दिया

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दिया दिया है, जलेगा भी, बुझेगा भी, सफर है, कटेगा भी, चुभेगा भी, डरता क्यों है, गिरेगा भी, बढ़ेगा भी, जिदंगी है, जियेगा भी, मरेगा भी....मित्र मेरा संघर्ष कर रहा, दिन रात अपने से जूझ रहा, दोष उसका सिर्फ इतना है, सिद्धांतों से ही आगे बढ़ना है, व्यवहारिकता से वो दूर है, नियमों से वो मजबूर हैं, निपुणता की वो पहचान है, पूर्णता में ही उसकी शान है,

दिया  

दिया है,
जलेगा भी,
बुझेगा भी,
सफर है,
कटेगा भी,
चुभेगा भी,
दिया
दिया
डरता क्यों है,
गिरेगा भी,
बढ़ेगा भी,
जिदंगी है,
जियेगा भी,
मरेगा भी....


मित्र और संघर्ष

मित्र मेरा संघर्ष कर रहा,
दिन रात अपने से जूझ रहा,
दोष उसका सिर्फ इतना है,
सिद्धांतों से ही आगे बढ़ना है,
व्यवहारिकता से वो दूर है,
नियमों से वो मजबूर हैं,
निपुणता की वो पहचान है,
पूर्णता में ही उसकी शान है,
दिल से वो कमजोर है,
भावों से वो विभोर है,
अपने कष्टों से बेखबर,
दूसरों की वो शहतीर है,
अश्रु उसके दिखते नहीं,
वाणी भी उसकी शांत है,
होठों पर मुस्कराहट है,
विश्वास की वो आन है,
इन आवरणों के अन्दर,
ग़मों का पुलिंदा भारी है,
वक्त करामात करता रहा,
उत्साह को डसता रहा,
थपेड़ों की ऐसी मार थी,
पीड़ा भी हाहाकार थी,
मित्र की तारीफ करूंगा,
कई बार बेहाल हुआ,
निष्प्राण बेजान हुआ,
परवाह वो करता नहीं,
हारने की उसको फ़िक्र नहीं,
विफलताओं का डर नही है,
हताशाओ से बाध्य नही हैं,
अविश्वास में विश्वास खोजता,
समय के थपेड़ो की मार से,
नया कुछ रोज वो सीखता,
नित भंवरों में फंसा हुआ है,
फिर भी अडिग खड़ा हुआ है,
उस पार का संसार सुनहरा,
कविता ऐसी हरदिन सुनाता,
संघर्षों की वो मिसाल है,
मेरा मित्र अनमोल पात्र है।

तुम एक अनकही कहानी

हां कर दो...
ना कर दो...
मतलब नहीं,
छेड़ना चिढ़ाना,
अंदाज मेरा,
गहराईयों तक,
भावों को पढ़ना,
रिश्ते टटोलना,
जीवन गीत में,
शून्यता की गूंज,
शोरगुल संगीत,
तुम्हारी थाप पर,
दिल नृत्य करता,
मदमस्त होकर,
डर भूल जाता,
उलझनों में फंसी,
हदें सिमट जाती,
कुछ भी कह लो,
तुम हो बस एक,
हसरतों में समायी,
अनकही कहानी।


उम्र का तकाजा

जीवन के उपवन में,
कितने साल बीत गये,
कुछ लोग नये मिले,
कुछ से साथ छूट गया,
कुछ पाने की धुन मे,
कुछ अच्छा लुट गया,
मंजिलें चढ़ते कदमों ने,
ज़मीं से नाता तोड़ लिया,
रास्ता ढूंढती जिदंगी ने,
जीना ही जैसे छोड़ दिया,
इथर उथर की भटकन से,
खट्टे मीठे अनुभव लेकर,
उम्मीदों के हैं पेड़ लगाये,
गुणों की खाद है डाली,
रंग बिरंगे फूल खिलेंगे,
उपवन फिर महक उठेगा,
थन्य कि अब चेतन है मन,
मौसम की जो मार पड़ी तो,
फिर ले लेगा ये नवजीवन।


- साकेत तिवारी
sakettewari@gmail.com
Mobile - 9810470197

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. बहुत ही बढ़िया रचनाएँ साँझा की आपने साकेत जी, उसमे से "दिया" यह रचना काफी अच्छी लगी.

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