवा पुरुष होते हैं। लीला में हास्य का पुट और श्रृंगार का प्राधान्य रहता है। उसमें कृष्ण का गोपियों, सखियों के साथ अनुरागपूर्ण वृताकार नृत्य होता है। कभी कृष्ण गोपियों के कार्यों एवं चेष्टाओं का अनुकरण करते है और कभी गोपियाँ कृष्ण की रूप चेष्टादि का अनुकरण करती है और कभी राधा सखियों के, कृष्ण की रूपचेष्टाओं का अनुकरण करती है। यही लीला है। एक समय जब भगवान कृष्ण, राधा व गोपियाँ रासलीला कर रहे थे तो भगवान शिव ने वहाँ किसी के भी जाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन माँ पार्वती द्वारा इच्छा जाहिर करने पर भगवान शिव ने मणिपुर में यह नृत्य करवाया। इसे मणिपुरी नृत्य कहा जाता है यह भी मूलत रासलीला थीम पर आधारित होता है। श्रीकृष्ण ने मथुरा के कोकिलवन में गोपियों के साथ रासलीला सम्पन्न की थी तथा रास की समाप्ति के पश्चात रास कुण्ड में परस्पर जल सिञ्चन आदि क्रीड़ाएँ की थीं । 

कलियुग में नरसी मेहता महान भक्त - 

सत्ययुग में ध्रुव, प्रह्लाद आदि अनेक भक्तों को भगवद्दर्शन के उदाहरण देखने को मिलते हैं किन्तु कलियुग में भी अनेक भक्तों को भगवान के दर्शन हुए हैं । उनमें से एक हैं वैष्णवों में शिरोमणि नरसी मेहता । यह बात ज्यादा पुरानी न होकर है सोलहवीं शताब्दी की है । जो सब ओर से मुख मोड़कर एकमात्र उन प्रभु का हो जाता है, वह भगवान को बहुत प्रिय है। सोलहवीं शताब्दी में गुजरात में भक्ति को नयी प्रेरणा देने वाले नरसी मेहता का जन्म जूनागढ़ में नागर-ब्राह्मण कुल में हुआ । बाल्यावस्था में पिता की मृत्यु होने पर बालक नरसी साधुओं की संगति में रहने लगे । कृष्ण भक्ति में लीन रहकर धीरे-धीरे उनका समय भजन-कीर्तन में ही व्यतीत होने लगा । वे श्रीकृष्णको प्रेमी मानकर गोपियों की तरह नाचने-गाने लगे । यह बात उनके परिवार वालों को पसन्द नहीं थी ।बालक नरसी अपना घर छोड़कर जूनागढ़ से कुछ दूर जंगल में चले गए । वहां उन्होंने एक पुराने मन्दिर में परित्यक्त शिवलिंग को अपनी बांहों में भर कर निश्चय किया कि जब तक शिवजी प्रसन्न होकर दर्शन न देंगे तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा । वे सात दिन तक लगातार निराहार रहकर पूजा करते रहे । भगवान शंकर ने विचार किया कि कोई आदमी किसी गरीब के द्वार पर जाकर पड़ जाता है, तो वह भी उसके दुख-दर्द की पूछता है, मैं तो देवाधिदेव महादेव हूँ मुझे तो इसके दुख दूर करने चाहिए । भगवान शंकर उनके सामने प्रकट हो गए और वर मांगने को कहा । नरसी ने कहाकृ‘यदि आप देना ही चाहते हैं तो सोच-समझकर अपनी सबसे प्यारी वस्तु दे दीजिए ।’

रासलीला में नरसी मेहता - 

भगवान शंकर ने नरसी को अपने जैसा श्रीकृष्ण-प्रेम प्रदान किया और नरसीजी को सुन्दर सखी स्वरूप प्रदान कर स्वयं भी सखी रूप धारण करके भगवान श्रीकृष्ण के गोलोक में स्थित वृन्दावनधाम ले गए । वहां उन्होंने नरसी को रासमण्डल में अनगिनत गोपियों के साथ श्रीराधा श्यामसुन्दर की रासलीला का अद्भुत दृश्य दिखलाया । भगवान शंकर ने नरसी सखी को रासलीला में मशाल दिखलाने की सेवा प्रदान की । नरसी सखी मशाल दिखाते समय श्रीराधा-कृष्ण की शोभा देखकर निहाल हो गईं । भगवान श्रीकृष्ण ने भी जान लिया कि यह तो आज कोई नई सखी भगवान शंकर के साथ रासलीला में आई है । रास के बाद भगवान शंकर ने जब नरसी सखी को वापिस चलने के लिए कहा तब उसने कहाकृ‘मैं तो अपने प्राण यहीं श्रीराधा-कृष्ण के चरणों में न्यौछावर करना चाहती हूँ ।’

