मंगलवार व्रत की कथा एवं पूजा विधि

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मंगलवार व्रत कथा और व्रत विधि मंगलवार व्रत की कथा एवं पूजा विधि Mangalvar Vrat Vidhi and Katha Hanuman Ji Vart Katha मंगलवार व्रत कथा और व्रत विधि Mangalvar Vrat Vidhi and Katha Hanuman Ji Vart Katha - सर्व सुख, राज सम्मान तथा पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करना शुभ है।इसे २१ सप्ताह लगातार करना चाहिए।लाल पुष्प, लाल चन्दन, लाल फल अथवा लाल मिष्ठान्न से हनुमान जी का पूजन करें।

मंगलवार व्रत कथा और व्रत विधि 
Mangalvar Vrat Vidhi and Katha Hanuman Ji Vart Katha 



मंगलवार व्रत कथा और व्रत विधि  मंगलवार व्रत की कथा एवं पूजा विधि Mangalvar Vrat Vidhi and Katha Hanuman Ji Vart Katha - सर्व सुख, राज सम्मान तथा पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करना शुभ है।इसे २१ सप्ताह लगातार करना चाहिए।लाल पुष्प, लाल चन्दन, लाल फल अथवा लाल मिष्ठान्न से हनुमान जी का पूजन करें।लाल वस्त्र धारण करें।कथा पढ़ने-सुनने के बाद, हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक तथा बजरंग बाण का पाठ करने से शीघ्र फल प्राप्त होता है।

मंगलवार व्रत पूजन सामग्री - 

पंच पल्लव, कलश, यज्ञोपवीत, लाल वस्त्र, सफेद वस्त्र, तन्दुल, कुंकुम (रोली) गुलाल, मंगलीक (गुड़), धूप, पुष्पादि, तुलसीदल, श्रीफल, ताम्बूल, नाना फलानी (मौसम के फल), माला, पंचामृत, नैवेद्यार्थ प्रसाद पदार्थ, गोधन चूर्ण, गुणान्न, रंगीन आटा, दीपक, भगवान की मूर्ति, लौंग, इलायची, दूर्वा (दूब),कर्पूर (कपूर), केशर, मण्डप उपयोगी साहित्य, द्रव्य दक्षिणा।

मंगलवार व्रत का कथा - 

एक ब्राह्मण दम्पत्ति के कोई सन्तान न थी, जिस कारण पति-पली दोनों दु:खी थे। एक समय वह ब्राह्मण हनुमान जी की पूजा हेतु वन में चला गया। वहां वह पूजा के साथ महावीर जी से एक पुत्र की कामना किया करता। घर पर
 हनुमान जी
 हनुमान जी
उसकी पत्नी भी पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत किया करती थी। मंगल के दिन व्रत के अन्त में भोजन बनाकर।हनुमान जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी।

एक बार कोई व्रत आ गया जिसके कारण ब्राह्मणी भोजन न बना सकी, और हनुमान जी का भोग भी नहीं लगा। वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार को हनुमान को भोग लगाकर ही अन्न ग्रहण करूगी।वह भूखा-प्यासी छः दिन पड़ी रही। मेरानदार के दिन उसे मूछ आ गई।हनुमान जी उसको लगन और निष्ठा को देखकर प्रसन्न हो गए।उन्होंने उसे दर्शन दिए और कहा- मैं तुमसे अति प्रसन्न हैं।मैं तुम्हें एक सुन्दर बालक देता हूँ, जो तेरी बहुत सेवा किया करेगा।' हनुमानजी मंगल को बाल रूप में उसको दर्शन देकर अन्तध्यन हो गए।

सुन्दर बालक पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई। ब्राह्मणी ने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय पश्चात् ब्राह्मण वन से लौटकर आया। एक प्रसन्नचित सुन्दर बालक को घर में क्रीड़ा करते देखकर, ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से पूछा-“यह बालक कोन है?" पत्नी ने कहा-‘मंगलवार के व्रत से प्रसन्न हो हनुमानजी ने दर्शन देकर मुझे यह बालक दिया है।ब्राह्मण को पत्नी की बात पर विश्वास नहीं हुआ।उसने सोचा यह कुल्टा, व्यभिचारिणी अपनी कलुषता छिपाने के लिए बात बना रही है।

एक दिन ब्राह्मण कुएँ पर पानी भरने गया तो ब्राह्मणी ने कहा कि मंगल को भी अपने साथ ले जाओ।वहाँ मंगल को साथ ले गया परन्तु वह उस बालक का नाजायज मानता था इसलिए उसे कुएँ में डालकर पानी भरकर घर वापस आ गया। ब्राह्मणो ने ब्राह्मण से पूछा कि मंगल कहाँ है। तभी मंगल मुस्कराता हुआ घर वापस आ गया। उसे वापस आया देख ब्राह्मण आश्चर्यचकित हुआ। रात्रि में उस ब्राह्मण से हनुमान जी ने स्वर्ण में कहा-'यह बालक मैंने दिया है तुम पत्नी को कुल्टा क्यों कहते हो?

ब्राह्मण यह सत्य जानकर हर्षित हुआ।इसके बाद वह ब्राह्मण-दम्पत्ति मंगल का व्रत रखअपना जीवन आनन्दपूर्वक व्यतीत करने लगे। जो मनुष्य मंगलवार वत कथा को पढ़ता है या सुनता है और नियम से व्रत रखता है हनुमान जी की कृपा से सब कष्ट दूर होकर उसे सर्व सुख प्राप्त होते हैं।



श्री हनुमान चालीसा


श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु पल चारि ।।
बुद्घिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्घि विघा देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।।


हनुमान
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीस तिहुं लोग उजागर ।।
रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।।
महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।।
कंचन बरन विराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै । कांधे मूंज जनेऊ साजै ।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन । तेज प्रताप महा जगवन्दन ।।
विघावान गुणी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।।
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा । विकट रुप धरि लंक जरावा ।।
भीम रुप धरि असुर संहारे । रामचन्द्रजी के काज संवारे ।।
लाय संजीवन लखन जियाये । श्री रघुवीर हरषि उर लाये ।।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।
सहस बदन तुम्हरो यश गावै । अस कहि श्री पति कंठ लगावै ।।
सनकादिक ब्रहादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ।।
यह कुबेर दिकपाल जहां ते । कवि कोबिद कहि सके कहां ते ।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राजपद दीन्हा ।।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना । लंकेश्वर भये सब जग जाना ।।
जुग सहस्त्र योजन पर भानू । लाल्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही । जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ।।
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक ते कांपै ।।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ।।
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।।
संकट ते हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।।
सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोई लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ।।
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्घ जगत उजियारा ।।
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ।।
अष्ट सिद्घि नवनिधि के दाता । अस वर दीन जानकी माता ।।
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ।।
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेई सर्व सुख करई ।।
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
जय जय जय हनुमान गुसांई । कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।।
जो शत बार पाठ कर सोई । छूटहिं बंदि महासुख होई ।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्घि साखी गौरीसा ।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महं डेरा ।।

।। दोहा ।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।


श्री हनुमान जी की आरती 

श्री हनुमान जी
श्री हनुमान जी
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की॥१
जाके बल से गिरिवर काँपै। रोग-दोष जाके निकट न झाँपै॥२
अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥३
दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीय सुधि लाये॥४
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥५
लंका जारि असुर सँहारे। सियारामजी के काज सँवारे॥६
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि सजीवन प्रान उबारे॥७
पैठि पताल तोरि जम-कारे। अहिरावन की भुजा उखारे॥८
बायें भुजा असुर दल मारे। दहिने भुजा संतजन तारे॥९
सुर नर मुनि आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे॥१०
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई॥११
जो हनुमान जी की आरती गावै। बसि बैकुण्ठ परमपद पावै॥१२
लंक विध्वंस किए रघुराई। तुलसिदास प्रभु कीरति गाई॥१३



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