भगवान श्रीकृष्ण ने नरसी को दिव्य करताल दिए - 

भगवान श्रीकृष्ण ने नरसी सखी को भक्तिरस का पान कराया और उन्हें आज्ञा दीकृ‘अब तुम यहां से जाओ और जैसी रासलीला तुमने देखी है, उसका गान करते हुए संसार के नर-नारियों को भक्ति-रस का पान कराओ । मेरे इस रूप का तुम सदैव ध्यान करते रहना । जब भी तुम स्मरण करोगी मैं प्रकट होकर तुम्हें दर्शन दूंगा । भगवान ने कीर्तन करने के लिए नरसीजी को करताल प्रदान की । वह घर आए और अपने बच्चों के साथ अलग रहने लगे । उनके पास एक करताल के सिवाय और कुछ नहीं था जिस पर वह श्रीकृष्ण का यशोगान करने में मग्न रहते थे । उनकी पत्नी ने उन्हें कोई काम करने के लिए बहुत कहा, परन्तु नरसीजी ने कोई दूसरा काम करना पसन्द ही नहीं किया । उनका मानना था कि श्रीकृष्ण मेरे सारे दुखों और अभावों को अपने-आप दूर करेंगे । नरसीजी के सारे काम स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने समय-समय पर पूरे किए ।


- डा. राधेश्याम  द्विवेदी

COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,34,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,17,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,15,कमलेश्वर,6,कविता,1408,कहानी लेखन हिंदी,13,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,4,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,138,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,29,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,68,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,4,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,25,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,3,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,23,नाटक,1,निराला,35,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,38,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,174,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,133,प्रयोजनमूलक हिंदी,21,प्रेमचंद,39,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,3,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,86,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,5,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,6,भक्ति साहित्य,138,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,13,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,4,महादेवी वर्मा,18,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,10,मैला आँचल,4,मोहन राकेश,11,यशपाल,13,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,5,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,20,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,2,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,8,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,1,रीतिकाल,3,रैदास,2,लघु कथा,117,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,33,विद्यापति,6,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,5,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,5,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,52,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,28,सआदत हसन मंटो,9,सतरंगी बातें,33,सन्देश,39,समसामयिक हिंदी लेख,221,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,17,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,69,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",9,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,20,सूरदास,15,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,10,हजारी प्रसाद द्विवेदी,2,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,343,हिंदी लेख,504,हिंदी व्यंग्य लेख,3,हिंदी समाचार,164,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,85,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,6,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,18,hindi essay,335,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,94,hindi stories,656,hindi-kavita-ki-vyakhya,15,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,13,kavyagat-visheshta,22,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,sponsored news,9,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,32,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: श्री कृष्ण रास लीला
श्री कृष्ण रास लीला
श्रीकृष्ण रासलीला श्रीकृष्ण भक्ति में रासलीला एक लोकप्रिय साधन रासलीला के पात्रों में राधा-कृष्ण तथा गोपिकाएँ रहती है। बीच-बीच में हास्य का प्रसंग भी रहता है। विदूषक के रूप में ‘मनसुखा’रहता है, जो विभिन्न गोपिकाओं के साथ प्रेम एंव हँसी की बातें करके कृष्ण के प्रति उनके अनुराग को व्यंजित करता है।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgo1sIx2NJXX-vej4XwCSBlRiBOk0xb0tu5hSuBc_Oov1pVf9hWfNzIs4m0-x3cJoKvzjobFjpm1sHLp6Z-sheyDhyvJ65f8Dee7dikL17P1epMVOqqScb5vcSMK2JVmeJNazXiP9FFlkHH/s320/a-5.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgo1sIx2NJXX-vej4XwCSBlRiBOk0xb0tu5hSuBc_Oov1pVf9hWfNzIs4m0-x3cJoKvzjobFjpm1sHLp6Z-sheyDhyvJ65f8Dee7dikL17P1epMVOqqScb5vcSMK2JVmeJNazXiP9FFlkHH/s72-c/a-5.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2018/09/krishna-bhakti-raaslila.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2018/09/krishna-bhakti-raaslila.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका